{"_id":"6731f5f51ab782a2760cc18c","slug":"satta-aur-siyasat-the-signal-is-clear-further-discussion-after-the-results-of-jharkhand-2024-11-11","type":"story","status":"publish","title_hn":"सत्ता और सियासत: इशारा साफ, आगे की बात झारखंड के नतीजों के बाद","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
सत्ता और सियासत: इशारा साफ, आगे की बात झारखंड के नतीजों के बाद
सार
आंकड़ों पर गौर करें तो जिस घर में 10 गाय-भैंस हैं उन्हें मुख्यमंत्री की घोषणा के अमल में आने के बाद हर महीने 12000 रुपए का फायदा होना है। कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि घोषणा लाड़ली बहना से बड़ी है और इसके दूरगामी परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे।
विज्ञापन
अरविंद तिवारी का क़ॉलम
- फोटो : अमर उजाला
विज्ञापन
विस्तार
अपनी बेबाकी के लिए ख्यात कैलाश विजयवर्गीय गाहे-बगाहे पार्टी के नेताओं को उनकी हैसियत बताने में पीछे नहीं रहते हैं। झारखंड के चुनाव सिर पर हैं और केंद्रीय मंत्री शिवराजसिंह चौहान ने प्रभारी रहते हुए वहां पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए रात-दिन एक कर रखा है। अपने गृहनगर इंदौर में दिवाली मिलन समारोह के मौके पर कैलाश पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच यह कहने से नहीं चूके कि हरियाणा में जब शिवराज सिंह चौहान प्रभारी थे, तब भाजपा को केवल चार सीट मिली थी। इसके बाद हुए चुनाव में जब मुझे प्रभारी बनाया गया तो इंदौर के तीन हजार भाजपा कार्यकर्ताओं ने वहां मोर्चा संभाला और अच्छे बहुमत से भाजपा की सरकार बनी। इशारा साफ है, आगे की बात झारखंड के नतीजों के बाद।
दिल्ली तक पहुंच गई है मध्यप्रदेश के दो दिग्गजों के बीच की दूरी
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और कद्दावर कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बीच लगातार बढ़ रही दूरी की चर्चा अब दिल्ली तक पहुंच गई है। पता यह लगाया जा रहा है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों और इसके लिए जिम्मेदार कौन है? ऐसा शिवराजसिंह चौहान के दौर में भी हुआ था और तब दोनों के बीच टकराहट टालने के लिए विजयवर्गीय को दिल्ली बुलाकर सम्मानजनक भूमिका दे दी गई थी। अब फिर वैसे ही हालात बन रहे हैं, लेकिन पहले की तुलना में बहुत जल्दी। रास्ता दिल्ली से ही निकलेगा, लेकिन थोड़ा वक्त लग सकता है। ताज्जुब इस बात पर हो रहा है कि शुरुआत में एक राह पर चलने वाले दोनों दिग्गजों ने आखिर इतनी जल्दी अपनी राह अलग-अलग क्यों कर ली।
इस दाव को भी समझना जरूरी
गोवर्धन पूजा के दिन मुख्यमंत्री ने एक बड़ी घोषणा की। सियासत के बड़े खिलाड़ी मोहन यादव के इस दाव को समझना जरूरी है। लाड़ली बहना की तरह यह भी सीधे-सीधे लाखों परिवारों को आर्थिक मजबूती देने का मामला है और इसका बड़ा फायदा उनको मिलना है, जिनके यहां बड़ी संख्या में मवेशी पाले जाते हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो जिस घर में 10 गाय-भैंस हैं उन्हें मुख्यमंत्री की घोषणा के अमल में आने के बाद हर महीने 12000 रुपए का फायदा होना है। कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि घोषणा लाड़ली बहना से बड़ी है और इसके दूरगामी परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे।
