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सत्ता और सियासत: MP कैबिनेट में राय देने वाले मंत्रियों की संख्या क्यों हो रही कम, खफा हैं कैलाश विजयवर्गीय?

Arvind Tiwari अरविंद तिवारी
Updated Mon, 28 Oct 2024 10:22 AM IST
सार

MP Power And Politics: मध्य प्रदेश की कैबिनेट में राय देने वाले मंत्रियों की संख्या कम होने लगी है। वहीं, कद्दावर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय खफा-खफा से नजर आ रहे हैं। लेकिन, जीतू पटवारी किस बात पर खुश हैं। पढ़िए, सत्ता और सियासत की आज की कड़ी में... 

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MP Power And Politics: MP Minister Kailash Vijayvargiya angry with Mohan Yadav what the reason for Jitu Patwar
सियासत - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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सबकी सुनो, फंडे क्लियर करो और  अपनी लाइन आगे बढ़ाओ 
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मध्य प्रदेश के नए मुख्य सचिव अनुराग जैन कुछ इसी तर्ज पर काम कर रहे हैं। आला नौकरशाहों से रूबरू होने के बाद जैन ने सभी विभाग अध्यक्षों और प्रबंध संचालकों को उनके बिग बाॉसेस यानी अपर मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव की गैर मौजूदगी में तलब कर सीधा संवाद किया। कहां क्या दिक्कत आ रही है यह समझने के बाद उन्होंने पहले तो हाथों-हाथ उसका निदान बता दिया और फिर यह बताने में भी पीछे नहीं रहे वे किस तरह की वर्किंग लॉन्ग टर्म में चाहते हैं। मातहत बिग बॉस से इतना सम्मान मिलने से खुश थे और बिग बॉस इसलिए बाग बाग हो गये की वन स्टॉक में ही सबके फंडे क्लियर हो गये।

सुनेंगे सबकी पर करेंगे अपने मन की ही
कभी मध्य प्रदेश में यह बात अर्जुन सिंह को लेकर कहीं जाती थी कि वे अपने मंत्रियों को बोलने का खूब मौका देते हैं पर अंतिम निर्णय जो अपने मन में आता उसी मुताबिक करते। राजनीति के साथ ही प्रशासन की थोड़ी बहुत समझ रखने वाले लोग अब मध्य प्रदेश में कम ही बचे हैं। लेकिन, उनका भी मानना है कि डॉक्टर मोहन यादव भी कुछ इसी तर्ज पर सरकार चला रहे हैं। मंत्रिमंडल में एक से एक दिग्गज मंत्री है। साथ बैठते हैं तो सबकी सुनते हैं और यह एहसास करने में पीछे नहीं रहते हैं कि जो कुछ आप चाहते हैं वही होगा। लेकिन, अंत में निर्णय वही होता है जो मुख्यमंत्री चाहते हैं। इस एहसास के बाद अब कैबिनेट में राय देने वाले मंत्रियों की संख्या भी कम होने लगी है। 
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कई मायने हैं कैबिनेट में विजयवर्गीय की गैर मौजूदगी के
कैबिनेट की कई बैठकों में कैलाश विजयवर्गीय नजर नहीं आए। इन बैठकों के बाद सरकार का पक्ष रखने की जिम्मेदारी विजयवर्गीय के कंधों पर ही रहती है। चर्चा इस बात की शुरू हो चुकी है कि आखिर कद्दावर मंत्री की कैबिनेट से यह दूरी क्यों? कुछ लोग महाराष्ट्र में चुनावी व्यवस्था का हवाला दे रहे हैं तो कुछ का कहना है कि इंदौर के मामलों में पूछ परख कम होने से वह खफा खफा से हैं। हकीकत क्या है यह पता लगने में कुछ समय जरूर लग सकता है। लेकिन, इतना तय है कि संबंधों में अब वह गर्माहट नहीं रही जो कुछ महीने पहले हुआ करती थी। 

