सत्ता और सियासत: सिंधिया कुछ कहें और संगठन चुप रहे यह संभव नहीं, CM यादव इस सियासी चाल से मंत्री पड़े अलग-थलग
देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से अब यह खबर सामने आ रही है कि महापौर पुष्यमित्र भार्गव और निगमायुक्त शिवम वर्मा की पटरी नहीं बैठ रही है। ऐसा प्रतिभा पाल और हर्षिका सिंह के निगमायुक्त रहते हुए भी हो चुका है। पढ़िए, सत्ता और सियासत का यह कॉलम...
विस्तार
सालभर बाद जामवाल फिर मैदान में, तैयार कर रहे हैं विधायकों का बहीखाता
विधानसभा चुनाव के पहले क्षेत्रीय संगठन महामंत्री की हैसियत से अजय जामवाल ने मंडल स्तर तक पहुंचकर विधायकों के कामकाज का लेखाजोखा तैयार किया था। इसी लेखाजोखा ने भाजपा के टिकट तय करवाने में अहम भूमिका निभाई थी। मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के सालभर बाद जामवाल फिर मैदान में आ गए हैं। इस बार वे संभाग स्तर पर पहुंचकर विधायकों से रूबरू हो रहे हैं और उनसे पूछ रहे हैं कि एक साल में उन्होंने अपने क्षेत्र के लिए क्या-क्या किया है। जो विधायक बता रहे हैं, उसको वे अपने बहीखाते मेें दर्ज भी करते जा रहे हैं। देखना यह है कि यह प्रक्रिया विधायकों के काम करने के तरीके में कितना बदलाव ला पाती है। वैसे इस संवाद में कई विधायक जामवाल के निशाने पर आने से नहीं बच सके।
सिंधिया के वार पर संगठन का तगड़ा पलटवार
विधानसभा उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया विजयपुर में कहीं नजर नहीं आए। उनकी गैर मौजूदगी चुनाव के दौर में भी चर्चा का विषय रही और नतीजों के बाद भी। भाजपा उम्मीदवार की हार के बाद जब मीडिया ने उनसे गैर मौजूदगी को लेकर सवाल किया तो बोले, मुझे तो बुलाया ही नहीं गया। उनके इस जवाब पर बरास्ता भगवान दास सवनानी, संगठन की ओर से तगड़ा पलटवार हुआ। कहा गया कि खुद मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष ने उन्हें बुलाया था, स्टार प्रचारकों की सूची में उनका नाम था, पर दूसरी जगह व्यस्तता के कारण वे यहां नहीं आ पाए। अब इस पलटवार पर सिंधिया की प्रतिक्रिया का इंतजार है। बहरहार, जिस अंदाज में जवाब दिया गया, उससे यह साफ हो गया है कि सिंधिया कुछ भी कहें और इस पर संगठन चुप रहे यह अब संभव नहीं।
नड्डा के सामने इस शक्ति प्रदर्शन के कुछ तो मायने
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते जेपी नड्डा की संभवत: यह आखिरी इंदौर यात्रा थी। वे आए थे एक सरकारी कार्यक्रम में शामिल होने, लेकिन इंदौर के भाजपा नेताओं ने उनके सामने अपनी ताकत दिखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इन दिनों रूठे-रूठे चल रहे कैलाश विजयवर्गीय तो कहीं नजर नहीं आए, लेकिन सबसे ज्यादा सक्रियता दिखाई महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने। वे समर्थकों की फौज के साथ पहुंचे। विजयवर्गीय की गैर मौजूदगी के बावजूद रमेश मैंदोला की सक्रियता के चलते उनके खेमे ने भी असरकारक उपस्थिति दर्ज करवाई। तुलसी सिलावट ने एयरपोर्ट के रास्ते लवकुश चौराहे पर अपनी ताकत दिखाई। गोलू शुक्ला ने भी अपनी असरकारक उपस्थिति दर्ज करवाई। इस सब पर नड्डा का ध्यान गया या नहीं , लेकिन मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष जरूर इसे समझने में लगे रहे।
