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चाइल्ड वेलफेयर कमेटी नहीं कर सकती स्कूलों पर कार्रवाई की सिफारिश : हाईकोर्ट
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- कहा, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत कार्रवाई की सिफारिश करने का कमेटी के पास अधिकार नहीं
अदालत से ... का लोगो लगाएं
संवाद न्यूज एजेंसी
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के पास जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) एक्ट के तहत स्कूलों सहित किसी भी संस्थान के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करने का कोई अधिकार नहीं है।
एक स्कूल की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस संजय धर की बेंच ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी श्रीनगर द्वारा पारित एक आदेश को रद्द कर दिया जिसमें कथित तौर पर एक नाबालिग छात्र को स्कूल से निकालने के लिए संस्थान के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई थी। बेंच ने कहा, कमेटी के पास केवल बच्चों की देखभाल, सुरक्षा, इलाज, विकास, पुनर्वास के मामलों को निपटाने और उनकी बुनियादी जरूरतों व सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार है। कमेटी द्वारा विवादित आदेश के तहत की गई सिफारिश उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
याचिका में स्कूल ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी श्रीनगर की ओर से 2 मई 2024 को पारित आदेश को चुनौती दी थी। इसमें अन्य बातों के अलावा डायरेक्टर, स्कूल एजुकेशन कश्मीर और जिला मजिस्ट्रेट श्रीनगर से कथित तौर पर बच्चे को गैर-कानूनी रूप से स्कूल से निकालने के लिए स्कूल के खिलाफ संबंधित नियमों के तहत उचित कानूनी कार्रवाई शुरू करने की सिफारिश की गई थी। कोर्ट ने पाया कि इस मामले में बच्चा देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चे की कानूनी परिभाषा के दायरे में नहीं आता है क्योंकि उसके पिता उसकी ठीक से देखभाल कर रहे थे। वह जेजे एक्ट की धारा 2(14) के तहत किसी भी शर्त को पूरा नहीं करता था।
कोर्ट ने कहा, केवल उन्हीं मामलों में जहां किसी बच्चे का कोई माता-पिता या अभिभावक नहीं है जो उसकी देखभाल कर सके या जिसका कोई निश्चित घर नहीं है, ऐसे बच्चे को देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चे की परिभाषा के तहत माना जा सकता है। भले ही बच्चे के माता-पिता या अभिभावक हों, यह परिभाषा तभी लागू होगी जब माता-पिता या अभिभावक बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ हों या वे खुद बच्चे पर किसी भी तरह का अत्याचार कर रहे हों।
कोर्ट ने स्कूल की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा इनमें से कोई भी स्थिति इस मामले में मौजूद नहीं है। इसलिए कमेटी के पास शिकायत पर विचार करने या मामले की जांच करने और विभिन्न अधिकारियों को सिफारिशें करने का अधिकार नहीं था। कमेटी ने खुद को ऐसा अधिकार दे दिया है जो कानून के तहत उसे नहीं मिला है। जेजे एक्ट के तहत दी गई परिभाषा को भी इतना नहीं खींचा जा सकता कि उसमें ऐसे बच्चों को शामिल किया जाए जिनकी देखभाल उनके माता-पिता अच्छे से कर रहे हैं।
पिता ने दूसरे स्कूल में बच्चे के एडमिशन के लिए राहत मांगी थी
चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने यह आदेश बच्चे के पिता की ओर से 10 नवंबर 2023 को दायर की गई शिकायत के आधार पर दिया था। इसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी छह साल की बेटी को स्कूल से तब निकाल दिया गया था जब उसके माता-पिता ने स्कूल द्वारा की गई कुछ गड़बड़ियों और गैर-कानूनी कार्याें की रिपोर्ट की थी। इसमें कथित तौर पर फर्जी सालाना फीस शामिल थी। शिकायतकर्ता ने बच्चे के घर से तीन किलोमीटर के दायरे में उसी स्तर के किसी दूसरे स्कूल में बच्चे के एडमिशन के लिए राहत मांगी थी।
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संवाद न्यूज एजेंसी
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के पास जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) एक्ट के तहत स्कूलों सहित किसी भी संस्थान के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करने का कोई अधिकार नहीं है।
एक स्कूल की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस संजय धर की बेंच ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी श्रीनगर द्वारा पारित एक आदेश को रद्द कर दिया जिसमें कथित तौर पर एक नाबालिग छात्र को स्कूल से निकालने के लिए संस्थान के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई थी। बेंच ने कहा, कमेटी के पास केवल बच्चों की देखभाल, सुरक्षा, इलाज, विकास, पुनर्वास के मामलों को निपटाने और उनकी बुनियादी जरूरतों व सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार है। कमेटी द्वारा विवादित आदेश के तहत की गई सिफारिश उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
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याचिका में स्कूल ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी श्रीनगर की ओर से 2 मई 2024 को पारित आदेश को चुनौती दी थी। इसमें अन्य बातों के अलावा डायरेक्टर, स्कूल एजुकेशन कश्मीर और जिला मजिस्ट्रेट श्रीनगर से कथित तौर पर बच्चे को गैर-कानूनी रूप से स्कूल से निकालने के लिए स्कूल के खिलाफ संबंधित नियमों के तहत उचित कानूनी कार्रवाई शुरू करने की सिफारिश की गई थी। कोर्ट ने पाया कि इस मामले में बच्चा देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चे की कानूनी परिभाषा के दायरे में नहीं आता है क्योंकि उसके पिता उसकी ठीक से देखभाल कर रहे थे। वह जेजे एक्ट की धारा 2(14) के तहत किसी भी शर्त को पूरा नहीं करता था।
कोर्ट ने कहा, केवल उन्हीं मामलों में जहां किसी बच्चे का कोई माता-पिता या अभिभावक नहीं है जो उसकी देखभाल कर सके या जिसका कोई निश्चित घर नहीं है, ऐसे बच्चे को देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चे की परिभाषा के तहत माना जा सकता है। भले ही बच्चे के माता-पिता या अभिभावक हों, यह परिभाषा तभी लागू होगी जब माता-पिता या अभिभावक बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ हों या वे खुद बच्चे पर किसी भी तरह का अत्याचार कर रहे हों।
कोर्ट ने स्कूल की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा इनमें से कोई भी स्थिति इस मामले में मौजूद नहीं है। इसलिए कमेटी के पास शिकायत पर विचार करने या मामले की जांच करने और विभिन्न अधिकारियों को सिफारिशें करने का अधिकार नहीं था। कमेटी ने खुद को ऐसा अधिकार दे दिया है जो कानून के तहत उसे नहीं मिला है। जेजे एक्ट के तहत दी गई परिभाषा को भी इतना नहीं खींचा जा सकता कि उसमें ऐसे बच्चों को शामिल किया जाए जिनकी देखभाल उनके माता-पिता अच्छे से कर रहे हैं।
पिता ने दूसरे स्कूल में बच्चे के एडमिशन के लिए राहत मांगी थी
चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने यह आदेश बच्चे के पिता की ओर से 10 नवंबर 2023 को दायर की गई शिकायत के आधार पर दिया था। इसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी छह साल की बेटी को स्कूल से तब निकाल दिया गया था जब उसके माता-पिता ने स्कूल द्वारा की गई कुछ गड़बड़ियों और गैर-कानूनी कार्याें की रिपोर्ट की थी। इसमें कथित तौर पर फर्जी सालाना फीस शामिल थी। शिकायतकर्ता ने बच्चे के घर से तीन किलोमीटर के दायरे में उसी स्तर के किसी दूसरे स्कूल में बच्चे के एडमिशन के लिए राहत मांगी थी।