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Chhindwara News: पांढुर्णा में परंपरा के नाम पर फिर बरसेंगे पत्थर, कल होगा खूनी खेल ‘गोटमार’, प्रशासन मुस्तैद
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, छिंदवाड़ा
Published by: अर्पित याज्ञनिक
Updated Fri, 22 Aug 2025 11:56 AM IST
सार
पत्थरबाज़ी वाले 'खूनी खेल' के लिए प्रशासन ने कड़े इंतजाम किए हैं। जाम नदी के दोनों किनारों पर पत्थर बिछा दिए गए हैं। सुरक्षा के लिए 600 जवान, 5 डीएसपी और 8 टीआई तैनात रहेंगे। स्वास्थ्य विभाग ने 45 डॉक्टर, 200 स्वास्थ्यकर्मी और 16 एंबुलेंस की व्यवस्था की है।
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पत्थरबाजी की बीते वर्ष की तस्वीर।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
परंपरा के नाम पर वर्षों से जारी पांढुर्णा का विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला शनिवार को खेला जाएगा। पत्थरों से भरे इस ‘खूनी खेल’ के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। जाम नदी के दोनों किनारों पर पत्थर बिछा दिए गए हैं। सुरक्षा से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक अपनी व्यवस्था में जुट गए हैं। गोटमार खेल पांढुर्णा का एक अनोखा और खतरनाक पारंपरिक खेल है। इसमें दो पक्ष नदी के दोनों ओर खड़े होकर एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। इसे लोक परंपरा और साहस का प्रतीक माना जाता है। प्रशासन इसके लिए सुरक्षा के इंतजाम करता है।
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डीआईजी ने लिया जायजा
गुरुवार को छिंदवाड़ा रेंज के डीआईजी कल्याण चक्रवर्ती, कलेक्टर अजयदेव शर्मा और एसपी सुंदर सिंह कनेश ने स्थल का निरीक्षण किया। यहां मंदिरों और आसपास के घरों को सुरक्षा कवच दिया गया है।
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600 जवान, 45 डॉक्टर तैनात
गोटमार के दौरान पुलिस कप्तान सुंदर सिंह कनेश और एएसपी नीरज सोनी खुद मौजूद रहेंगे। सुरक्षा के लिए पांच डीएसपी, आठ टीआई और 600 जवान तैनात रहेंगे। गोफन पर प्रतिबंध लगाया गया है और निगरानी के लिए सीसीटीवी और ड्रोन कैमरे लगाए गए हैं। 11 जगह नाकाबंदी होगी और गश्ती दल लगातार चौकसी करेंगे। स्वास्थ्य विभाग ने भी 45 डॉक्टर और 200 स्वास्थ्यकर्मी तैनात किए हैं। 16 एंबुलेंस गंभीर घायलों के लिए तैयार रखी गई हैं।
खूनी इतिहास: 650 घायल, 18 गंभीर
गोटमार में हर साल सैकड़ों लोग घायल होते हैं। पिछले साल 650 से ज्यादा लोग घायल हुए थे, जिनमें 18 को नागपुर रेफर करना पड़ा। अब तक इस परंपरा में 10 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। सबसे ताजा घटना 15 सितंबर 2023 की है, जब गुरुदेव वार्ड के सुदामा लेंडे की जान गई थी।
बदलने की कोशिशें नाकाम
प्रशासन ने कई बार इस परंपरा को बदलने की कोशिश की। 2001 में रबर की गेंदों से गोटमार कराने का प्रयास किया गया, लेकिन रातोंरात पत्थर बिछा दिए गए। 2009 में मानवाधिकार आयोग ने भी दखल दिया, फिर भी यह खूनी खेल नहीं रुका।
खून-आंसुओं के बीच बरकरार जोश
जोश का आलम यह है कि आज भी दोनों गांवों के लोग पत्थरों से खून बहने के बावजूद पीछे नहीं हटते। खिलाड़ी पहले मां चंडिका मंदिर में माथा टेकते हैं और शाम को झंडे के रूप में पलाश का पेड़ मंदिर में अर्पित किया जाता है।

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