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जिस नेता ने 1971 में पाक को चटाई थी धूल, जानते हैं क्यों दो बार PM बनने से चूके वो
टीम डिजिटल/अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Sat, 08 Jul 2017 12:00 PM IST
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आज चाहे हम चाइना को लेकर कितनी भी बातें कर लें, जीत के कितने भी दावे कर लें। लेकिन सच्चाई तो यह है कि जंग के मैदान में भारत को 1962 में उसने मात दे रखी है।
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वहीं जब बात पाकिस्तान की आती है तो हम उन्हें 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मात दे चुके हैं। आज जब हम 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की बात करतें हैं तो UPA की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार व लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार के पिता की याद आना स्वाभाविक है।
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असल में भारत की आजादी के आंदोलन में जब भी किसी क्रांतिकारी राजनेता का नाम लिया जाएगा उस पंक्ति में बाबू जगजीवन राम पहली पंक्ति में होंगे। बाबू जगजीवन राम को हम बाबूजी के नाम से भी जानते हैं। आज भी जब हम 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की बात करतें हैं तो बाबुजी कि याद आना स्वाभाविक है।
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उन्होनें एक सफल रक्षा मंत्री के तौर पर 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह परास्त करने में बड़ी भूमिका निभाई थी। वही बाबू जगजीवन राम की आज पुण्यतिथि है। एक सफल रक्षा मंत्री जो कि दो बार प्रधानमंत्री बन सकते थे।
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दलितों से भेदभाव के विरोध से ही हो गइ थी राजनितिक जीवन-यात्रा कि शुरुआत: दलित समुदाय से होने के कारण उनको बचपन से ही सामाजिक भेदभाव और छुआछूत का शिकार होना पड़ा था। बिहार के आरा के जिस स्कूल में बाबू जगजीवन राम पढ़ते थे उस स्कूल में हिंदू और मुसलमान छात्रों के लिए पीने के पानी के अलग-अलग मटके रखे जाते थे। दलित समुदाय के छात्रों ने हिंदू छात्रों के लिए रखे मटके में से पानी पिने पर कथित ऊंची जाति के छात्रों ने जमकर विरोध किया था। उक्त विरोध के बाद स्कूल के प्रिंसिपल ने दलितों के लिए एक और मटका रखवा दिया। छात्र जगजीवन राम ने दलितों के लिए रखे मटके को फोड़कर अपना विरोध प्रकट किया। अंत में प्रिंसिपल ने तीसरा मटका न रखने का निर्णय लिया। स्कूल की इस घटना ने बाबू जगजीवन राम के राजनीतिक जीवन की दिशा तय कर दी। बाबू जगजीवन राम के संसदीय जीवन का इतिहास 50 साल का रहा है, जो कि अपने आप में एक विश्व कीर्तिमान है।
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