आम लोगों के लिए भले ही मारुति सुजुकी अपनी जिप्सी को बंद कर चुकी हो, लेकिन भारतीय सेना का भरोसा आज भी जिप्सी पर बरकार है। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि बाजार में तमाम शानदार एसयूवी होने के बावजूद सेना जिप्सी पर आंखें मूंद कर भरोसा करती है। जून महीने में जब लद्दाख सीमा पर भारतीय सेना और चीन की पीएलए के बीच गतिरोध बरकरार था, ऐसे वक्त मारुति ने सेना को 700 जिप्सी की सप्लाई की।
भारतीय सेना को आज भी है इस ‘किंग’ पर नाज, भारत-चीन सीमा पर मनवाया लोहा!
मारुति ने बंद कर दिया निर्माण
मारुति ने अक्टूबर 2018 में एलान किया था कि वह अप्रैल 2019 से मारुति जिप्सी का उत्पादन बंद कर देगी। उस दौरान सेना ने मारुति को हजारों जिप्सी का आर्डर दिया था। हालांकि पहले तो मारुति ने जिप्सी का आर्डर पूरा करने में असहमति जताई थी, लेकिन सेना के विशेष अनुरोध पर मारुति ने इस ऑर्डर को पूरा करने का संकल्प लिया था। खबरों के मुताबिक ये वहीं जिप्सी हैं जिन्हें कुछ तिमाही पहले सेना ने सप्लाई करने के लिए कहा था।
सेना ने दी खास छूट
हालांकि इस बात का पता नहीं चल पाया है कि सप्लाई की गईं इन जिप्सियों को कहां पर भेजा गया है। जिप्सी का 4-व्हील ड्राइव होना ही इसकी सबसे बड़ी खूबी है, क्योंकि यह उबड़-खाबड़ रास्तों पर भी आसानी से चल सकती है। मारुति ने जिप्सी को बंद करने के पीछे तर्क दिया था कि जिप्सी सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं करती है, बावजूद इसके रक्षा मंत्रालय ने मारुति को सुरक्षा नियमों में छूट देते हुए आर्डर जारी किया था। गौरतलब है कि सेना में इस श्रेणी की तकरीबन 30 हजार गाड़ियां हैं, जिसमें से कुछ को धीरे-धीरे रिटायर किया जा रहा है।
कम है मेंटेनेंस
सेना का जिप्सी के विश्वास करने की एक वजह यह भी है कि 4-व्हील ड्राइव होने के बावूजद इसका मेंटेनेंस आसान है। वहीं दूरदराज के इलाकों में गश्त करने के लिए मारुति जिप्सी से बेहतर और कोई गाड़ी नहीं है। इसके अलावा इसका कॉम्पैक्ट होना भी फायदेमंद है, जिससे यह पहाड़ों पर संकरे से संकरे रास्ते से आसानी से निकल जाती है। वहीं कम वजनी होने के बावजूद जिप्सी 500 किग्रा का भार ढो सकती है और पहाड़ी इलाकों में रसद और हथियार पहुंचाना मुश्किल होता है, ऐसे में जिप्सी उनकी इस मुश्किल को काफी हद तक आसान कर देती है। मारुति जिप्सी का सेना में 1991 में इस्तेमाल शुरू किया गया था और अब तक 35 हजार जिप्सी सेना को डिलीवर हो चुकी हैं।
लग सकती है रीकॉयलेस गन
हालांकि सेना ने पहले जिप्सी का विकल्प ढूंढते हुए टाटा सफारी स्ट्रॉम को पसंद किया था। तकरीबन 5 साल के ट्रायल के बाद सफारी स्ट्रॉम और महिंद्रा स्कॉर्पियो को पसंद किया था। सेना को अकसर क्विक रेस्पॉन्स टीमें भेजनी होती हैं और रीकॉयलेस गन बंद सफारी के ऊपर लगाना संभव नहीं है। वहीं टाटा मोटर्स ने भी सफारी को मॉडिफाई करने से मना कर दिया। वहीं जिप्सी पर गन माउंट की जा सकती हैं। मारुति जिप्सी में 16-वॉल्व MPFI 1.3 लीटर पेट्रोल इंजन आता है, जो 80 बीएचपी की पावर और 103 एनएम का टॉर्क जनरेट करता है।