आखिर मैदान में आ ही गई पटवारी की पलटन 
10 महीने बाद जीतू पटवारी को आखिरकार टीम मिल ही गई। देखने में तो टीम अच्छी भली लग रही है। क्षत्रपों के शागिर्द और नेताओं के पट्ठे भी फिट हो गए साथ ही क्षेत्रीय संतुलन भी बन गया। दिल्ली वालों ने भी अपने प्यादे बैठा दिए। जीतू इस बात को लेकर खुश हैं कि इस सब के बीच जिन-जिन को वह चाहते थे उन्हें इधर-उधर से नाम बढवाकर टीम में फिट करवा ही लिया। जो बज गए हैं उनके लिए दिलासा की बात यह है कि रुको थोड़ा इंतजार करो एक सूची और आने वाली है। इतने में तो छह आठ महीने शांति से निकल ही जाएंगे। 

'मित्र' इतने असहाय कैसे हो गए 
इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव का एक वीडियो पिछले दिनों वायरल हुआ जिसमें वह नगर निगम के ही किसी अफसर से जो कुछ कह रहे हैं वह निगम के कामकाज में उनकी असहायता को ही दर्शा रहा है। इस बातचीत का लब्बोलुआब यह निकल रहा है निगम के अफसर कार्यवाही पहले करते हैं और महापौर को पता बाद में चलता है। बातचीत यह भी एहसास करवा रही है कि इन दिनों निगम के अफसर शहर के प्रथम नागरिक महापौर की कम और कलेक्टर आशीष सिंह की ज्यादा सुन रहे हैं। 

कमिश्नर सिस्टम का एहसास होने लगेगा इंदौर को 
इंदौर में जब से पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हुआ लोगों को इस बात का एहसास ही नहीं हो पा रहा था कि पुलिस का वर्किंग पैटर्न बदल गया है। सबसे पहले कमिश्नर हरीनारायणचारी मिश्रा तब के कलेक्टर मनीष सिंह के आभामंडल से बाहर ही नहीं निकाल पाए और मातहत मन मसोसकर रह गये। मकरंद देउस्कर आए तो कागजों पर सिस्टम की मजबूती में लग गए। अलग अलग भूमिका में की बार इंदौर में रह चुके राकेश गुप्ता के लिए करने को कुछ खास था नहीं हां उन्होंने अपने अच्छे व्यवहार के कारण किसी को निराश जरूर नहीं किया। अब इंदौर पुलिस की कमान संतोष कुमार सिंह जैसे तैसे तर्रार और सख्त अधिकारी के कंधों पर है। उनके मिजाज से वाकिफ लोगों व पुलिस अफसरों का कहना है कि कमिश्नर सिस्टम क्या है और कितना असर कारक हो सकता है इसका एहसास अब होगा। चलिए इसके लिए थोड़ा इंतजार भी कर लेते हैं। 

चलते चलते 
कभी संघ तो कभी सुमित्रा महाजन के रास्ते एक से बढ़कर एक पोस्टिंग पाने वाले आईपीएस ऑफिसर राजेश हिंगनकर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के प्रिय पत्र कैसे हो गए यह समझने में कई लोग लगे हुए थे। वह ज्यादा कुछ समझ पाए इसके पहले तो 1 साल की संविधान नियुक्ति पर हिंगनकर मुख्यमंत्री के ओएसडी बनाए जा चुके थे।

पुछल्ला 
177 नेताओं की प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी की सूची में महामंत्री के रूप में खरगोन के अनीश मामू का भी नाम है। नाम है यहां तक तो ठीक है लेकिन सूची में उनका नाम शामिल करवाने में कांग्रेस के इस दौर के सर्वशक्तिमान नेताओं में से एक के सी वेणुगोपाल की व्यक्तिगत रुचि रही यह बात ज्यादा चौंकाने वाली है। यही मामू एक जमाने में अहमद पटेल के यहां भी अच्छी खासी दखल रखते थे।
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