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लखनऊ यूनिवर्सिटी के सौ वर्ष पूरे होने पर अभिनेता अनुपम खेर ने कही ये बातें, बोले यहां पढ़ा तो नहीं पर...

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, लखनऊ Published by: पंकज श्रीवास्‍तव Updated Mon, 23 Nov 2020 05:09 PM IST
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film actor anupam kher shared their memories on centenary celebration of lucknow university
अनुपम खेर और लखनऊ यूनिवर्सिटी - फोटो : अमर उजाला
लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ा नहीं हूं, पर रोज इसके सामने से अपनी नीले रंग की एटलस साइकिल से गुजरा बहुत हूं। पढ़ाई में कभी 38 फीसदी से ज्यादा नंबर नहीं आए। अगर 39 परसेंट आ जाते तो पिताजी खुश हो जाते थे कि बेटा पढ़ाई में सीरियस हो गया है। बावजूद, आज इस सौ साल पुराने विश्वविद्यालय में मुझे आमंत्रित किया गया है तो लगता है कि वास्तव में मैंने कुछ हासिल किया है। यह कहना है फिल्म अभिनेता अनुपम खेर का, जो रविवार को लखनऊ विश्वविद्यालय के शताब्दी महोत्सव के साहित्यिक उत्सव से वर्चुअली जुड़े और लखनऊ से जुड़े तमाम किस्से साझा किए। कुलपति प्रो. आलोक कुमार ने उनका स्वागत किया और साहित्यकार यतीन्द्र मिश्र ने उनसे बात की। 

 
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फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने बताया कि जब वे लखनऊ आए तो उससे पहले बेहद संघर्ष के कई महीने गुजरे थे। यहां 1200 रुपये महीने की पगार पर राज बिसारिया ने बीएनए में नौकरी दिलाई तो मानो जहां मिल गया। इससे पहले कभी कोई नाटक में काम किया तो कुछ पैसे मिल गए या फिर स्टाइपेंड से काम चलता था। लखनऊ में ही वाहन के रूप में अपनी पहली साइकिल खरीदी थी।
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उनके अनुसार एनएसडी और लखनऊ में बिताया गया समय उनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ है। जब एनएसडी में पढ़ाई करने पहुंचा तो खुद को बहुत बड़ा एक्टर मानता था। क्योंकि हिमाचल प्रदेश में बड़ा नाम था। यहां आने पर जब देश भर के दिग्गजों से मिला तो एहसास हुआ कि क्या स्थिति है। एक बात अहम थी कि मेरे अंदर सीखने की ललक बहुत ज्यादा थी। इससे मुझे काफी फायदा हुआ। अंत में प्रो. निशि पांडे ने छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए अनुपम खेर और डॉ. यतींद्र मिश्रा को धन्यवाद दिया। डॉ. केया पांडेय ने सत्र का संचालन किया। 


 
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- फोटो : अमर उजाला
पिता के सबसे करीब रहा 
अनुपम खेर ने बताया कि वे अपने पिता के सबसे ज्यादा करीब थे और उनके सबसे अच्छे मित्र भी थे। वे कहते थे कि असफलता कोई पात्र नहीं बल्कि एक घटना मात्र है। उन्होंने बताया कि किस तरह उनके पिता ने क्लास के 66 बच्चों में से 65वीं पोजिशन लाने पर खुशी जाहिर करते हुए कहा था कि तुम्हारे पास कोई डर नहीं है, कोशिश करना कि अगली बार 48वीं पोजीशन तक आना। इन्हीं सब वजह से पिताजी की शोक सभा को अनोखे अंदाज में मनाया गया था तथा सबसे उनके जीवन से जुड़ी मजाकिया चीजों के बारे में बात करने को कहा गया था। लोगों ने जब अपनी यादें साझा कीं तो मां का कहना था कि उनकी शादी कितने महान व्यक्ति के साथ हुई थी। पिताजी उनके दोस्तों से भी दोस्ती रखते थे। अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ जैसे तमाम दोस्त उनके साथ जुड़े थे और आपस में बात करते रहते थे। 

 
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- फोटो : अमर उजाला
महामारी के दौरान लिखी किताब
फिल्म अभिनेता ने कहा कि 36 साल में लॉकडाउन के दौरान पहली बार उन्होंने छुट्टी ली। इस दौरान भी उन्होंने अपनी किताब पूरी की। अंत में उन्होंने कहा कि उनकी पसंदीदा पुस्तकें ‘चार्ली चैपलिन की जीवनी’, ‘लस्ट फॉर लाइफ’ और ‘हाउ दी स्टील वास्टेम्पर्ड’ हैं। उनके अनुसार महामारी ने सिखाया कि जीवन में परिवार, रोज खाने की सामग्री और वाईफाई की ही जरूरत होती है। उन्होंने यह भी कहा कि युवाओं से वे काफी सीखते हैं। यह पीढ़ी तहजीब की एक्टिंग नहीं करती है और बेबाकी से सच बोलती है। 
 
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