थाने में धरने पर बैठी छात्राएं: पैरामेडिकल संस्थान की मनमानी से परीक्षा से हुईं वंचित, पुलिस पर मिलीभगत आरोप
अमेठी में पैरामेडिकल संस्थान की मनमानी से 36 छात्राएं परीक्षा से वंचित रह गईं। उन्होंने संस्थान पर मनमानी का आरोप लगाया है। बताया कि उनसे पहले दो लाख रुपये फीस ली गई फिर परीक्षा दिलाने के नाम पर भी भारी वसूली की गई।

विस्तार
अमेठी शहर स्थित एक निजी पैरामेडिकल कॉलेज की लापरवाही ने 36 छात्राओं की शिक्षा और करियर पर ग्रहण लगा दिया है। दो वर्षीय एएनएम पाठ्यक्रम के अंतिम चरण की परीक्षा से पूर्व छात्राओं को एडमिट कार्ड नहीं सौंपे गए, जिससे उनका परीक्षा में शामिल होना असंभव हो गया। नाराज छात्राएं अभिभावकों के साथ कोतवाली पहुंचीं और धरने पर बैठ गईं।

पूजा त्रिपाठी, अंजली, सलोनी, प्राची, सत्य भारती, रुचि, कोमल, एकता, नेहा यादव, सीमा, अंजू, कविता, प्रीति कोरी, साक्षी, सुधा सिंह, शालिनी, लक्ष्मी, तान्या, प्रिया मोदनवाल और कोमल प्रिया सहित अन्य छात्राओं का कहना है कि संस्थान ने दो-दो लाख रुपये की वसूली के बावजूद दर्जनों का पंजीकरण तक नहीं कराया। जिनका पंजीकरण हुआ भी, उन्हें परीक्षा केंद्र तक पहुंचने के लिए अलग से भारी रकम मांगी गई। कुछ को बरेली में परीक्षा केंद्र आवंटित किया गया, जहां अतिरिक्त 40-40 हजार रुपये देने के लिए बाध्य किया गया।
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संस्थान के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान छात्राओं ने बताया कि यह कॉलेज असल में वर्षों से कोचिंग सेंटर के रूप में चल रहा है। नामांकन लेकर छात्रों को जौनपुर, नोएडा या बरेली स्थित कॉलेजों में भेजा जाता है। पूरी फीस देने के बावजूद जब परीक्षा में बैठने से रोका गया, तब सभी छात्राएं व परिजन आक्रोशित हो उठे। कोतवाली पहुंची भीड़ ने संचालक प्रिंस आजम खां के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। पुलिस पर आरोप लगाया गया कि वह संचालक से मिली हुई है।
अभिभावकों ने कहा कि संचालक को थाने बुलाया गया था लेकिन उसने अस्वस्थ होने का बहाना बनाकर खुद को सीएचसी भिजवा लिया और वहां से चुपचाप निकल गया। एसडीएम आशीष सिंह, एएसपी शैलेंद्र सिंह और सीओ मनोज कुमार मिश्र ने मौके पर पहुंचकर स्थिति संभालने की कोशिश की। अधिकारियों ने कार्रवाई का आश्वासन दिया। सीओ ने बताया कि मामले में केस दर्ज किया गया है। एक आरोपी हिरासत में है और पूछताछ जारी है। मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी की प्रयास किया जा रहा है।
लोन और उधार में फंसे परिजन, भविष्य अधर में
छात्राओं के परिवारों ने बताया कि बेटियों की पढ़ाई के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास से धन जुटाया। किसी ने लोन लिया, किसी ने जेवर गिरवी रखे। अब परीक्षा में रोक लगने से सभी परिवार खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
प्रशासनिक उदासीनता से पनपता रहा फर्जीवाड़ा
स्थानीय निवासियों का कहना है कि संस्थान वर्षों से कोचिंग सेंटर की तरह चल रहा था लेकिन किसी भी जिम्मेदार अधिकारी ने स्थिति की जांच नहीं की। अब जब मामला सामने आया तो पूरे तंत्र की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं।
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