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Work-Life Balance Tips: धीरे चलकर कैसे पाएं तनाव से मुक्ति और मन की शांति?

लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला Published by: शिवानी अवस्थी Updated Mon, 08 Dec 2025 01:16 PM IST
सार

Work-Life Balance Tips: दुनिया तेजी से भाग रही है तो आपने भी भागना शुरू कर दिया, लेकिन अगर आप इसे अपनी गति में चलने दें तो वह सब महसूस कर पाएंगी, जो तेजी के चक्कर में कहीं पीछे रह जाता है।

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सुबह का समय था। सड़क पर गाड़ियां हॉर्न बजा रही थीं और लोग बेचैन दिख रहे थे, जैसे हर रुकावट उनकी जिंदगी की हार हो। इसी भीड़ में मेरी नजर एक नौजवान पर पड़ी, जो साइकिल पर धीरे-धीरे चल रहा था। पीठ पर बैग, हैंडल पर लंच बॉक्स और चेहरे पर शांत मुस्कान, जैसे उसे कहीं पहुंचने की कोई हड़बड़ी न हो। रेड लाइट आते ही उसके बगल में कार लगाते हुए मैंने पूछा, “इतनी अफरा-तफरी में भी इतने आराम से कहां जा रहे हो?” उसने कहा, “कभी अपनी गति में चलकर देखिए, सब समझ आ जाएगा।” उस क्षण मुझे लगा, सच में हम सब बिना वजह भागे चले जा रहे हैं और अपनी मदमस्त चाल में चलना भूल गए हैं।

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तेजी की अंधी दौड़

आज हम सुबह से लेकर रात तक घड़ी की सुइयों से लड़ते रहते हैं। ऑफिस पहुंचना है, बच्चों को स्कूल छोड़ना है, मीटिंग अटेंड करनी है और मेल से लेकर सोशल मीडिया तक हर अपडेट जाननी है। हर कोई मानो प्रतियोगिता में है और मंजिल? पता ही नहीं। हम सोचते हैं कि जितनी तेजी से दौड़ेंगे, उतनी जल्दी सफलता पा लेंगे। मगर यह जल्दी हमें क्या दे रही है? थकान, तनाव और बस अधूरापन। फिर जब-जब ठहरकर पीछे देखते हैं तो पाते हैं कि जीवन के सबसे खूबसूरत पल तो हमारी उंगलियों से फिसल चुके हैं।
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ठहराव का स्वाद

धीरे चलना आलस्य नहीं, बल्कि हर पल का स्वाद लेने की कला है। जैसे चाय को धीरे-धीरे चखने पर उसका असली स्वाद मिलता है, वैसे ही जीवन को भी ठहर कर जीने में आनंद है। प्रकृति भी यही सिखाती है- सूरज धीरे उगता है, बीज समय लेकर पेड़ बनता है, नदी शांत गति से समुद्र तक पहुंचती है। यदि प्रकृति भी हड़बड़ी करती तो शायद जीवन ही असंभव हो जाता। अपनी मदमस्त चाल में चलना हमें सिखाता है कि हर क्षण को उसके पूरे सौंदर्य के साथ जीना चाहिए।

धीरे चलने की कला

धीरे, सजग और पूरे मन से चलना केवल काम पूरा करना नहीं, बल्कि जीवन को महसूस करने का तरीका है। बच्चों की बातें सुनना, रास्ते के पेड़-पौधों और आसमान को देखना और भोजन को स्वाद लेकर खाना- ये छोटी-छोटी बातें हमें जीवन से जोड़ती हैं। आज की युवा पीढ़ी तेजी से सफलता चाहती है, मगर बिना संतुलन की सफलता भीतर से खोखला कर देती है। इसलिए धीरे चलने का अभ्यास आवश्यक है। यह हमें याद दिलाता है कि हम मशीन नहीं, संवेदनशील इन्सान हैं, जिन्हें सीखने, महसूस करने और जुड़ने की जरूरत होती है।

कैसे करें शुरुआत

दिन में दस मिनट चुपचाप बैठें। हफ्ते में एक दिन बिना किसी लक्ष्य के टहलें। परिवार के साथ बिना मोबाइल के बैठें और सिर्फ बातें करें। सबसे जरूरी, कभी-कभी बस ‘कुछ न करें’। जीवन एक दौड़ नहीं, बल्कि एक यात्रा है और इस यात्रा की खूबसूरती मंजिल पर नहीं, बल्कि रास्ते में बिखरी छोटी-छोटी खुशियों में है। धीरे चलने की कला हमें यह सिखाती है कि खुशी कोई बड़ी चीज नहीं, बल्कि वही है, जो रोजमर्रा की सामान्यताओं में छिपी है। आइए, आज से तय करें कि हमें हर हाल में धीरे चलना है, क्योंकि वही इन्सान जीवन के असली रंगों को देख पाता है, जो ठहरकर हर क्षण का स्वाद लेना जानता है।

रोजाना एक खुशी का काम

वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. हेमा खन्ना बताती हैं, लगातार व्यस्त जीवन जीने से मन थक जाता है और छोटी खुशियों को महसूस करने की क्षमता कम हो जाती है। इसे वापस पाने के लिए दिन की शुरुआत धीमे रूप से करें। स्ट्रेचिंग करें, सांसों पर ध्यान दें और स्क्रीन को दूर रखें। काम के दौरान हर घंटे कुछ मिनट का विराम दिमाग को रीसेट करता है। साथ ही एक समय में एक काम करें। इससे तनाव घटता है और संतुष्टि बढ़ती है। रोजमर्रा की छोटी खुशियों, खुशबू, रोशनी, स्वाद को सचेत रूप से महसूस करें और रोज 2–3 अच्छी बातों के लिए कृतज्ञता जताएं। मानसिक बोझ कम करने के लिए कामों को लिख लें। दिन में थोड़ी देर ताजी हवा में टहलें और डिजिटल सीमाएं तय करें। शाम को में हल्की रोशनी और शांत माहौल में रहें। रोज एक छोटा ‘खुशी का काम’ जरूर करें। यह तरीका आपको जीवन का स्वाद लेने में मदद करेगा।

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