उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में एक रामकोला मंदिर है। रामकोला गांव से लेकर रामकोला धाम तक की कहानी बड़ी दिलचस्प है। सबसे प्रसिद्ध यहां की भागवत कथा रही, जो प्रदेश के लोगों के लिए रामकोला की पहचान बनी है। वहीं अनुसुइया मंदिर बनने के बाद रामकोला को रामकोला धाम के नाम से जाना जाने लगा। आगे की स्लाइड्स में देखें तस्वीरें...
ये है रामकोला की कहानी
जब देश गुलाम था, उस समय रामकोला गांव था। रामकोला को टाउन एरिया का दर्जा 1958 में मिला। बताया जाता है कि जब प्रदेश में जमींदारी प्रथा थी, उस समय रामकोला के जमींदारों की जमींदारी दूर तक थी। कुछ सौ वर्ष पहले यहां के जमींदारों ने एक बार रामकोला में भागवत कथा का आयोजन किया था।
उसमें यहीं बगल के गांव मांडेराय के पुरोहित ने भागवत कथा शुरू की। बताते हैं कि जब कथा शुरू हुई तो शुरुआत के समय कुछ लोग सुनने नहीं आ पाए थे। देर से पहुंचे लोगों ने फिर से भागवत कथा कहने के लिए पंडित से कहा।
पंडित ने दोबारा कथा शुरू की। इसी प्रकार जो भी देर से आता था, वह कथा दोबारा शुरू से कहने के लिए बाध्य करता था। इस कारण आठ दिनों में समाप्त होने वाली भागवत कथा महीनों बीत जाने के बाद भी केवल शुरुआत ही होती रही।
जमींदारों के इस रवैये से परेशान होकर पंडित भाग गए और जब उन्हें ढूंढा जाने लगा तो वे एक पेड़ पर चढ़कर कूद गए। इसी कारण उनकी मौत हो गई। उसके बाद यहां के जमींदारों ने उनके परिवार को दान में 700 एकड़ जमीन मांडेराय में दे दी। जहां अब भी उनकी बस्ती है। इस प्रकार रामकोला की भागवत कथा कभी समाप्त न होने वाली कथा हो गई।