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Auto Tariffs: ट्रंप के 25% ऑटो टैरिफ से भारत के सात अरब डॉलर के कंपोनेंट निर्यात पर अनिश्चितता, जानें डिटेल्स
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अमर शर्मा
Updated Mon, 31 Mar 2025 02:55 PM IST
सार
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा सभी ऑटोमोबाइल आयातों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के फैसले से भारत के करीब 7 अरब डॉलर के ऑटो पार्ट्स निर्यात पर अनिश्चितता छा गई है। उद्योग जगत को चिंता है कि इससे कंपनियों के मुनाफे पर दबाव बढ़ सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा सभी ऑटोमोबाइल आयातों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के फैसले से भारत के करीब 7 अरब डॉलर के ऑटो पार्ट्स निर्यात पर अनिश्चितता छा गई है। उद्योग जगत को चिंता है कि इससे कंपनियों के मुनाफे पर दबाव बढ़ सकता है।
2 अप्रैल से अमेरिका में आयातित ऑटोमोबाइल और कार पार्ट्स पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। हालांकि भारत अमेरिका को बहुत अधिक कारें निर्यात नहीं करता, लेकिन टाटा मोटर्स की लग्जरी कार ब्रांड Jaguar Land Rover (JLR), जगुआर लैंडरोवर (जेएलआर) का अमेरिकी बाजार में बड़ा दखल है। वित्त वर्ष 2024 में JLR की कुल 4,00,000 यूनिट्स में से 23 प्रतिशत अमेरिकी बाजार में बिकी थीं। ये सभी वाहन ब्रिटेन में बनी गाड़ियां थीं, जिन्हें अमेरिका भेजा गया था।
जेएलआर के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है क्योंकि अतिरिक्त लागत ग्राहकों पर डालने से उसकी बाजार हिस्सेदारी प्रभावित हो सकती है। कंपनी के पास चार विकल्प हैं -
भारतीय ऑटो पार्ट्स कंपनियों को सबसे ज्यादा झटका
भारतीय ऑटो पार्ट्स कंपनियों पर इस फैसले का सबसे अधिक असर पड़ेगा क्योंकि वे बड़ी मात्रा में अमेरिका को बहुत सारे कंपोनेंट निर्यात करती हैं। सोना बीएलडब्ल्यू प्रिसिजन फोर्जिंग्स, भारत फोर्ज और संवर्धन मदरसन इंटरनेशनल लिमिटेड (एसएएमआईएल) जैसी कंपनियां इस टैरिफ से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी।
सोना बीएलडब्ल्यू की 43 प्रतिशत कमाई अमेरिकी निर्यात से होती है। वहीं, भारत फोर्ज की 38 प्रतिशत बिक्री अमेरिका में होती है।
वित्त वर्ष 2024 में भारत ने अमेरिका को कुल 6.79 अरब डॉलर के ऑटो पार्ट्स निर्यात किए थे। जबकि अमेरिका से 1.4 अरब डॉलर के ऑटो पार्ट्स आयात किए थे, जिस पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगता था। इससे पहले, अमेरिका भारत से आने वाले ऑटो पार्ट्स पर लगभग शून्य शुल्क लेता था।
उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से भारतीय ऑटो कंपनियों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि भारत अमेरिका को सीधे तौर पर बनी-बनाई कारें निर्यात नहीं करता। लेकिन ऑटो पार्ट्स उद्योग को झटका जरूर लगेगा, क्योंकि अमेरिका भारत से बड़ी मात्रा में ऑटो पार्ट्स खरीदता है।
उद्योग के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर पीटीआई-भाषा को बताया, "अमेरिकी टैरिफ के कारण भारतीय ऑटो कंपोनेंट उद्योग को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि यहां से अमेरिका को निर्यात काफी अधिक है। भारतीय वाहन निर्माताओं पर इसका कम असर पड़ने की संभावना है, क्योंकि भारत से अमेरिका को पूरी तरह से तैयार कारों का कोई सीधा निर्यात नहीं होता है।"
भारतीय कंपनियों के मुनाफे पर असर
क्रिसिल रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक अनुज सेठी ने कहा कि ट्रंप प्रशासन द्वारा मई 2025 या उसके बाद से इंजन, ट्रांसमिशन, पावरट्रेन पार्ट्स और इलेक्ट्रिकल पार्ट्स जैसे प्रमुख ऑटोमोबाइल घटकों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के कदम से भारतीय घटक निर्माता-निर्यातकों की ऑपरेटिंग मार्जिन में मौजूदा 125-150 बेसिस पॉइंट्स (1.25%-1.5%) तक घट सकती है। अभी यह मार्जिन 12-12.5% के बीच है। बशर्ते टैरिफ का पूर्ण अवशोषण हो।
भारतीय ऑटो पार्ट्स उद्योग की 20 प्रतिशत कमाई निर्यात से होती है। इसमें से 27 प्रतिशत अकेले अमेरिकी बाजार से आता है। इससे न सिर्फ सीधे निर्यात करने वाली कंपनियां प्रभावित होंगी, बल्कि वे कंपनियां भी जो दूसरे देशों के टियर-1 सप्लायर्स को पुर्जे बेचती हैं और आखिर में वे वाहन अमेरिका में बिकते हैं।
हालांकि, कुछ भारतीय कंपनियों के लिए यह अवसर भी बन सकता है। जिन कंपनियों के अमेरिका में उत्पादन केंद्र हैं, वे इस बदलाव से लाभ उठा सकती हैं क्योंकि उनकी उत्पादन क्षमता का बेहतर उपयोग हो सकेगा।
JLR पर खासा असर, टाटा मोटर्स को झटका
ऑटो विश्लेषक मृण्मयी जोगलेकर के अनुसार, भारत से अमेरिका को सीधे वाहन निर्यात नहीं होते, लेकिन टाटा मोटर्स को इस फैसले से झटका लग सकता है।
जेएलआर की बिक्री का 30 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा अमेरिका से आता है। अमेरिका में जेएलआर का कोई मैन्युफैक्चरिंग प्लांट नहीं है। नए टैरिफ के कारण जेएलआर की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे बिक्री और मुनाफे पर असर पड़ेगा।
ऑटो पार्ट्स इंडस्ट्री के लिए अमेरिका प्रमुख निर्यात बाजार बना हुआ है। इंजन, ट्रांसमिशन, पावरट्रेन और इलेक्ट्रिकल पार्ट्स पर नए शुल्क लगने से सोना कॉमस्टार (जिसकी 43% कमाई उत्तरी अमेरिका से होती है) और संवर्धन मदरसन (जिसकी 18% कमाई अमेरिका से होती है) सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।
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