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बड़ा सवाल: कोरोना संक्रमण से कितने सुरक्षित हैं आप? क्या एंटीबॉडी टेस्ट से चल सकता है इसका पता

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Abhilash Srivastava Updated Tue, 21 Sep 2021 07:01 PM IST
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कोरोना वायरस से कितने सुरक्षित हैं आप? - फोटो : iStock

कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए देश में टीकाकरण की रफ्तार को तेज कर दिया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक अब तक देश में 81.85 करोड़ से अधिक लोगों को वैक्सीन की कम से कम एक खुराक मिल चुकी है। अध्ययनकर्ताओं का कहना कि जिन लोगों ने वैक्सीनेशन करा लिया है उन्हें कोरोना के गंभीर संक्रमण और इससे होने वाली मौत के खतरे से काफी हद तक सुरक्षित माना जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ वैक्सीनेशन की प्रभाविकता को लेकर सामने आ रही कुछ रिपोर्टस के कारण लोगों के मन में भ्रम की स्थिति भी बनी हुई है।


हाल ही में आए कुछ अध्ययनों में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि वैक्सीन से बनी एंटीबॉडीज समय के साथ कम होती जाती हैं। बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि शरीर में वैक्सीन से बनी एंटीबॉडीज पांच से सात महीनों तक असरदार रहती है, इसके बाद इनका स्तर कम होने लगता है। यही कारण है कि सुरक्षात्मक पुष्टि हेतु एंटीबॉडी टेस्ट कराने के लिए अब लोग लैब की तरफ भाग रहे हैं। पर क्या एंटीबॉडी टेस्ट से कोरोना सुरक्षा का अंदाजा लगाया जा सकता है? आइए आगे की स्लाइडों में इस बारे में विस्तार से जानते हैं।

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एंटीबॉडी परीक्षण की बढ़ी मांग - फोटो : Pixabay

एंटीबॉडी टेस्ट की बढ़ी मांग
हालिया रिपोर्टस के मुताबिक जिन लोगों के टीकाकरण के चार-पांच महीने हो गए हैं, वह अब कोरोना संक्रमण से सुरक्षा के स्तर को जानने के लिए पैथालॉजी लैब का रुख कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में एंटीबॉडी टेस्ट के लिए रोजाना सैकड़ों अनुरोध आ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि एंटीबॉडी के कम होते स्तर वाली रिपोर्ट्स के चलते लोगों में डर है कि कहीं वह वैक्सीनेशन के बाद भी संक्रमण के शिकार न हो जाएं, यही कारण है कि इन दिनों इस परीक्षण की मांग तेजी से बढ़ गई है। 

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शरीर में एंटीबॉडीज का स्तर जानने के लिए जांच - फोटो : Pixabay

एंटीबॉडी टेस्ट से क्या पता चलता है?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक एंटीबॉडी या सीरोलॉजी टेस्ट के माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि किसी वायरस के खिलाफ लड़ने के लिए शरीर में पर्याप्त मात्रा में सुरक्षात्मक एंटीबॉडीज हैं या नहीं? इसके अलावा इससे पिछले संक्रमण का भी पता लगाया जा सकता है। आमतौर पर यह दो प्रकार के होते हैं- पहला क्वालिटिव 

जिसके माध्यम से पता किया जाता है कि व्यक्ति में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी हैं या नहीं?

दूसरा क्वांटिटिव

इससे शरीर में एंटीबॉडी की मात्रा निर्धारित की जाती है। कोरोना के खिलाफ सुरक्षा को जानने के लिए इन दिनों क्वांटिटिव एंटीबॉडी टेस्ट की मांग बढ़ रही है।

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कोरोना संक्रमण से सुरक्षा (प्रतीकात्मक तस्वीर) - फोटो : iStock

क्या एंटीबॉडी टेस्ट से सबकुछ हो जाएगा साफ?

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं-

एंटीबॉडी टेस्ट के माध्यम से अगर आप भी कोरोना के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी के स्तर को जानना चाहते हैं तो रुकिए, इस टेस्ट का कोई खास लाभ नहीं है। यह बात सही है कि समय के साथ शरीर में एंटीबॉडी का स्तर कम हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपमें कोरोना का खतरा पहले जैसा है ही। असल में मेमोरी बी और टी कोशिकाएं वायरस से लड़ने में मदद करती हैं और जरूरत पड़ने पर एंटीबॉडीज के उत्पादन को बढ़ावा दे सकती हैं। 

ऐसे में अगर एंटीबॉडी टेस्ट में एंटीबॉडीज का स्तर कम भी आता है तो घबराने की जरूरत नहीं है। वैसे भी एंटीबॉडी टेस्ट इस बात को प्रमाणित नहीं करती है कि आप कोरोना से कितने सुरक्षित है?

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शरीर में कम हो रहा है एंटीबॉडीज का स्तर - फोटो : Pixabay
क्यों बढ़ रही है लोगों में एंटीबॉडीज को लेकर चिंता?
एंटीबॉडीज के स्तर को लेकर हाल में आई कई रिपोर्टस ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है। हाल ही में आईसीएमआर के वैज्ञानिकों एक अध्ययन में बताया कि वैक्सीनेशन के कुछ ही महीनों बाद शरीर में बनी एंटीबॉडीज में गिरावट देखने को मिली है। अध्ययन के लेखकों में से एक डॉ भट्टाचार्य कहते हैं, कोवैक्सीन ले चुके लोगों में टीकाकरण के दूसरे महीने के बाद से ही एंटीबॉडीज के स्तर में कमी देखने को मिली है। वहीं जिन लोगों ने कोविशील्ड वैक्सीन लगवाई है उनमें टीकाकरण के चौथे महीने के बाद एंटीबॉडीज कम होती पाई गई हैं। हालांकि एंटीबॉडीज के घटते स्तर का मतलब यह नहीं है कि आप कोरोना से सुरक्षित नहीं है।


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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस और अध्ययनों के आधार पर तैयार किया गया है। 

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

 
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