उम्मीद बरकरार - समय का इंतजार
विधानसभा चुनाव हार चुके या मंत्री पद से वंचित रहे भाजपा के कई दिग्गज अब फिर उम्मीद से हैं। संगठन चुनाव का आगाज हो चुका है और इन नेताओं को लग रहा है कि पार्टी कहीं न कहीं इन्हें एडजस्ट जरूर करेगी। पार्टी से जुड़े मुद्दों पर इनकी मुखरता के पीछे भी यही राज नजर आ रहा है। दिक्कत बस एक ही है, इनमें से ज्यादातर नेता 60 पार हो चुके हैं और इस बात से भयभीत हैं कि बढ़ी हुई उम्र कहीं इनकी बची-कुची उम्मीद पर ब्रेक न लगा दे। वैसे भाजपा में समय-काल के मुताबिक सबकुछ बदलता रहता है और इसी संभावना ने इनकी उम्मीदों को बल दे रखा है। ज्यादा समय बचा नहीं है, देखते हैं उम्मीद परवान चढ़ पाती है या नहीं।
मामला प्रभारी का था इसलिए हाजिरी तो बनती थी
मध्यप्रदेश भाजपा के प्रभारी, उत्तर प्रदेश के भाजपा नेता डॉ. महेन्द्र सिंह ने पिछले दिनों प्रतापगढ़ में भागवत कथा करवाई। उनके पैतृक निवास पर हुई इस कथा में हाजिरी लगाने के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा सहित प्रदेश के कई भाजपा नेता पहुंचे। इनमें कई ऐसे नेता भी थे, जिनकी रुचि इस आध्यात्मक आयोजन में उपस्थिति दर्ज करवाने के बजाय प्रदेश प्रभारी को चेहरा दिखाने में थी। सात दिन के इस आयोजन में उत्तर प्रदेश से ज्यादा मध्यप्रदेश के नेताओं की रुचि रही और इसके पीछे उनका उद्देश्य धार्मिक यात्रा से ज्यादा राजनैतिक पर्यटन रहा। घाट-घाट का पानी पी चुके डॉ. सिंह भी सब समझ रहे थे।
भार्गव अपनी मस्ती में मस्त, भूपेन्द्र सिंह ने दिखाए तेवर
सालों तक मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल में वजनदार विभागों के मंत्री रहे भूपेन्द्र सिंह अब बेहद मुखर हो गए हैं। पिछले दिनों सागर में उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला की मौजूदगी में हुई बैठक में जिस अंदाज में भूपेन्द्र सिंह पुलिस अफसरों पर बरसे उससे यह तो साफ हो गया है कि बुंदेलखंड की सियासत आने वाले दिनों में गर्माने वाली है। सिंह की इस मुखरता ने उन्हीं के गृह जिले के दूसरे मंत्री गोविंद सिंह राजपूत को भी विचलित कर दिया है। अभी तक चुप चल रहे राजपूत भी अब मुखर होने लगे हैं। इस सबके बीच गोपाल भार्गव अपनी मस्ती में मस्त हैं और राजनीति से ज्यादा समय परिवार को दे रहे हैं।
इसको साधते हैं, तो वह बिफर जाते हैं
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी अजीब परेशानी में हैं। नई टीम की घोषणा के बाद नेताओं के नाराज होने का सिलसिला बरकरार है। पटवारी एक को साधते हैं, तो दूसरा बिफर जाता है। ताजा मामला नेता प्रतिपक्ष रहे डॉ. गोविंद सिंह से जुड़ा हुआ है। अभी तक लहार में ही अस्तित्व की लड़ाई लड़़ रहे डॉ. गोविंद सिंह अब यह कहते हुए बिफर गए हैं, मैं भी जीतू पटवारी की कार्यकारिणी से संतुष्ट नहीं। अनुभवी व जनाधार नेताओं की उन्होंने उपेक्षा की है, इसलिए सभी नाराज हैं। डॉ. सिंह की यह मुखरता इसलिए चौंकाने वाली मानी जा रही है कि जब वे संकट में थे, तब सबसे पहले उनके समर्थन में पटवारी ने भिंड जाकर मोर्चा संभाला था।
चलते-चलते
