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कभी जिनकी बाहों में अपने झूमते थे, ...लेकिन वक्त ने ली कुछ यूं करवट घर छोड़ आना पड़ा वृद्धाश्रम
पुनीत गुप्ता, अमर उजाला, लखनऊ
Published by: ishwar ashish
Updated Tue, 12 Feb 2019 04:08 PM IST
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हग डे
- फोटो : amar ujala
कभी जिनकी बांहें गले लगाने के लिए खुली रहती थीं, उनकी बांहों में अपने झूमते थे, लेकिन हालात कुछ यूं बदले कि घर छोड़ कर उन्हें वृद्धाश्रम आना पड़ा। उन्हें किसी से शिकायत नहीं। बस इतना कहते हैं, पहले बच्चों को गले लगाते थे अब जिंदगी को गले लगा लिया। आज हग डे पर हम आपकी मुलाकात करा रहे हैं जानकीपुरम स्थित छवि शांति धाम वृद्धाश्रम में रह रहे जिंदादिल बुजुर्गों से...
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हग डे
- फोटो : amar ujala
शिकवा न शिकायत, जब मिलती हूं गले मिलती हूं
मैं अपने पति केसी श्रीवास्तव के साथ यहां तीन माह से रह रही हूं। हमने अपनी शर्तों पर जिंदगी जी है, हम दोनों ने तय कर लिया था कि आगे भी ऐसे ही जीएंगे। बच्चे बड़े हो गए, बहुएं घर आ गईं, वे सभी अपने हिसाब से जिंदगी जी रहे हैं। हमने भी तय कर लिया था कि हमारे जीने का तरीका भी हमारा खुद का होगा और घर छोड़ वृद्धाश्रम चले आए। यहां बहुत मजा आता है। मेरी दो छोटी बहने यहीं पुराने लखनऊ में रहती हैं। जब भी मिलती हूं, वे मुझे गले लगा लेती हैं। मेरा मानना है कि किसी से मुलाकात हो या ना हो, लेकिन जब भी मुलाकात हो गले मीलिए...।
- पति केसी श्रीवास्तव (74) सेवानिवृत्त रेलवे इंजीनियर के साथ सुशीला चंद (70), सेवानिवृत्त शिक्षिका
मैं अपने पति केसी श्रीवास्तव के साथ यहां तीन माह से रह रही हूं। हमने अपनी शर्तों पर जिंदगी जी है, हम दोनों ने तय कर लिया था कि आगे भी ऐसे ही जीएंगे। बच्चे बड़े हो गए, बहुएं घर आ गईं, वे सभी अपने हिसाब से जिंदगी जी रहे हैं। हमने भी तय कर लिया था कि हमारे जीने का तरीका भी हमारा खुद का होगा और घर छोड़ वृद्धाश्रम चले आए। यहां बहुत मजा आता है। मेरी दो छोटी बहने यहीं पुराने लखनऊ में रहती हैं। जब भी मिलती हूं, वे मुझे गले लगा लेती हैं। मेरा मानना है कि किसी से मुलाकात हो या ना हो, लेकिन जब भी मुलाकात हो गले मीलिए...।
- पति केसी श्रीवास्तव (74) सेवानिवृत्त रेलवे इंजीनियर के साथ सुशीला चंद (70), सेवानिवृत्त शिक्षिका
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बहुत ख्याल रखते हैं मेरे भतीजे
मैं कोलकाता में रहती थी। वर्ष 2004 में पति विष्णु प्रसाद तरफदार के निधन के बाद मैं अकेली रह गई। मकान जर्जर हो गया था। पानी भी नहीं आ रहा था। फिर मैंने लखनऊ में रह रहे भतीजे से बोली कि मेरे लिए कहीं रहने की व्यवस्था कर दो। मैं परेशान नहीं करूंगी। वे मुझे चार साल पहले यहां वृद्धाश्रम लेकर आए। मेरे जो कुछ भी हैं वो मेरे भतीजे पीके सेन, सुदीप सेन और इस वृद्धाश्रम के साथी हैं। मैं इनसे ही गले मिलती हूं। - ममता तरफदार (77)
मैं कोलकाता में रहती थी। वर्ष 2004 में पति विष्णु प्रसाद तरफदार के निधन के बाद मैं अकेली रह गई। मकान जर्जर हो गया था। पानी भी नहीं आ रहा था। फिर मैंने लखनऊ में रह रहे भतीजे से बोली कि मेरे लिए कहीं रहने की व्यवस्था कर दो। मैं परेशान नहीं करूंगी। वे मुझे चार साल पहले यहां वृद्धाश्रम लेकर आए। मेरे जो कुछ भी हैं वो मेरे भतीजे पीके सेन, सुदीप सेन और इस वृद्धाश्रम के साथी हैं। मैं इनसे ही गले मिलती हूं। - ममता तरफदार (77)
हग डे
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मैं बीते कल में नहीं, वर्तमान में जीता हूं
मैं बीते कल के बारे में सोचता ही नहीं हूं। तो फिर उन्हें याद करना और दूसरे से शेयर करने का सवाल ही नहीं उठता है। मैं अपने धुन में जीता हूं। खुद ही को लगे लगा लेता हूं और जो मुस्कुराता हुआ मेरे पास आता है, उसका हमेशा स्वागत करता हूं। यही मेरे जीने का तरीका है। मुझे यह सब करने की आजादी इस वृद्धाश्रम में मिलती है। इसलिए मैं यहां 11 वर्षों से हूं।
- एचएम कपूर (70), सेवानिवृत्त बैंक अफसर
मैं बीते कल के बारे में सोचता ही नहीं हूं। तो फिर उन्हें याद करना और दूसरे से शेयर करने का सवाल ही नहीं उठता है। मैं अपने धुन में जीता हूं। खुद ही को लगे लगा लेता हूं और जो मुस्कुराता हुआ मेरे पास आता है, उसका हमेशा स्वागत करता हूं। यही मेरे जीने का तरीका है। मुझे यह सब करने की आजादी इस वृद्धाश्रम में मिलती है। इसलिए मैं यहां 11 वर्षों से हूं।
- एचएम कपूर (70), सेवानिवृत्त बैंक अफसर
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कुछ हटकर
जब पिता ने दी जादू की झप्पी
व्यापार में घाटा होने पर हार गया था हिम्मत
बात 2008 की है। व्यापार में लगातार घाटा होने से मैं कर्ज में चला गया था। लगता था सब कुछ छोड़कर भाग जाऊं। रात को रोजाना मेरे पिता से बात होती थी, लेकिन इस बारे में मैंने उनसे एक बार भी बात नहीं की। एक दिन उन्होंने मुझे पूछ लिया कि कोई बात है, जो तुम्हें परेशान कर रही है। मैंने छुपाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने भाप लिया। मैंने पूरी बात बताई। वे बोले कहीं जाने की जरूरत नहीं है। जब तक तुम्हारा पिता जिंदा है, तुम बेफिक्र रहो। उन्होंने पैसे का इंतजाम किया, मेरा हौसला बढ़ाया। मेरा बिजनेस फिर से अच्छा हो गया। कुछ वर्षों में ही मैंने घाटे की भरपाई पूरी कर ली। मेरे पिता दुनिया में अब नहीं हैं, लेकिन उन्हें रोज याद करता हूं।
- परिवार के साथ जसवीर सिंह, व्यापारी
जब पिता ने दी जादू की झप्पी
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- परिवार के साथ जसवीर सिंह, व्यापारी