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शिकारी भेड़ियों का शिकार: दो साल में छह ढेर...तीन पकड़े गए जिंदा; लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल करने की मांग

अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ Published by: भूपेन्द्र सिंह Updated Tue, 16 Dec 2025 09:44 AM IST
सार

यूपी के बहराइच में दो साल में 6 आदमखोर भेड़िये मारे गए। जबकि, तीन को वनकर्मियों ने जिंदा पकड़ा। भेड़ियों को लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल करवाने के लिए वन्यजीव प्रेमी प्रयासरत हैं। 

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Six wolves killed three caught alive by forest officials in UP demand for inclusion in endangered species list
आदमखोर भेड़िये बड़ी समस्या - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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यूपी में नेपाल बॉर्डर से सटे बहराइच में आदमखोर भेड़िये बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि भेड़ियों को जिंदा पकड़ना चुनौतीपूर्ण तो है, पर असंभव नहीं। बहराइच में पिछले साल वनकर्मियों ने तीन आदमखोर भेड़ियों को जिंदा पकड़कर यह साबित भी कर दिया है। हालांकि, इन दो वर्षों में छह भेड़ियों को मारना भी पड़ा है।

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भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) देहरादून से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि पूरे देश में 2800 भेड़िये (वुल्फ) ही हैं। यूपी में 100-200 ही होंगे। हालांकि, भेड़ियों की आधिकारिक गणना कभी नहीं हुई है, इसलिए सटीक संख्या नहीं बताई जा सकती। उत्तर प्रदेश वन एवं वन्यजीव विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने के अनुरोध पर बताया कि डब्ल्यूआईआई के विशेषज्ञ जितने भेड़िये बता रहे हैं, यूपी में उससे कहीं ज्यादा हैं। यूपी में इनकी संख्या दो हजार तक हो सकती है।

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क्यों आ रही है समस्या

भेड़िये आम तौर पर छोटे कद के हिरनों, बकरी, खरगोश और भेड़ों का शिकार करते हैं और नदियों के कछार में मुलायम जमीन के भीतर मांद बनाकर रहते हैं। यह आदमखोर तभी बनते हैं, जब इनका प्रे-बेस यानी उनके शिकार के लिए उपयुक्त जीव कम हों। या फिर, किन्हीं कारणों से इनके प्राकृतिक वास को क्षति पहुंचाई जा रही हो। वन विभाग के ही एक अधिकारी बताते हैं कि नदियों के कछार में खनन के चलते भेड़ियों की मांदें क्षतिग्रस्त हो रही हैं, जिससे ये इंसानों के लिए भी हिंसक बन जाते हैं।

विलुप्त प्रजातियों में नहीं हो सके शामिल

डब्ल्यूआईआई ने इन्हें विलुप्त प्रजातियों में शामिल करवाने के प्रयास किए। इसके लिए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) को आवेदन दिया गया। आईयूसीएन किसी भी वन्यजीव को विलुप्त प्रजातियों में तभी शामिल करती है, जब यह बताया जाए कि विगत तीस वर्षों में उन जीवों की संख्या में कितनी कमी आई है। भेड़ियों की तीस साल पहले की संख्या की जानकारी नहीं है, इसलिए यह विलुप्त प्रजाति में शामिल नहीं हो सके। अलबत्ता इन्हें वल्नरेबल कैटेगरी (खतरे में प्रजाति) में रखा गया है।

जीवित पकड़ने की हो यथासंभव कोशिश : डॉ. शहीर

डब्ल्यूआईआई के विशेषज्ञ डॉ. शहीर खान कहते हैं कि भेड़ियों को पकड़ना बहुत मुश्किल है। यह लगातार तेज दौड़ते रहते हैं। इसलिए बाघों और तेंदुओं की तरह इन्हें ट्रैंक्युलाइज (बेहोश करना) बहुत ही मुश्किल काम है। भेड़ियों का जो समूह आदमखोर हो जाता है, इंसानों और खासकर बच्चों को बचाने के लिए तत्काल कदम उठाना पड़ता है। इन सब स्थितियों के बीच जहां तक संभव हो यूपी के वन विभाग को भेड़ियों को मारने के बजाय जीवित पकड़ने की कोशिश करनी चाहिए। इससे पहले वे इन्हें जिंदा पकड़ भी चुके हैं।

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