खरी-खरी बोलने के लिए ख्यात और कांग्रेस से 6 साल के लिए निष्कासित डॉ. अजय चौरड़िया के सालाना आयोजन में कांग्रेसियों का वैसा ही मजमा लगा, जैसा हर साल लगता था। संभावना यह जताई जा रही थी कि इस बार कांग्रेसी इस आयोजन से दूर रहेंगे, लेकिन इससे उलट बड़ी संख्या में कांग्रेसी वहां दाल-बाफले का आनंद लेते नजर आए। वैसे इस उपस्थिति को चौरड़िया की कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से नजदीकी से जोड़कर भी देखा जाना चाहिए।
पुछल्ला
इंदौर के नेहरू स्टेडियम में अनमोल मुस्कान वेलफेयर सोसायटी ने पांच हजार युवतियों और महिलाओं का सामूहिक तलवारबाजी का बड़ा आयोजन किया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मौजूदगी में हुए इस कार्यक्रम के बाद चर्चा इस बात की है कि आखिर मुख्य आयोजकों को मंच से दूर कर भाजपा के नेताओं ने वहां कैसे कब्जा कर लिया। एक निजी संस्था का आयोजन सरकारी आयोजन में तब्दील हो गया और आयोजकों की स्थिति परायों जैसी हो गई।
Trending Videos
दिल्ली तक पहुंच गई है मध्यप्रदेश के दो दिग्गजों के बीच की दूरी
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और कद्दावर कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बीच लगातार बढ़ रही दूरी की चर्चा अब दिल्ली तक पहुंच गई है। पता यह लगाया जा रहा है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों और इसके लिए जिम्मेदार कौन है? ऐसा शिवराजसिंह चौहान के दौर में भी हुआ था और तब दोनों के बीच टकराहट टालने के लिए विजयवर्गीय को दिल्ली बुलाकर सम्मानजनक भूमिका दे दी गई थी। अब फिर वैसे ही हालात बन रहे हैं, लेकिन पहले की तुलना में बहुत जल्दी। रास्ता दिल्ली से ही निकलेगा, लेकिन थोड़ा वक्त लग सकता है। ताज्जुब इस बात पर हो रहा है कि शुरुआत में एक राह पर चलने वाले दोनों दिग्गजों ने आखिर इतनी जल्दी अपनी राह अलग-अलग क्यों कर ली।
विज्ञापन
विज्ञापन
इस दाव को भी समझना जरूरी
गोवर्धन पूजा के दिन मुख्यमंत्री ने एक बड़ी घोषणा की। सियासत के बड़े खिलाड़ी मोहन यादव के इस दाव को समझना जरूरी है। लाड़ली बहना की तरह यह भी सीधे-सीधे लाखों परिवारों को आर्थिक मजबूती देने का मामला है और इसका बड़ा फायदा उनको मिलना है, जिनके यहां बड़ी संख्या में मवेशी पाले जाते हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो जिस घर में 10 गाय-भैंस हैं उन्हें मुख्यमंत्री की घोषणा के अमल में आने के बाद हर महीने 12000 रुपए का फायदा होना है। कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि घोषणा लाड़ली बहना से बड़ी है और इसके दूरगामी परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे।
उम्मीद बरकरार - समय का इंतजार
विधानसभा चुनाव हार चुके या मंत्री पद से वंचित रहे भाजपा के कई दिग्गज अब फिर उम्मीद से हैं। संगठन चुनाव का आगाज हो चुका है और इन नेताओं को लग रहा है कि पार्टी कहीं न कहीं इन्हें एडजस्ट जरूर करेगी। पार्टी से जुड़े मुद्दों पर इनकी मुखरता के पीछे भी यही राज नजर आ रहा है। दिक्कत बस एक ही है, इनमें से ज्यादातर नेता 60 पार हो चुके हैं और इस बात से भयभीत हैं कि बढ़ी हुई उम्र कहीं इनकी बची-कुची उम्मीद पर ब्रेक न लगा दे। वैसे भाजपा में समय-काल के मुताबिक सबकुछ बदलता रहता है और इसी संभावना ने इनकी उम्मीदों को बल दे रखा है। ज्यादा समय बचा नहीं है, देखते हैं उम्मीद परवान चढ़ पाती है या नहीं।
मामला प्रभारी का था इसलिए हाजिरी तो बनती थी
