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UP: गोहत्या कानून के दुरुपयोग पर यूपी पुलिस को हाईकोर्ट की फटकार, पूछा- स्पष्ट फैसलों के बाद भी ये क्यों जारी

अमर उजाला नेटवर्क, लखनऊ Published by: ishwar ashish Updated Wed, 15 Oct 2025 10:21 AM IST
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सार

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कोर्ट में आने वाली उन याचिकाओं की भारी संख्या पर गंभीर चिंता व्यक्त की, जिनमें व्यक्तियों को गोहत्या अधिनियम के तहत झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है।
 

UP: High Court reprimands UP Police for misusing cow slaughter law
- फोटो : ANI
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विस्तार
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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश गोहत्या निवारण अधिनियम, 1955 के तहत पुलिस अधिकारियों द्वारा मामले दर्ज करने के लापरवाह तरीके पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार के शीर्ष अधिकारियों को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि स्पष्ट न्यायिक फैसलों के बावजूद ऐसे मामले क्यों जारी हैं। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर को तय की है।



न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन और न्यायमूर्ति अबधेश कुमार चौधरी की खंडपीठ ने प्रमुख सचिव (गृह) और पुलिस महानिदेशक को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के अधीन न होने के बावजूद ऐसी एफआईआर क्यों दर्ज की जा रही हैं?
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कोर्ट ने राहुल यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। राहुल ने प्रतापगढ़ में गोहत्या अधिनियम की धारा 3, 5ए और 8 तथा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 11 के तहत अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का आग्रह किया था।

राहुल यादव ने दलील दी कि उनका ड्राइवर गाड़ी लेकर वापस नहीं लौटा और बाद में उन्हें पता चला कि गाड़ी को नौ गोवंशों के साथ जब्त कर लिया गया है, जिन्हें कथित तौर पर वध के लिए ले जाया जा रहा था। उन्होंने कहा कि इस अपराध में उनकी कोई भूमिका नहीं है, लेकिन पुलिस उन्हें परेशान कर रही है।

पीठ ने कहा कि एफआईआर से यह पता चलता है कि पशु जीवित पाए गए थे और ऐसा कोई आरोप नहीं है कि उन्हें राज्य से बाहर ले जाया जा रहा था। पीठ ने यह भी कहा कि गोहत्या अधिनियम की धारा 5ए केवल अंतरराज्यीय परिवहन पर लागू होती है। इसी प्रकार किसी भी प्रकार के वध या अपंगता का आरोप नहीं लगाया गया था, इसलिए धारा 3 और 8 लागू नहीं होतीं।

कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि, याचिकाकर्ता न तो वाहन का चालक था और न ही वाहन में मौजूद था, इसलिए पशु क्रूरता अधिनियम के प्रावधान प्रथम दृष्टया लागू नहीं होते। आदेश में खंडपीठ ने कोर्ट में आने वाली उन याचिकाओं की भारी संख्या पर गंभीर चिंता व्यक्त की, जिनमें व्यक्तियों को गोहत्या अधिनियम के तहत झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है, जबकि इनमें किसी भी प्रकार का वध, चोट या अंतरराज्यीय परिवहन शामिल नहीं है।

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