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सत्ता और सियासत: दिल्ली में तो नंबर वन मोहन यादव ही, प्रदेश में जीतू 10 माह बाद भी टीम नहीं बना पाए

Arvind Tiwari अरविंद तिवारी
Updated Mon, 21 Oct 2024 01:38 PM IST
सार

अमित शाह के साथ डॉ. यादव को हरियाणा में भाजपा विधायक दल का नेता चुनने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ पर्यवेक्षक बनाकर जो संकेत देना था वह दे दिया है कि दिल्ली में तो नंबर वन मोहन यादव ही हैं।

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Arvind Tiwari's column - Power and Politics: Mohan Yadav is number one in Delhi
क्या कहती है मप्र की सियासत, पढ़ें ये कॉलम - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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मध्य प्रदेश के दिग्गजों को लग रहा था कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव पर वे नकेल कसने में कामयाब हो जाएंगे। एक-दो मौकों पर जिस अंदाज में दिल्ली की प्रतिक्रिया सामने आई, उससे ये लोग उम्मीद से हो गए थे, लेकिन अब खासकर हरियाणा के नतीजों के बाद दिल्ली वालों ने मुख्यमंत्री को जिस तरह हाथों हाथ लिया उससे कोई कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। अमित शाह के साथ डॉ. यादव को हरियाणा में भाजपा विधायक दल का नेता चुनने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ पर्यवेक्षक बनाकर जो संकेत देना था वह दे दिया है कि दिल्ली में तो नंबर वन मोहन यादव ही हैं।
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क्या फिर बंध गए हैं गब्बर के हाथ?
सालों पहले तब के मुख्यमंत्री की मौजूदगी में कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि गब्बर के हाथ बंधे हुए हैं। कहने का आशय था कि भले ही मंत्री हैं, लेकिन चल नहीं रही है। पिछले दिनों इंदौर में नशे के बढ़ते कारोबार को लेकर जिस अंदाज में विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मौजूदगी में अपनी बात कही, उससे भी ध्वनि कुछ ऐसी निकल रही है। विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेता, जिनके एक इशारे पर जो चाहे वह हो जाता है, इंदौर के मामले में असहाय होकर मुख्यमंत्री से मदद मांगें तो समझ जाना चाहिए कि बात कितनी बिगड़ी हुई है। वैसे विजयवर्गीय ने जो कुछ कहा उसका आशय तो यही है कि नशे के खिलाफ जो कार्यवाही हो रही है, वह सतही है। इसकी जड़ तक कोई पहुंच नहीं रहा है।
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तारीख बढ़ती गई और नाम जुड़ते गए
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के 10 महीने बाद भी जीतू पटवारी अपनी टीम नहीं बना पाए। आज बन रही है, कल बन रही है कहते-कहते महीनों निकल गए। कुछ दिनों पहले कहा गया कि नई टीम नवरात्रि में आकार ले लेगी, लेकिन हुआ कुछ नहीं। दरअसल, जैसे-जैसे तारीख बढ़ती जा रही है, बनने वाले पदाधिकारियों की सूची लंबी होती जा रही है। कोई पांच नाम दे रहा है, तो कोई 10 तो किसी ने एक दर्जन नामों की सूची पटवारी को थमा दी। पहले पदाधिकारी 100 के भीतर रहने की बात कही जा रही थी, अब यह आंकड़ा 200 तक भी पहुंच जाए तो बड़ी बात नहीं।

बाहर तो बहुत मजबूत हैं, पर घर में ही हो रही है तगड़ी घेराबंदी
कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश में जहां भी जाते हैं, भाजपा के विधायक उनके आगे-पीछे हो जाते हैं। विजयवर्गीय के सामने अपने नंबर बढ़ाने की होड़ सी रहती है। अपना दुखड़ा भी सुनाने लगते हैं और मदद भी मांग लेते हैं। लेकिन गृह जिले इंदौर में हालात इससे ईतर हैं। तीन विधायक उषा ठाकुर, मालिनी गौड़ और मनोज पटेल तो खुलकर उनकी खिलाफत कर रहे हैं। मुख्यमंत्री के यहां भी, इन्होंने दस्तक दी और अपना दुखड़ा भी सुना दिया है। बाबा यानि महेंद्र हार्डिया यूं ही बोनस में चल रहे हैं, मतलब किसी से कोई लेना-देना नहीं। गोलू शुक्ला खुलकर कुछ नहीं कहते, लेकिन कान में तो अपना दर्द बयां कर ही देते हैं। हमेशा की तरह ईमानदारी से साथ दे रहे हैं रमेश मैंदोला, पर मंत्री नहीं बनने का दर्द तो मन में है ही।

