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Ground Zero: डर पूरी तरह गायब, जीरो लाइन के पास जाकर चरा रहे मवेशी; लोग बोले- हौसला हिमालय जैसा, हम ना डिगेंगे

गौरव रावत, संवाद एजेंसी, आरएस पुरा Published by: आकाश दुबे Updated Fri, 09 May 2025 08:54 AM IST
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सार

अब्दुल्लियां गांव के लोग बोले पाकिस्तान तो दुश्मन है, कब गोली चला दे कोई भरोसा नहीं, मगर हमारा हौसला हिमालय जैसा, हम नहीं डिगेंगे। आरएस पुरा के अब्दुल्लियां गांव से गौरव रावत की रिपोर्ट-
 

Ground Zero Fear has completely disappeared people are grazing their cattle near zero line
अब्दुलिया गांव के ग्रामीण मवेशी चराते हुए। - फोटो : संवाद
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हम हर रात यही सोचते हैं कि अगली सुबह देख भी पाएंगे या नहीं। पाकिस्तान तो दुश्मन है, कब गोली चला दे, कोई भरोसा नहीं..., मगर हमारा हौसला भी हिमालय जैसा है, हम डिगने वाले नहीं। हम डरते बिलकुल भी नहीं। जीरो लाइन के पास जाकर लोग अपने मवेशी चरा रहे हैं।

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यह कहना है सीमा पर बसे अब्दुल्लियां गांव की 70 वर्षीय बुजुर्ग कृष्णा देवी का। अब्दुल्लियां गांव जम्मू जिले के आरएस पुरा सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा की जीरो लाइन पर बसा है। इन दिनों यहां रात में रोशनी न हो, अंधेरा रहे, इसलिए गांव वालों ने स्ट्रीट लाइटों को भी बोरे या कपड़े से ढक दिया है। पूर्व सरपंच बच्चन लाल ने बताया कि पहलगाम हमले के दो दिन बाद ही प्रशासन के आदेश पर गांववालों ने बंकरों की सफाई शुरू कर दी थी।
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एयर स्ट्राइक होते ही बंकरों में जाकर रहने का आदेश दिया गया। सात मई की रात 75 फीसदी गांव वाले अपने दूसरे ठिकानों या रिश्तेदारों के घर चले गए। बचे लोगों की पूरी रात बंकर में ही कटी। गांव में कुल 11 बंकर हैं, जिनमें से नौ सादे, तो दो कम्युनिटी बंकर हैं।

बंकरों में बैठे लोग बोले जान तो बचानी ही है
बच्चन लाल ने गांव के एक बंकर में ले जाकर वहां का हाल भी दिखाया। बंकर में गांव के तीन चार लोग बैठे भी मिले। पूछने पर बताया कि वैसे तो आमतौर पर सीमापार से दिन में गोलीबारी नहीं होती। खतरे का समय रात का ही है, खाली थे तो यहां बैठ गए। बंकर में मोबाइल नेटवर्क नहीं आता। सिर्फ एक पंखा और बल्ब लगा है। मच्छर इतने हैं कि कोई सो नहीं सकता, लेकिन क्या करें, जान बचानी है तो यह सब करना ही पड़ेगा। हम लोगों का तो फिर भी ठीक है, सबसे ज्यादा दिक्कत पशुओं की है, उनको शेड के या सादा छत के नीचे की बांधना पड़ता है। पहले भी गोलीबारी में कई पशुओं की मौत हो चुकी है।

पुराने जख्म फिर हुए ताजा गांव के चौक पर खड़े मिले बुजुर्ग
हरवंश लाल ने बताया कि 2014-15 तक जब भी दोनों देशों में तनाव बढ़ता था, गांव पर गोलीबारी शुरू हो जाती थी। कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। कई साल शांति रहने के बाद फिर वही पुराने वाले हालात बन रहे हैं। हालांकि, अब्दुल्लियां में फिलहाल शांति है, लेकिन किसी को भरोसा नहीं कि कब गोलीबारी शुरू हो जाए।

सीमा उस पार की आवाजें बता देती हैं... क्या है हाल
मर्चेंट नेवी में नौकरी करने वाले सोनू कुमार छुट्टियां बिताने गांव आए हैं। वह जीरो लाइन की तरफ अपने खेतों में पशुओं के लिए चारा लेने जा रहे हैं। सोनू के साथ हम भी बैलगाड़ी से उनके खेतों में हालात का जायजा लेने गए। वहां पहुंचने पर वह कहते हैं कि जरा ध्यान से सुनिए... उस पार से गाड़ियों के हार्न सुनाई दे रहे हैं। इनसे पता चलता है कि फिलहाल वहां हालात सामान्य है। जब तनाव बढ़ेगा तो शांति छा जाती है।

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