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कैलाश खेर बोले: देश और धर्म से परे हैं संगीत की सीमाएं, पूरे विश्व में बढ़ी है अध्यात्मिक संगीत की मांग

अभिषेक सहज, अमर उजाला लखनऊ Published by: रोहित मिश्र Updated Sun, 23 Feb 2025 07:42 AM IST
सार

Kailash Kher Interview: अमर उजाला के कार्यक्रम में आए कैलाश खेर ने विशेष बातचीत में आजकल बन रहे संगीत पर अपनी बात रखी। 

 

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Kailash Kher said: The boundaries of music are beyond country and religion, demand for spiritual music has inc
मंच पर कैलाश खेर। - फोटो : अमर उजाला।
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विस्तार
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 सूफी संगीत के साथ पॉप-रॉक और फोक को जोड़ने वाले बॉलीवुड के मशहूर गायक पद्मश्री कैलाश खेर ने कहा कि आध्यात्मिक संगीत ही जीवन की सच्चाई है। संगीत का अंतिम लक्ष्य भी वही है। कैलाश खेर शनिवार को अमर उजाला के आयोजन एलएलसी टेन-10 के समापन अवसर पर लाइव कंसर्ट के लिए लखनऊ में थे।

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उन्होंने कहा कि मुझे बचपन से ही परिवार में संगीत और अध्यात्म की शिक्षा मिली जिसकी वजह से मेरे गीतों में इसका असर भी दिखता है। उन्होंने कहा कि संगीत ईश्वर का संदेश है। पिछले दिनों कोविड में पूरी दुनिया को समझ में आ गया कि जीवन को कैसे जीना है। यही वजह है कि न सिर्फ बुजुर्ग बल्कि युवा भी आध्यात्मिक संगीत को पसंद कर रहे हैं और इन गीतों को गाने वालों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। कहा कि अच्छे विचार सभी को मोह लेते हैं। उन्होंने कहा कि वे गीत खुद ही लिखते हैं, कंपोज करते हैं और गाते भी हैं।
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कच्चा फल बाजार की भी बदनामी कराता है
सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म पर नए गायकों की बाढ़ सी आने के सवाल पर उन्होंने कहा कि कच्चा फल उस बाजार की भी बदनामी कराता है जहां उसे ले जाया जाता है। पका फल खुशबू बिखेरता है। इसी तरह से बिना प्रशिक्षण और कठिन रियाज के जो युवा संगीत के क्षेत्र में कॅरिअर बना रहे हैं, वे लंबी दूरी तय नहीं कर पाते। कैलाश खेर ने कहा कि जो दाना मिट्टी में गलता है वही फलता है। बिना तपस्या के मनचाहे फल की इच्छा नहीं की जा सकती।

देश-धर्म से परे हैं संगीत की सीमाएं

Kailash Kher said: The boundaries of music are beyond country and religion, demand for spiritual music has inc
कार्यक्रम देखने उमड़े लोग। - फोटो : अमर उजाला।
कैलाश खेर ने कहा कि संगीत धर्म की सीमाएं देश और धर्म से परे होती हैं। बताया कि मैं पिछले दिनों गल्फ देशों में कार्यक्रम करने गया तो जब मैंने अपना गीत हीरे मोती मैं ना चाहूं मैं तो चाहूं संगम तेरा... सुनाया तो वहां मौजूद लोग झूम उठे। इसकी एक पंक्ति तुझे जीत जीत हारूं ये प्राण प्राण वारूं, हाय ऐसे मैं निहारूं तेरी आरती उतारूं... सुनाया तो वहां के शेख भी अपनी जगह पर खड़े होकर नाचने लगे। यही है संगीत की ताकत जो न देश देखती है और न धर्म।

हम गाते नहीं बल्कि जगाते हैं
20 भाषाओं में कैलाश खेर अब तक दो हजार से ज्यादा गाने गा चुके हैं। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मैं इसके लिए ईश्वर का बहुत आभारी हूं कि ऊपर वाले ने इसके लिए मुझे चुना। उन्होंने कहा कि संगीत मेरे लिए केवल मनोरंजन नहीं बल्कि ईश्वर की आराधना है। मैं सिर्फ गाता ही नहीं हूं, लोगों को जगाता भी हूं।

 
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