मंत्री नाराज तो विधायक साथ
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री मोहन यादव कुछ इसी तरह के फार्मूले पर काम कर रहे हैं। मंत्रिमंडल के करीब एक दर्जन मंत्री जिनमें ज्यादातर पार्टी के कद्दावर नेता हैं, जो इन दिनों मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से नाराज हैं। ये नेता यदाकदा अपनी नाराजगी का इजहार भी करते रहते हैं। इनकी इस नाराजगी से इतर मुख्यमंत्री ने नया रास्ता ढूंढ निकाला है। उन्होंने इन कद्दावर मंत्रियों के गृह जिलों के विधायकों को अपने पाले में कर लिया है। अब हालात यह है कि ये दिग्गज मंत्री अब अपने ही जिलों में अलग-थलग पड़ गए हैं और मुख्यमंत्री के साथ खड़े विधायक गृह जिलों में ही इनकी खुलकर खिलाफत करने लगे हैं।
कोशिश करने में बुराई ही क्या है
अपने गोल्डन पीरियड यानि कमलनाथ के 15 महीने के मुख्यमंत्रित्व काल में भी आईपीएस अफसर शैलेष सिंह पुलिस मुख्यालय में कोई महत्वपूर्ण पद प्राप्त नहीं कर सके, लेकिन डीजीपी बनने की उम्मीद आखिर तक नहीं छोड़ी। जब इसमें भी निराशा हाथ लगी और यह तय हो गया कि कैलाश मकवाना के डीजी बनने के बाद इस पद पर काबिज होने की अब कोई संभावना नहीं बची है, तो फिर नया दांव खेला। सालों पुराने एक पत्र का हवाला देते हुए पुलिस महकमे के तमाम अफसरों को एक पत्र लिख डाला। इस पत्र में विदा हो रहे डीजीपी के सम्मान में आयोजित सलामी परेड को निशाने पर लेते हुए इस तरह के आयोजनों से दूर रहने की हिदायत दी गई थी। दांव तो सफल नहीं हुआ, लेकिन प्रयास करने में भी कोई बुराई नहीं थी।
बिगड़े समीकरणों की एक नई कहानी
देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से अब यह खबर सामने आ रही है कि महापौर पुष्यमित्र भार्गव और निगमायुक्त शिवम वर्मा की पटरी नहीं बैठ रही है। ऐसा प्रतिभा पाल और हर्षिका सिंह के निगमायुक्त रहते हुए भी हो चुका है। दरअसल, अपनी सख्त कार्यशैली और सरल छवि के कारण निगमायुक्त हर जगह हाथोंहाथ लिए जा रहे हैं। कलेक्टर आशीष सिंह से भी उनका बहुत अच्छा तालमेल है। अखबारों की सुर्खियों में भी उन्हें प्रथम नागरिक से ज्यादा तवज्जो मिल रही है। निगम के कामकाज में वर्मा अनावश्यक दखलंदाजी होने नहीं दे रहे हैं और कामकाज का ढर्रा भी सुधारा है। इस सबके बीच दोनों के शुभचिंतक तकरार के कारण ढूंढने में लग गए हैं।
चलते-चलते
विजयपुर चुनाव में पूरी ताकत लगाने के बाद भी छोटे ठाकुर नरेंद्रसिंह तोमर रामनिवास रावत को जितवा नहीं पाए। यहां तोमर की प्रतिष्ठ दांव पर लगी थी। इस हार का उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। अब देखना यह है कि छोटे ठाकुर की प्रतिक्रिया किस अंदाज में सामने आती है। वैसे यह कोशिश तो शुरू हो गई है कि हार के बाद भी रावत के राजनीतिक वजन को किसी भी तरह बरकरार रखा जाए।
पुछल्ला
जिन जेपी नड्डा के साथ कैलाश विजयवर्गीय ने पार्टी महासचिव रहते हुए कई साल काम किया, उनकी इंदौर यात्रा के दौरान विजयवर्गीय की गैर मौजूदगी पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर बड़े नेताओं तक चर्चा में रही। सही कारण तो विजयवर्गीय ही बता पाएंगे, लेकिन कार्यकर्ता दबे स्वरों में कह रहे हैं कि नाराजगी दर्शाने का यह विजयवर्गीय का अपना स्टाइल है। समझने वाले सब समझ रहे हैं।