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UP News: जिसे समझा प्रेतबाधा व मिर्गी... वह निकली मानसिक बीमारी, ये लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं
चंद्रभान यादव, अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ
Published by: भूपेन्द्र सिंह
Updated Thu, 27 Nov 2025 06:52 PM IST
सार
जिसे लोग प्रेतबाधा और मिर्गी समझते हैं, असल में कई बार वह मानसिक बीमारी होती है। यदि किसी बच्चे को दौरे पड़ रहे हैं तो उसे प्रेत बाधा न मानें। डॉक्टर को दिखाएं और जांच कराएं। आगे पढ़ें और जानें इसके क्या लक्षण हैं...
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मिर्गी और दौरा।
- फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
यदि किसी बच्चे को दौरे पड़ रहे हैं तो उसे प्रेत बाधा न मानें। डॉक्टर को दिखाएं और जांच कराएं। यदि मिर्गी (एपिलेप्सी) की भी पुष्टि नहीं हो रही है तो इसे मानसिक रोग विशेषज्ञ को दिखाएं। उसे फंक्शनल सीजर नामक बीमारी हो सकती है।
इसमें मस्तिष्क के सर्किट में बदलाव आ जाता है। इसकी मुख्य वजह मानसिक आघात है। यह खुलासा हुआ है सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च सीबीएमआर और केजीएमयू के संयुक्त अध्ययन में। इस अध्ययन रिपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय जर्नल एपिलेप्सी एंड बिहैवियर में प्रकाशित किया गया है।
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इसमें मस्तिष्क के सर्किट में बदलाव आ जाता है। इसकी मुख्य वजह मानसिक आघात है। यह खुलासा हुआ है सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च सीबीएमआर और केजीएमयू के संयुक्त अध्ययन में। इस अध्ययन रिपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय जर्नल एपिलेप्सी एंड बिहैवियर में प्रकाशित किया गया है।
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भय पैदा होने से मिर्गी की तरह दौरे पड़ने लगते हैं
केजीएमयू, लोहिया संस्थान सहित विभिन्न अस्पतालों में ऐसे बच्चे आते हैं, जिनमें लगातार दौरे पड़ते हैं। मिर्गी की दवा भी इन पर असर नहीं करती है। ये वे बच्चे होते हैं, जिन्हें किसी तरह का मानसिक आघात पहुंचा है। यदि उनके मन में किसी बात को लेकर भय पैदा हो गया, पारिवारिक लड़ाई को देखकर अवसाद में चले गए। छेड़छाड़ जैसी घटना हो गई अथवा स्कूल में अध्यापक की वजह से किसी तरह का भय पैदा हो गया तो उनमें मिर्गी की तरह दौरे पड़ने लगते हैं।इसकी वजह भावनात्मक और भय पैदा करने वाले मस्तिष्क नेटवर्क में बदलाव आ जाता है। दौरे पड़ने पर कुछ लोग इसे प्रेत बाधा मान कर झाड़फूंक शुरू कर देते हैं। कुछ लोग उसे मिर्गी समझ लेते हैं। कई बार मिर्गी का उपचार शुरू होता है, लेकिन ऐसे बच्चों पर दवा का असर नहीं होता है। इन बच्चों को मानसिक रोग विभाग में दिखाना चाहिए।
दौरा पड़ने की वजह है मस्तिष्क सर्किट में बदलाव
एसजीपीजीआई परिसर स्थित सीबीएमआर के डॉ. उत्तम कुमार, कल्पना धनिक, केजीएमयू मानसिक रोग विभागाध्यक्ष प्रो विवेक अग्रवाल और प्रो अमित आर्या ने फंक्शनल सीजर को लेकर अध्ययन किया। मस्तिष्क के नेटवर्क में होने वाले बदलाव को देखने की कोशिश की।इसके लिए 120 बच्चों के मस्तिष्क की थी टेक्सला एमआरआई की गई। जिन 60 बच्चों में मिर्गी की दवा बेअसर थी, उनमें फक्शनल सीजर (एफएस) की बीमारी पाई गई। मतिष्क सर्किट के ऊतकों में कई तरह के बदलाव मिले। सामान्य भाषा में कहा जाए तो ऐसे चच्चों में भावनात्मक और भय पैदा करने वाले नेटवर्क गड़बड़ मिले, जिसकी वजह से उनमें दौरे आते हैं।
क्या है फंक्शनल सीजर
सीबीएमआर के डॉ. उत्तम कुमार ने बताया कि फेक्शनल सीजर ऐसे दौर हैं, जो बाहर से देखने में मिर्गी जैसे लगते हैं, लेकिन इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम (ईईजी) में मिर्गी की विशिष्ट तरंगें नहीं दिखाईदेती। यह दिमाग और मन के बीच तालमेल की जटिलताओं से जुड़ा न्यूरोलॉजिक/ साइकोलॉजिक विकार है। यह दिमाग के नेटवर्क में वास्तविक बदलावों से जुड़ा मामला है।
अक्सर यह बच्चों और किशोरों में भावनात्मक दबाब, तनाव और बढ़ी हुई संवेदनशीलता में सामने आते हैं। गलत पहचान की स्थिति में इन्हें मिर्गी मानकर एंटी-एपिलेप्टिक दवाएं दे दी जाती हैं, जो नुकसानदेय होती हैं। यदि इन बच्चों का शुरुआती दौर में ही मानसिक उपचार शुरू हो जाए तो ठीक हो जाते हैं। ऐसे मरीजों को मानसिक दवाओं और न्यूरोरीहैब के जरिए ठीक किया जा सकता है।