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Jharkhand News: रांची में आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा का महाजुटान, कुड़मी समुदाय की एटी मांग का किया विरोध
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, रांची
Published by: हिमांशु प्रियदर्शी
Updated Sun, 12 Oct 2025 07:21 PM IST
सार
Ranchi News: रांची में आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा के बैनर तले हजारों आदिवासियों ने कुड़मी समुदाय को आदिवासी सूची में शामिल करने का विरोध किया। नेताओं ने कहा कि यह हक और अस्मिता की लड़ाई है और इसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ा जाएगा।
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एटी मांग के विरोध में उतरा आदिवासी समाज
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
रांची में रविवार को आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा के बैनर तले हजारों की संख्या में आदिवासी महिला-पुरुषों ने एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन किया। यह विशाल जुटान मोराबादी स्थित पद्मश्री डॉ. राम दयाल मुंडा फुटबॉल स्टेडियम में आयोजित हुआ। इस दौरान राज्य के विभिन्न जिलों से आए आदिवासी समुदाय के लोगों ने कुड़मी समाज को आदिवासी सूची में शामिल किए जाने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया। सभा स्थल पारंपरिक नारों, वाद्य यंत्रों और झंडों से गूंज उठा।
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‘हम गोली खाएंगे, लेकिन हक नहीं छीनने देंगे’
रैली को संबोधित करते हुए आदिवासी नेता सुषमा बड़ाइक ने कहा कि आदिवासी समुदाय सदियों से अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करता आया है। उन्होंने कहा कि आज कुड़मी समाज हमारे अधिकारों पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहा है। हम इसे किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे। अगर जरूरत पड़ी तो गोली भी खाएंगे, लेकिन अपना हक किसी को नहीं देंगे।
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नेताओं ने उठाई अस्मिता की रक्षा की बात
मोर्चा के अगुवा अजय तिर्की और ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि यह महाजुटान केवल विरोध नहीं, बल्कि अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा के लिए एकजुटता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि हमारा संघर्ष अपने हक और अधिकार को बचाने का है। कुरमी महतो कभी भी आदिवासी नहीं था और न कभी होगा। ये लोग आदिवासी बनकर केवल अराजकता फैलाना चाहते हैं।
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परंपरा और संस्कृति को लेकर भी दी दलीलें
सभा में बिस्वा तिर्की, राहुल उरांव, प्रकाश कच्छप, मन्नू तिग्गा और छोटू आदिवासी सहित कई वक्ताओं ने कहा कि कुरमी समाज और आदिवासी समुदाय की परंपराओं में मूलभूत अंतर है। उन्होंने बताया कि आदिवासी समाज में पूजा-पाठ पाहन के द्वारा की जाती है, जबकि कुड़मी महतो समुदाय में पुजारी पूजा कराते हैं। वक्ताओं ने कहा कि जहां आदिवासी समाज में दहेज प्रथा नहीं है, वहीं कुड़मी समाज में दहेज प्रथा व्यापक रूप से प्रचलित है। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक नेता इस मुद्दे पर अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं।
‘शिवाजी के वंशज होकर आदिवासी कैसे?’
कई वक्ताओं ने तर्क दिया कि कुड़मी समाज स्वयं को शिवाजी का वंशज बताता है, जिसका संबंध राजपूत परिवार से बताया जाता है। ऐसे में उन्हें आदिवासी का दर्जा कैसे दिया जा सकता है? उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक पहचान को किसी भी सूरत में कमजोर नहीं होने देगा।
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