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Lucknow News: सैन्य न्याय में न दबने पाए पीड़ितों की आवाज
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सैन्य न्याय में न दबने पाए पीड़ितों की आवाज
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माई सिटी रिपोर्टर
लखनऊ। सेना अधिनियम के पचहत्तर वर्ष-विकास, सहनशक्ति व स्वर्णिम भारत में सैन्य न्याय के भविष्य विषय पर तीसरा ब्रिगेडियर जस्टिस डीएम सेन वार्षिक स्मृति व्याख्यान गत दिवस छावनी स्थित मध्य कमान मुख्यालय की ओर से आयोजित किया गया।
जनसंपर्क अधिकारी शांतनु प्रताप सिंह ने बताया कि व्याख्यान श्रृंखला भारतीय सेना के पहले भारतीय जज एडवोकेट जनरल ब्रिगेडियर जस्टिस दिव्येंद् मोहन सेन की याद में होता है। कार्यक्रम में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राजेश बिंदल मुख्य अतिथि थे। उन्होंने सैन्य न्याय की सहनशक्ति और भविष्य पर व्याख्यान दिया। मध्य कमान के डिप्टी जैग ब्रिगेडियर सच्चिदानंद प्रभु ने ब्रिगेडियर जस्टिस डीएम सेन के जीवन पर प्रकाश डाला। मध्य कमान के सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल अनिंय सेनगुप्ता ने सैन्य कानून पर एक कमांडर के दृष्टिकोण से सभा को संबोधित किया। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन ने सैन्य न्याय प्रणाली में मुकदमेबाजी के परिवर्तन पर रोशनी डाली। सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल राज शुक्ला ने अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्ष पर सैन्य कानून के प्रभाव के बारे में बताया और मेजर जनरल संदीप कुमार ने पिछले 75 वषों में सेना अधिनियम द्वारा तय किए गए मागे पर विचार व्यक्त किए। जैग कोर के अधिकारियों ने संवैधानिक मूल्यों और सेना अधिनियम की कठोरता के बीच सैनिक की स्थिति पर प्रस्तुति दी। मेजर एम अंजना ने आमी में पीडितों को सशक्त वनाने की जरूरत पर जोर दिया। मेजर पायल त्रिपाठी ने नैतिकता और सशस्त्र बलों के समावेश पर विचार व्यक्त किए। जनसंपर्क अधिकारी ने आगे बताया कि यह व्याख्यान सेना अधिनियम के पचहत्तर साल पूरे होने का उत्सव था, जो स्वर्णिम भारत के एक औपनिवेशिक राज्य से एक मजबूत संवैधानिक लोकतंत्र में परिवर्तन को दशोता है।

सैन्य न्याय में न दबने पाए पीड़ितों की आवाज
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