कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए देश में टीकाकरण की रफ्तार को तेज कर दिया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक अब तक देश में 81.85 करोड़ से अधिक लोगों को वैक्सीन की कम से कम एक खुराक मिल चुकी है। अध्ययनकर्ताओं का कहना कि जिन लोगों ने वैक्सीनेशन करा लिया है उन्हें कोरोना के गंभीर संक्रमण और इससे होने वाली मौत के खतरे से काफी हद तक सुरक्षित माना जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ वैक्सीनेशन की प्रभाविकता को लेकर सामने आ रही कुछ रिपोर्टस के कारण लोगों के मन में भ्रम की स्थिति भी बनी हुई है।
बड़ा सवाल: कोरोना संक्रमण से कितने सुरक्षित हैं आप? क्या एंटीबॉडी टेस्ट से चल सकता है इसका पता
एंटीबॉडी टेस्ट की बढ़ी मांग
हालिया रिपोर्टस के मुताबिक जिन लोगों के टीकाकरण के चार-पांच महीने हो गए हैं, वह अब कोरोना संक्रमण से सुरक्षा के स्तर को जानने के लिए पैथालॉजी लैब का रुख कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में एंटीबॉडी टेस्ट के लिए रोजाना सैकड़ों अनुरोध आ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि एंटीबॉडी के कम होते स्तर वाली रिपोर्ट्स के चलते लोगों में डर है कि कहीं वह वैक्सीनेशन के बाद भी संक्रमण के शिकार न हो जाएं, यही कारण है कि इन दिनों इस परीक्षण की मांग तेजी से बढ़ गई है।
एंटीबॉडी टेस्ट से क्या पता चलता है?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक एंटीबॉडी या सीरोलॉजी टेस्ट के माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि किसी वायरस के खिलाफ लड़ने के लिए शरीर में पर्याप्त मात्रा में सुरक्षात्मक एंटीबॉडीज हैं या नहीं? इसके अलावा इससे पिछले संक्रमण का भी पता लगाया जा सकता है। आमतौर पर यह दो प्रकार के होते हैं- पहला क्वालिटिव
जिसके माध्यम से पता किया जाता है कि व्यक्ति में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी हैं या नहीं?
दूसरा क्वांटिटिव
इससे शरीर में एंटीबॉडी की मात्रा निर्धारित की जाती है। कोरोना के खिलाफ सुरक्षा को जानने के लिए इन दिनों क्वांटिटिव एंटीबॉडी टेस्ट की मांग बढ़ रही है।
क्या एंटीबॉडी टेस्ट से सबकुछ हो जाएगा साफ?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं-
एंटीबॉडी टेस्ट के माध्यम से अगर आप भी कोरोना के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी के स्तर को जानना चाहते हैं तो रुकिए, इस टेस्ट का कोई खास लाभ नहीं है। यह बात सही है कि समय के साथ शरीर में एंटीबॉडी का स्तर कम हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपमें कोरोना का खतरा पहले जैसा है ही। असल में मेमोरी बी और टी कोशिकाएं वायरस से लड़ने में मदद करती हैं और जरूरत पड़ने पर एंटीबॉडीज के उत्पादन को बढ़ावा दे सकती हैं।
ऐसे में अगर एंटीबॉडी टेस्ट में एंटीबॉडीज का स्तर कम भी आता है तो घबराने की जरूरत नहीं है। वैसे भी एंटीबॉडी टेस्ट इस बात को प्रमाणित नहीं करती है कि आप कोरोना से कितने सुरक्षित है?
एंटीबॉडीज के स्तर को लेकर हाल में आई कई रिपोर्टस ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है। हाल ही में आईसीएमआर के वैज्ञानिकों एक अध्ययन में बताया कि वैक्सीनेशन के कुछ ही महीनों बाद शरीर में बनी एंटीबॉडीज में गिरावट देखने को मिली है। अध्ययन के लेखकों में से एक डॉ भट्टाचार्य कहते हैं, कोवैक्सीन ले चुके लोगों में टीकाकरण के दूसरे महीने के बाद से ही एंटीबॉडीज के स्तर में कमी देखने को मिली है। वहीं जिन लोगों ने कोविशील्ड वैक्सीन लगवाई है उनमें टीकाकरण के चौथे महीने के बाद एंटीबॉडीज कम होती पाई गई हैं। हालांकि एंटीबॉडीज के घटते स्तर का मतलब यह नहीं है कि आप कोरोना से सुरक्षित नहीं है।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस और अध्ययनों के आधार पर तैयार किया गया है।
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