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Kathua News: डिस्पेंसरी बनकर रह गया महात्मा गांधी जच्चा-बच्चा अस्पताल
संवाद न्यूज एजेंसी, कठुआ
Updated Thu, 25 Dec 2025 01:04 AM IST
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- नजला, खांसी और बुखार की ही मिलती है दवा
कठुआ। कभी जच्चे-बच्चे को बेहतर सुविधा प्रदान करने के लिए शहर के बीचोबीच स्थापित किया गया महात्मा गांधी जच्चा-बच्चा अस्पताल मात्र डिस्पेंसरी बनकर रह गए हैं। शहरवासियों को स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर एक चिकित्सा अधिकारी की ओर से सिर्फ दिन में ओपीडी की सेवाएं दी जा रही हैं जहां सिर्फ नजला, खांसी और बुखार की दवा ही मिलती है।
चौबीसों घंटे अस्पताल को कार्यात्मक बनाने के लिए बनी से संलग्न एक अन्य चिकित्सा अधिकारी को दोबारा बनी उपजिला अस्पताल भेज दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से नई नियुक्ति हुई नहीं और शहर का जच्चा-बच्चा अस्पताल सिर्फ ओपीडी सेवाओं तक सीमित रह गया है। साल 2018 में जिले को राजकीय मेडिकल कॉलेज मिलने के बाद अस्पताल में स्वीकृत सभी 13 पद यहां से हटा दिए गए। इसमें से पांच विशेषज्ञ डॉक्टर, स्त्री रोग विशेषज्ञ, फिजीशियन, सर्जरी, बाल रोग विशेषज्ञ और एनेस्थेसिया के पद भी थे। स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार सरकार की जच्चा बच्चा अस्पताल को चलाने की फिलहाल कोई योजना नहीं है। वर्ष 2015 में इस अस्पताल में एक ब्लड बैंक के साथ-साथ ऑपरेशन थिएटर के अलावा एक अतिरिक्त ब्लॉक बनाने की योजना थी जिससे फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
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पहले मेडिकल कॉलेज और अब होम्योपैथी को सौंपी गई है इमारत
वर्ष 2019 से शहर के जच्चा-बच्चा अस्पताल की अनदेखी हो है। पहले इसकी इमारत जीएमसी कठुआ को कार्यात्मक बनाने के लिए मेडिकल कॉलेज को सौंप दी गई और अब जनवरी 2025 से होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज का मेकशिफ्ट 30 अस्पताल बनाकर इमारत को इस्तेमाल किया जा रहा है। कागजों में तो यह जच्चा-बच्चा अस्पताल है लेकिन यह एक डिस्पेंसरी बनकर रह गया है। इसका स्थानीय लोग समय-समय पर विरोध करते आ रहे हैं।
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कठुआ। कभी जच्चे-बच्चे को बेहतर सुविधा प्रदान करने के लिए शहर के बीचोबीच स्थापित किया गया महात्मा गांधी जच्चा-बच्चा अस्पताल मात्र डिस्पेंसरी बनकर रह गए हैं। शहरवासियों को स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर एक चिकित्सा अधिकारी की ओर से सिर्फ दिन में ओपीडी की सेवाएं दी जा रही हैं जहां सिर्फ नजला, खांसी और बुखार की दवा ही मिलती है।
चौबीसों घंटे अस्पताल को कार्यात्मक बनाने के लिए बनी से संलग्न एक अन्य चिकित्सा अधिकारी को दोबारा बनी उपजिला अस्पताल भेज दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से नई नियुक्ति हुई नहीं और शहर का जच्चा-बच्चा अस्पताल सिर्फ ओपीडी सेवाओं तक सीमित रह गया है। साल 2018 में जिले को राजकीय मेडिकल कॉलेज मिलने के बाद अस्पताल में स्वीकृत सभी 13 पद यहां से हटा दिए गए। इसमें से पांच विशेषज्ञ डॉक्टर, स्त्री रोग विशेषज्ञ, फिजीशियन, सर्जरी, बाल रोग विशेषज्ञ और एनेस्थेसिया के पद भी थे। स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार सरकार की जच्चा बच्चा अस्पताल को चलाने की फिलहाल कोई योजना नहीं है। वर्ष 2015 में इस अस्पताल में एक ब्लड बैंक के साथ-साथ ऑपरेशन थिएटर के अलावा एक अतिरिक्त ब्लॉक बनाने की योजना थी जिससे फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
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पहले मेडिकल कॉलेज और अब होम्योपैथी को सौंपी गई है इमारत
वर्ष 2019 से शहर के जच्चा-बच्चा अस्पताल की अनदेखी हो है। पहले इसकी इमारत जीएमसी कठुआ को कार्यात्मक बनाने के लिए मेडिकल कॉलेज को सौंप दी गई और अब जनवरी 2025 से होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज का मेकशिफ्ट 30 अस्पताल बनाकर इमारत को इस्तेमाल किया जा रहा है। कागजों में तो यह जच्चा-बच्चा अस्पताल है लेकिन यह एक डिस्पेंसरी बनकर रह गया है। इसका स्थानीय लोग समय-समय पर विरोध करते आ रहे हैं।