अयोध्या ढांचा ध्वंस में बिना साक्ष्यों के 49 लोगों को बना दिया गया था आरोपी, मुख्य विवेचक ने किया खुलासा
अयोध्या स्थित ढांचा ध्वंस मामले में पूरी विवेचना दूषित रही है। सीबीआई ने गंभीरता से जांच नहीं की और बिना साक्ष्यों के भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत 49 लोगों को आरोपी बना दिया था। इसका खुलासा कोर्ट में गवाही के दौरान मुख्य विवेचक एम नारायण की स्वीकारोक्ति से हुआ है।
नारायण ने कोर्ट को बताया था कि उन्होंने ढांचा ध्वंस को लेकर रामजन्मभूमि थाना के तत्कालीन प्रभारी प्रियंबदा नाथ शुक्ला और रामजन्मभूमि चौकी के तत्कालीन प्रभारी जीपी तिवारी ने जो दो मामले दर्ज कराए थे उनकी विवेचना की थी। इन दो मामलों के अलावा और 47 मुकदमे दर्ज हुए, लेकिन उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं थी।
उन्होंने दो मुकदमों को छोड़कर अन्य 47 मुकदमों में न तो घटनास्थल का निरीक्षण किया, न ही किसी गवाह की गवाही दर्ज की। हालांकि उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि पूरी विवेचना के दौरान उन्हें ऐसा कोई गवाह नहीं मिला, जिसने यह गवाही दी हो कि किसी भी आरोपी ने ढांचा तोड़ने के लिए उकसाया हो या ढांचा तोड़ा हो। उन्होंने सिर्फ अखबार और वीडियो कैसेटों को आधार मानकर विवेचना की थी। उन्हें कुछ फोटोग्राफ मिले थे, लेकिन विधि विज्ञान प्रयोशाला से उसका परीक्षण नहीं कराया था।
मुख्य विवेचक ने कोर्ट में ये दिए बयान
मुख्य विवेचक ने कोर्ट को दिए बयान में कहा था कि उन्होंने तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह के कार्यालय नोट को विवेचना में शामिल किया था। इसमें बताया गया था कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी से कुछ लोग अयोध्या के जनसमूह में शामिल होकर ढांचे को विस्फोटक से नुकसान पहुंचाकर अशांति फैसला सकते हैं।
इसकी विवेचना में सीएसएफएल के दो विशेषज्ञों के साथ घटनास्थल से कुछ सामग्री सीज की। जिससे पता चला कि ढांचा तोड़ने में किसी विस्फोटक सामग्री का प्रयोग नहीं किया गया था। हालांकि कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इतनी महत्वपूर्ण सूचना होने के बावजूद इस तथ्य के संबंध में कोई विवेचना नहीं की गई थी।
आरोपियों के एक जगह एकत्र होने के सुबूत नहीं
मुख्य विवेचक ने कोर्ट को बताया था कि सभी 49 आरोपी घटना वाले दिन यानी 6 दिसंबर 1992 से पहले किसी खास दिन, खास स्थान पर एकत्र हुए हों और उनके बीच 6 दिसंबर की कारसेवा को लेकर कोई चर्चा हुई हो, इस संबंध में उन्हें कोई साक्ष्य नहीं मिला है।
इस बात के साक्ष्य भी नहीं मिले कि किसी आरोपी ने किसी व्यक्ति की कोई वस्तु या संपत्ति छीनी या लूटी हो। विवेचना के लिए फोटो, समाचार पत्रों की खबर और वीडियो कैसेट को आधार बनाने वाले विवेचक ने स्वीकार किया कि यह जरूरी नहीं है कि इन माध्यमों से मिली हर खबर सही हो। फिर भी इन खबरों की सत्यता की जांच कराने के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला का सहारा नहीं लिया गया।
...और कोर्ट ने सभी आरोपियों को कर दिया बरी
कोर्ट ने सीबीआई की विवेचना में एकत्र साक्ष्यों में से ज्यादातर को अस्वीकार करते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया। कहा, सीबीआई के पास कोई साक्ष्य नहीं था कि सभी आरोपियों ने किसी कमरे में बैठकर ढांचा गिराने की कोई योजना बनाई हो।
सीबीआई ने एक अक्तूबर 1990 से मई 1993 के बीच हुई जनसभाओं, प्रेस कॉन्फ्रेंस, साक्षात्कार और मीटिंग के संबंध में समाचार पत्रों में छपी खबरों के आधार पर सभी 49 लोगों को षड्यंत्र का हिस्सा बना दिया।
कोर्ट ने आगे कहा, खबरों को मजबूत गवाही के जरिए साबित न करने पर उसे सुबूत नहीं माना जा सकता है। क्योंकि गवाही के दौरान समाचार पत्रों के संवाददाताओं और संपादकों ने स्वीकार किया कि संवाददाता की खबरों में काटछांट होती है।