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Maheshwar News: महेश्वर अहिल्या घाट पर आध्यात्मिक संगम, यहां शक्ति के शिवलिंग निर्माण का दिखा अद्भुत दृश्य
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, खरगोन
Published by: अर्पित याज्ञनिक
Updated Sat, 31 May 2025 09:20 PM IST
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सार
इस आयोजन ने नारी की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय भूमिका को रेखांकित किया। कार्यक्रम में कन्याएं, गृहणियां और वरिष्ठ महिलाएं शामिल रहीं। आयोजन के दौरान वैदिक मंत्रोच्चार, सामूहिक रुद्राभिषेक और भजन-कीर्तन भी संपन्न हुए।

महेश्वर अहिल्या घाट पर पार्थिव शिवलिंग बनातीं महिलाएं।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
महेश्वर के ऐतिहासिक अहिल्या घाट पर शनिवार शाम मातोश्री अहिल्याबाई होलकर के वंशजों (राज परिवार) की ओर से विशेष आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके अंतर्गत 300 मातृशक्तियों ने मिलकर 360 पार्थिव शिवलिंग का निर्माण किया। यह आयोजन भारतीय संस्कृति में नारी की आध्यात्मिक भूमिका को उजागर करता है और शिव आराधना की प्राचीन परंपरा को वर्तमान सामाजिक संदर्भ में पुनर्जीवित करता है।

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पार्थिव शिवलिंग (मिट्टी से निर्मित शिवलिंग) भारतीय शास्त्रों में विशेष फलदायी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि पार्थिव शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और शिव कृपा सहज भाव से प्राप्त होती है। इस आयोजन की विशिष्टता यह रही कि शिवलिंग निर्माण और पूजन की समस्त प्रक्रिया महिलाओं ने संपन्न कराई। इस दौरान कन्याएं, गृहणियां और वरिष्ठ महिलाएं सम्मिलित रहीं। मातृशक्ति की यह भूमिका केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक भी है। जहां एक ओर यह प्रकृति से जुड़ाव और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है, वहीं दूसरी ओर महिलाओं के सामूहिक संकल्प और आत्मबल को भी प्रकट करती है।
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धरती मां को भी नमन
आयोजन सदस्या गीता सोलंकी के अनुसार, "मिट्टी से शिवलिंग बनाना न केवल शिव की भक्ति है, यह धरती मां को भी नमन है। जब महिलाएं अपने हाथों से सृजन करती हैं, तो वह सिर्फ धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि सृष्टि को सहेजने की प्रक्रिया होती है।"
महिलाओं में भारी उत्साह
इस अवसर पर राज परिवार के महाराज शिवाजी राव होलकर द्वितीय, युवराज यशवंतराव होलकर तृतीय और अतिथियों के समक्ष घाट पर वैदिक मंत्रोच्चार, सामूहिक पूजन, रुद्राभिषेक और भजन-कीर्तन का आयोजन किया गया। स्थानीय महिलाओं में भारी उत्साह देखने को मिला। कई परिवारों ने इसे अपनी पीढ़ी के लिए संस्कार पर्व के रूप में भी मनाया। देवी अहिल्या की तरह महेश्वर की मातृशक्ति ने एक बार फिर सिद्ध किया कि जब नारी धर्म और संस्कृति की धारा से जुड़ती है, तो वहां केवल आस्था नहीं, एक चेतनशील ऊर्जा जन्म लेती है, जो समाज को दिशा देने में सक्षम है।