Heart Diseases: देश के ये हिस्से हृदय रोगों का 'रेड जोन', रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा
वैज्ञानिकों की टीम ने बड़ा खुलासा करते हुए बताया है कि दक्षिण भारतीय मूल के लोगों में एक खास जेनेटिक पैटर्न का पता चला है, जिससे उनमें हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।
विस्तार
Heart Diseases In India: हृदय रोग मौजूदा समय में स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं। हर साल इसके कारण लाखों लोगों की मौत हो जाती है। आश्चर्यजनक रूप से युवाओं और बच्चों में भी हार्ट की बीमारी के मामले हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ते हुए देखे गए हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, बदलती जीवनशैली और खान-पान की गड़बड़ी इसका सबसे बड़ा कारण है। शहरीकरण के साथ बैठकर काम करने की आदत, शारीरिक गतिविधियों की कमी, देर रात तक जागना और मोबाइल-लैपटॉप पर अधिक समय बिताना दिल की सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है।
देश के उत्तरी इलाकों में इन दिनों भीषण सर्दी और शीतलहर का प्रकोप भी देखा जा रहा है, सर्दी का मौसम भी दिल की सेहत के लिए बड़ी चुनौतियां लेकर आता है। यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि सिर्फ सर्द मौसम ही नहीं, कुछ अन्य परिस्थितियां भी हैं जो देश के अलग-अलग हिस्सों में हार्ट के मरीजों के मामलों में स्पष्ट अंतर दिखाती हैं।
अब सवाल ये है कि किन राज्यों या देश के किन हिस्सों में हृदय रोगों का खतरा अधिक होता है? क्या वास्तव में स्थानों का भी हृदय की बीमारी से कोई संबंध है? आइए इस बारे में विस्तार से समझते हैं।
देश के दक्षिणी राज्यों में दिल की बीमारी का खतरा अधिक
इसी सवाल का जवाब ढूंढने के लिए बेंगलुरु स्थित इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया। इसमें वैज्ञानिकों की टीम ने बड़ा खुलासा करते हुए बताया है कि दक्षिण भारतीय मूल के लोगों में एक खास जेनेटिक पैटर्न का पता चला है, जिससे उनमें हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।
जर्नल ऑफ द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन में प्रकाशित हुए इस पेपर में जेनेटिक म्यूटेशन पर जोर दिया गया है। विशेषज्ञों ने कहा कि अब आबादी आधारित विशिष्ट स्क्रीनिंग और समावेशी कार्डियोवैस्कुलर रिसर्च की तत्काल जरूरत है ताकि जोखिमों का समय रहते पता लगाने में मदद मिल सके।
हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी की समस्या के बारे में जानिए
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के जर्नल के अनुसार, हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी (एचसीएम) एक अलग तरह की जेनेटिक दिल की बीमारी है जो दुनियाभर में 200-500 लोगों में से एक को प्रभावित करती है। इसमें बिना किसी दूसरी कार्डियक बीमारी के भी दिल का लेफ्ट वेंट्रिकल मोटा हो जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादातर एचसीएम के मामले सार्कोमेयर प्रोटीन बनाने के लिए जिम्मेदार जीन में म्यूटेशन के कारण होते हैं।
देश के दक्षिणी हिस्से के लोगों में इसका खतरा अधिक देखा गया है।
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क्या कहते हैं शोधकर्ता?
इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन (इनस्टेम) के शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि दक्षिण भारतीय मूल के बहुतायत लोगों में कुछ ऐसे जेनेटिक म्यूटेशन हो सकते हैं जो हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी होने का खतरा बढ़ाते हैं। यह एक गंभीर स्थिति है जिससे हार्ट फेलियर या सडेन कार्डियक डेथ का खतरा बढ़ जाता है।
बेंगलुरु में किए गए इस अध्ययन में दक्षिण भारतीय हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी वाले मरीजों के एक बड़े ग्रुप के जीन सीक्वेंस का अध्ययन किया गया। करीब 1,558 लोगों पर किए गए इस अध्ययन में अधिकतर लोगों में ऐसे जेनेटिक म्यूटेशन की पहचान की गई है जो हृदय रोगों का खतरा बढ़ाने वाले हो सकते हैं। इसके विपरीत उत्तर भारतीय लोगों में इसका जोखिम अपेक्षाकृत कम देखा गया।
हृदय स्वास्थ्य पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत
विशेषज्ञों की टीम ने उम्मीद जताई है कि यह अध्ययन भारत में पर्सनलाइज्ड मेडिसिन के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकती। आबादी-विशिष्ट जेनेटिक मार्कर की पहचान के साथ, डॉक्टर अब लक्षित डायग्नोस्टिक टूल और विशेष इलाज विकसित करने की दिशा में काम कर सकते हैं, जिससे दक्षिण भारतीय मरीजों में हृदय रोगों की शुरुआती पहचान और लंबे समय तक चलने वाले क्लिनिकल नतीजों में सुधार हो सकता है।
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स्रोत
Clinically Actionable Hypertrophic Cardiomyopathy Genes in South Asian Indian Patients
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