दिल्ली में मध्य प्रदेश के अफसरों का बढ़ता दबदबा
दिल्ली में मध्य प्रदेश के अफसरों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। वह भी तब, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सचिव स्तर के अफसरों के कामकाज पर पैनी निगाहें रखे हुए हैं। अनुराग जैन मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव बने तो उनका काम एमपी कॉडर के ही पंकज अग्रवाल को सौंप दिया गया, जो पहले से ही दिल्ली में बड़ी भूमिका में हैं। केंद्रीय खान सचिव का दायित्व संभाल रहे साफ-सुथरी छवि वाले अफसर वी.एल. कांताराव को अब कोयला मंत्रालय भी सौंप दिया गया है। आईटी सेक्टर में प्रधानमंत्री के पसंदीदा आकाश त्रिपाठी के पास एक से ज्यादा जिम्मेदारियां हैं। विवेक अग्रवाल पहले से ही बड़ी भूमिका में हैं। मध्य प्रदेश का यह दबदबा दिल्ली में लंबे अरसे बाद बना है।

गुप्ता बनाम गुप्ता जैसी स्थिति है ट्रांसपोर्ट कमिश्नर पद के लिए
डी.पी. गुप्ता के भाग्य में ज्यादा दिन ट्रांसपोर्ट कमिश्नर का पद दिख नहीं रहा है। कभी भी रवानगी हो सकती है। मौका भी दूसरे गुप्ता को ही मिलता नजर आ रहा है। पहला नाम राकेश गुप्ता का है, जो फिलहाल इंदौर के पुलिस कमिश्नर हैं और दूसरा नाम रवि गुप्ता, जो अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक होते हुए खेल संचालक की भूमिका में हैं। मौका इनमें से किसे मिलेगा इसके लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि बमुश्किल यह पद हासिल करने वाले डीपी ने पद पर बरकरार रहने के लिए पूरी ताकत लगा दी है। मजेदार बात यह है कि डीपी और रवि दूर के रिश्तेदार हैं। इस सबके बीच उमेश जोगा ने अभी भी एडिशनल टीसी से टीसी बनने में कोई कसर बाकी नहीं रख रखी है। आखिर हिसाब जो बराबर करना है।

गडकरी की तारीफ और मुख्यमंत्री की ताली
किसी नौकरशाह के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि उसके गृह राज्य में मंच से कोई केंद्रीय मंत्री खुलकर उसकी तारीफ करें और वहीं बैठे प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी इस वाहवाही पर ताली बजाना पड़े। जी हां, पिछले दिनों भोपाल में इंडियन रोड कांग्रेस के आयोजन में नितिन गडकरी ने मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन की जमकर तारीफ की और कहां की प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना इन्हीं के दिमाग की उपज है। गडकरी यही नहीं रुके और जैन की तमाम खूबियां भी गिना डाली। जिस वक्त यह संवाद हो रहा था तब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी मंच पर मौजूद थे और उन्होंने भी अपने मुख्य सचिव की तारीफ पर जमकर ताली बजाई।

चलते-चलते
मंत्री तुलसी सिलावट के भाई डॉ. सुरेश सिलावट रिटायर हो गए। लाख कोशिश के बाद भी देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलगुरू नहीं बन पाए। मौका आने पर बेबाकी से कह भी देते हैं कि तुलसी भाई के कारण भी कई बार नुकसान हो जाता है। खैर, अब उनकी निगाहें राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य पद पर है। दिक्कत यह है कि यहां हमेशा संघ की पसंद को ही तवज्जो दी जाती है, देखते है संघ की नजरें सिलावट पर इनायत हो पाती है या नहीं? वैसे बारास्ता तुलसी भाई, उन्हें सिंधिया से भी थोड़ी बहुत मदद की दरकार तो है।

पुछल्ला
आनंद राय फिर कांग्रेसी हो गए। डॉक्टरी पढ़ते पढ़ते भाजपा से जुड़ गए थे, फिर सरकारी नौकरी में रहते हुए जयस को खड़ा करने में पर्दे के पीछे बड़ी भूमिका निभाई। कमलनाथ की सरकार बनी तो उम्मीद बंधी की व्यापमं का विसल ब्लोअर होने के कारण कहीं ना कहीं मौका मिल जाएगा, लेकिन निराश होना पड़ा। उंगली पकड़ कर आगे बढ़े डॉक्टर हीरालाल अलावा ने भी झटका दे दिया। फिर तेलंगाना के चंद्रशेखर राव का दामन थामा और बीआरएस में शामिल हो गए। जब राव खुद ही तेलंगाना में अपनी सरकार नहीं बचा पाए तो डॉक्टर राय को अपनी स्थिति का एहसास हो गया। आखिरकार फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया। कहते हैं ना कि लौट के बुद्धू घर को आए।

 
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