मध्यप्रदेश भाजपा के प्रभारी, उत्तर प्रदेश के भाजपा नेता डॉ. महेन्द्र सिंह ने पिछले दिनों प्रतापगढ़ में भागवत कथा करवाई। उनके पैतृक निवास पर हुई इस कथा में हाजिरी लगाने के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा सहित प्रदेश के कई भाजपा नेता पहुंचे। इनमें कई ऐसे नेता भी थे, जिनकी रुचि इस आध्यात्मक आयोजन में उपस्थिति दर्ज करवाने के बजाय प्रदेश प्रभारी को चेहरा दिखाने में थी। सात दिन के इस आयोजन में उत्तर प्रदेश से ज्यादा मध्यप्रदेश के नेताओं की रुचि रही और इसके पीछे उनका उद्देश्य धार्मिक यात्रा से ज्यादा राजनैतिक पर्यटन रहा। घाट-घाट का पानी पी चुके डॉ. सिंह भी सब समझ रहे थे।
भार्गव अपनी मस्ती में मस्त, भूपेन्द्र सिंह ने दिखाए तेवर
सालों तक मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल में वजनदार विभागों के मंत्री रहे भूपेन्द्र सिंह अब बेहद मुखर हो गए हैं। पिछले दिनों सागर में उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला की मौजूदगी में हुई बैठक में जिस अंदाज में भूपेन्द्र सिंह पुलिस अफसरों पर बरसे उससे यह तो साफ हो गया है कि बुंदेलखंड की सियासत आने वाले दिनों में गर्माने वाली है। सिंह की इस मुखरता ने उन्हीं के गृह जिले के दूसरे मंत्री गोविंद सिंह राजपूत को भी विचलित कर दिया है। अभी तक चुप चल रहे राजपूत भी अब मुखर होने लगे हैं। इस सबके बीच गोपाल भार्गव अपनी मस्ती में मस्त हैं और राजनीति से ज्यादा समय परिवार को दे रहे हैं।
इसको साधते हैं, तो वह बिफर जाते हैं
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी अजीब परेशानी में हैं। नई टीम की घोषणा के बाद नेताओं के नाराज होने का सिलसिला बरकरार है। पटवारी एक को साधते हैं, तो दूसरा बिफर जाता है। ताजा मामला नेता प्रतिपक्ष रहे डॉ. गोविंद सिंह से जुड़ा हुआ है। अभी तक लहार में ही अस्तित्व की लड़ाई लड़़ रहे डॉ. गोविंद सिंह अब यह कहते हुए बिफर गए हैं, मैं भी जीतू पटवारी की कार्यकारिणी से संतुष्ट नहीं। अनुभवी व जनाधार नेताओं की उन्होंने उपेक्षा की है, इसलिए सभी नाराज हैं। डॉ. सिंह की यह मुखरता इसलिए चौंकाने वाली मानी जा रही है कि जब वे संकट में थे, तब सबसे पहले उनके समर्थन में पटवारी ने भिंड जाकर मोर्चा संभाला था।
चलते-चलते
खरी-खरी बोलने के लिए ख्यात और कांग्रेस से 6 साल के लिए निष्कासित डॉ. अजय चौरड़िया के सालाना आयोजन में कांग्रेसियों का वैसा ही मजमा लगा, जैसा हर साल लगता था। संभावना यह जताई जा रही थी कि इस बार कांग्रेसी इस आयोजन से दूर रहेंगे, लेकिन इससे उलट बड़ी संख्या में कांग्रेसी वहां दाल-बाफले का आनंद लेते नजर आए। वैसे इस उपस्थिति को चौरड़िया की कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से नजदीकी से जोड़कर भी देखा जाना चाहिए।
पुछल्ला
इंदौर के नेहरू स्टेडियम में अनमोल मुस्कान वेलफेयर सोसायटी ने पांच हजार युवतियों और महिलाओं का सामूहिक तलवारबाजी का बड़ा आयोजन किया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मौजूदगी में हुए इस कार्यक्रम के बाद चर्चा इस बात की है कि आखिर मुख्य आयोजकों को मंच से दूर कर भाजपा के नेताओं ने वहां कैसे कब्जा कर लिया। एक निजी संस्था का आयोजन सरकारी आयोजन में तब्दील हो गया और आयोजकों की स्थिति परायों जैसी हो गई।