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उत्तराखंड: चमोली के पिंडर क्षेत्र में तीन साल में सातवीं बार फटा बादल, तस्वीरों में देखें तबाही का मंजर...

सतीश गैरोला, अमर उजाला, कर्णप्रयाग Published by: अलका त्यागी Updated Tue, 21 Sep 2021 05:06 PM IST
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Uttarakhand Weather News: seventh Time Cloudburst in chamoli Pindar Area during Three Years photos
चमोली में बादल फटा - फोटो : अमर उजाला

उत्तराखंड के चमोली जिले के पंती में सोमवार को भारी बारिश ने जमकर कहर बरपाया था। हर ओर मची चीख पुकार से हर कोई सहमा रहा। भू-गर्भीय दृष्टि से संवेदनशील नारायणबगड़ क्षेत्र में पहले भी कई आपदाएं आ चुकी हैं। चमोली जिले के पिंडर क्षेत्र में सितंबर 2019 के बाद बादल फटने की यह सातवीं बड़ी घटना है। मंगलवार को भी पूरे क्षेत्र में चारों तरफ मलबा ही फैला रहा। इससे ग्रामीणों को परेशानी उठानी पड़ी।



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आपदा के लिहाज से चमोली जिले के कर्णप्रयाग, नारायणबगड़, थराली, देवाल क्षेत्र को सबसे ज्यादा संवेदनशील माना गया है। गौचर से लेकर कर्णप्रयाग, बदरीनाथ मार्ग पर पंचपुलिया, नौटी से लेकर सिरोली तक व नारायणबगड़ का क्षेत्र खड़िया मिट्टी क्षेत्र का बताया जाता है। प्रोफेसर डॉ. जेएस कंडारी बताते हैं कि नारायणबगड़, थराली, गौचर, श्रीनगर, मलेथा, स्यूंसी, सतपुली, पाटीसैंण, सोमेश्वर और चौखुटिया में भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं सबसे अधिक होती हैं।

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गढ़वाल विवि श्रीनगर में भूगोल विभाग के प्राफेसर डॉ. एमएस पंवार के अनुसार वनों के असमान वितरण के कारण भी बादल फटने की घटनाएं होती हैं। जहां वन ज्यादा हैं वहां बादल फटने की आशंका कम रहती है।

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चमोली में बादल फटा - फोटो : अमर उजाला

वहीं, कम वन क्षेत्र वाली जगहों पर बादल फटने की आशंका अधिक होती है। बादल जब वाष्पीकरण कर पानी सोखकर वायुमंडल में जाते हैं तो उनका रुख उन क्षेत्रों की ओर अधिक होता है जहां घने जंगल और पहाड़ों की घाटियां होती हैं।

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चमोली में बादल फटा - फोटो : अमर उजाला

जंगल वायुमंडल से बादलों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। जब बादल पानी का भार सहन नहीं कर पाते हैं तो पानी एक साथ जमीन पर गिर जाता है। घाटीनुमा बनावट की वजह से चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी व बागेश्वर जिलों में बादल फटने की घटनाएं ज्यादा होती हैं।

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चमोली में बादल फटा - फोटो : अमर उजाला

उच्च हिमालयी क्षेत्रों की मिट्टी में भार वहन करने की क्षमता काफी कम होती है। तेज बारिश होने पर यह मिट्टी दरक जाती है और तेजी से ढलान की ओर बहती है। साथ ही भूकंप की वजह से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जमीन कमजोर पड़ जाती है और बारीक दरारें आ जाती हैं।

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चमोली में बादल फटा - फोटो : अमर उजाला

बादल फटने के दौरान यह दरारें भी तबाही का कारण बनती हैं। पानी का दबाव बढ़ने पर यह दरारें फट जाती हैं और इनसे निकला मलबा ढलान पर तेजी से बहने लगता है। 1992 में गडनी क्षेत्र में बादल फटने से गडनी बाजार में तबाही मची थी और 14 लोग जिंदा दफन हो गए थे।

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