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सुना है क्या: आज 'कल्याण हो तो सबका' की कहानी, साथ ही वाहन नहीं पैसा चाहिए और लखनऊ पुलिस के खाली हाथ के किस्से

अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ Published by: भूपेन्द्र सिंह Updated Tue, 30 Dec 2025 11:14 AM IST
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सार

यूपी के राजनीतिक गलियारे और प्रशासन में तमाम ऐसे किस्से हैं, जो हैं तो उनके अंदरखाने के... लेकिन, चाहे-अनचाहे बाहर आ ही जाते हैं। ऐसे किस्सों को आप अमर उजाला के "सुना है क्या" सीरीज में पढ़ सकते हैं। तो आइए पढ़ते हैं इस बार क्या है खास...

suna hai kya story of Kalyan Ho To Sabka along with need for money not vehicles and Lucknow police stories
सुना है क्या/suna hai kya - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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यूपी के राजनीतिक गलियारे और प्रशासनिक गलियों में आज तीन किस्से काफी चर्चा में रहे। चाहे-अनचाहे आखिर ये बाहर आ ही जाते हैं। इन्हें रोकने की हर कोशिश नाकाम होती है। आज की कड़ी में 'वाहन नहीं, पैसा चाहिए' की कहानी। इसके अलावा 'कल्याण हो तो सबका' और 'लखनऊ पुलिस... खाली हाथ' के किस्से भी चर्चा में रहे। आगे पढ़ें, नई कानाफूसी...

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वाहन नहीं, पैसा चाहिए

आधी आबादी के कल्याण से जुड़े महकमे में लालबत्ती वाली एक मैडम के बजट मैनेजमेंट की खूब चर्चा है। दरअसल, सरकार ने मैडम की पात्रता के हिसाब से एक एजेंसी के जरिये वाहन उपलब्ध कराया है। अब मैडम भी ठहरीं मैनेजमेंट में माहिर। चर्चा है कि मैडम एजेंसी वाले से वाहन नहीं ले रही हैं। इसके बदले वह एजेंसी संचालक से उस धनराशि की मांग कर रही हैं, जो वाहन चलने के एवज में सरकार से एजेंसी को भुगतान किया जा रहा है। वहीं, मैडम अपने वाहन से चलती हैं। कहा यह भी जा रही है कि एजेंसी वाले ने दो-तीन महीने से मैडम को पैसे देने शुरू भी कर दिए हैं।

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कल्याण हो तो सबका

वित्त नियंत्रक महोदय ने सरकारी खजाने से डेढ़ लाख रुपये का मोबाइल फोन खरीदा है। ऑडिट वालों ने भी आंखें बंद करके मामला आगे सरका दिया है। अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों को भी उनके सरकारी खजाने से मोबाइल लेने पर कोई एतराज नहीं, बस वे तो वो नियम जानना चाहते हैं, जिसके तहत जेम पोर्टल से यह खरीद हुई है। उनकी दूसरी इच्छा यह है कि यह सुविधा उन्हें भी मिलनी चाहिए। कल्याण हो तो सबका!

लखनऊ पुलिस... खाली हाथ

राजधानी में दो दिन अपराध और अपराधियों पर शिकंजा कसने की रणनीति बनी। प्रदेश के मुखिया ने कई जिलों के पुलिसकर्मियों को सम्मानित किया। एक सीपी को मुखिया ने मंच से ही सराहा लेकिन इस महफिल से लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट नदारद सा रहा। वह बस ड्यूटी में लगे रहे। लखनऊ पुलिस की कोई ऐसी उपलब्धि नहीं रही जिससे उनको महफिल में रंग जमाने का मौका मिलता। चोर, गांजा तस्करों जैसे अपराधियों पर कार्रवाई ही लखनऊ पुलिस की उपलब्धि रही है। बरेली, संभल, बिजनौर, आगरा, लखीमपुर खीरी, मथुरा, नोएडा जैसे जिलों के पुलिस अफसरों की चमक मंथन में दिखी। राजधानी पुलिस बस तालियां बजाती रह गई।

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