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नंदादेवी महोत्सव : न कोई रैला, न ही शोर लेकिन फिर भी आस्था चारों ओर, तस्वीरों में देखें
न्यूज़ डेस्क, अमर उजाला, अल्मोड़ा
Published by: Nirmala Suyal Nirmala Suyal
Updated Sat, 29 Aug 2020 03:38 PM IST
सार
रोना के कारण सादगी से निकाली गई नंदा-सुनंदा के डोले की शोभा यात्रा, विसर्जन के साथ महोत्सव का समापन
40-50 लोग ही शामिल हुए इस बार शोभा यात्रा में
20- इंच चौड़ी और 45 इंच लंबी बनाई गई थीं इस बार मूर्तियां
30-35 किलोग्राम के आसपास रखा गया था मूर्तियों का वजन
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- फोटो : amar ujala
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मां नंदा सुनंदा के डोले की शोभा यात्रा के साथ नंदादेवी महोत्सव का समापन हो गया। कोरोना महामारी के कारण पहली बार डोले की शोभायात्रा में गिने चुने लोग ही शामिल हुए।
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रास्ते में भी डोले के दर्शन के लिए कम ही लोग पहुंचे थे। इस दौरान लोगों ने बालकनी और छतों पर आकर मां नंदा सुनंदा के दर्शन किए। कई स्थानों पर लोगों ने पुष्पवर्षा भी की। जबकि बीते वर्षों में इस दिन पूरा शहर उमड़ पड़ता था। आसपास के गांवों से भी सैकड़ों की संख्या में लोग मां के दर्शन के लिए पहुंचते थे।
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नंदादेवी मंदिर प्रांगण से डोले की शोभा यात्रा प्रारंभ होने से पहले मां नंदा-सुनंदा की आरती की गई। उसके बाद शाम करीब चार बजे शंख ध्वनि के साथ ही डोले की शोभायात्रा निकली गई। विभिन्न मार्गों से होकर डोला सबसे पहले जीजीआईसी परिसर के निकट स्थित मां भगवती मंदिर के सामने माल रोड में रोका गया और यहां से परंपरा के अनुसार नंदा सुनंदा को मंदिर के दर्शन कराए गए। इसे भगवती मंदिर को मां का मायका भी कहा जाता है।
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मालरोड से डोले की शोभायात्रा सीढ़ी बाजार होकर कचहरी बाजार, जौहरी बाजार, गंगोला मोहल्ला, थाना बाजार, पल्टन बाजार और सर्किट हाउस होते हुए दुगालगोला स्थित नौले पर पहुंची। यहां मूर्तियों का विसर्जन किया गया। इससे पहले सर्किट हाउस में चंद राज परिवार के लोगों ने मां नंदा सुनंदा को विदाई दी।
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बता दें कि इस साल मूर्तियों का वजन कम करने के लिए मूर्तियों का आकार और वजन भी काफी कम किया गया था ताकि कम लोग भी डोले को आसानी से घुमा सकें। शोभा यात्रा में मंदिर समिति के पदाधिकारियों सदस्यों, जन प्रतिनिधियों सहित करीब 40-50 लोग ही शामिल थे। शोभा यात्रा में छोलिया नर्तकों का दल भी शामिल था और काफी संख्या में पुलिस कर्मी आगे पीछे चल रहे थे।
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