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Bhagoria 2025: छोटे से गांव से निकला भगोरिया कैसे बना पूरे आदिवासी समाज का पर्व, जेम्स टॉड से नाता, जानें सब
भगोरिया आदिवासी समुदाय का प्रमुख पर्व है, जिसकी उत्पत्ति ऋषि भृगु से जुड़ी है। इसे महाशिवरात्रि का भीली संस्करण माना जाता है। इतिहासकार जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक में इसका जिक्र किया था। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद इसे भव्य स्तर पर मनाया जाएगा। विभिन्न जिलों में मेले आयोजित होंगे।
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भगोरिया के बारे में सब कुछ जानिए।
- फोटो : अमर उजाला
आदिवासी लोक संस्कृति का प्रमुख पर्व भगोरिया होली के सात दिन पूर्व से आदिवासी अंचलों में प्रमुखता से मनाया जाता है और यह शुरू हो रहा है। भगोरिया शब्द की उत्पत्ति ऋषि भृगु के नाम पर हुई है, यह क्षेत्र ऋषि भृगु की भूमि रहा है। इस बात का उल्लेख प्रसिद्ध इतिहासकार जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तकों में किया है।
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भगोरिया आदिवासियों का एक महत्वपूर्ण पर्व
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क्या है भगोरिया
भगोरिया आदिवासियों का एक महत्वपूर्ण पर्व है। इसके लिए आदिवासी अपने-अपने घरों की लौट आते हैं। भगोरिया यानी होली के एक हफ्ते पहले लगने वाले हाट बाजार.. यानी इन हाट बाजारों में रौनक बढ़ जाती है। आदिवासी अपने विशेष परिधानों के साथ निकलते हैं। हर दिन अलग-अलग मेला भरता है। इसे देखने अब दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। पहले इसे प्रणय पर्व भी कहा जाता था, हालांकि ये भ्रम भी टूट गया है। कहा जाता था कि इन मेलों में पुरुष महिलाओं को पान खिलाते हैं, जो महिला पान खा लेती है तो उसका मतलब रहता है कि वो उससे शादी के लिए राजी है। हालांकि ये परंपरा पूरे आदिवासी समाज की नहीं, वरन कुछेक लोगों के बीच थी।
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झाबुआ जिले में है भगोर गांव।
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अब जानते हैं भगोरिया का इतिहास
झाबुआ जिले में आज भी भगोर गांव है। वैदिक काल से शिव भक्ति की प्रधानता रही है और भृगु ऋषि शिव भक्त थे। भगोर गांव में प्राचीन शिव मंदिर और इसी गांव के समीप पातालेश्वर शिव मंदिर स्थित है। ऐसा माना जाता है भारत में शिल्प कला का प्रारंभ चंद्रगुप्त मौर्य (ईसा से 450 वर्ष पूर्व) के कालखंड में हुआ। किसी कालखंड में भगोर गांव एक विशाल नगर था, यह गांव 1200 वर्ग मील में फैला हुआ था। धार के प्रसिद्ध राजा भोज का राज बांसवाड़ा तक फैला हुआ था, भगोर इसी राज्य के अंतर्गत आता था। इस क्षेत्र में भील राजा, राजा भोज की अधीनता में ही राज्य करते थे। यह सिद्ध होता है कि भगोरिया पर्व महाशिवरात्रि पर्व का भीली संस्करण है। आदिवासी-भील अंचल के लोग इस पर्व को शिव पार्वती की स्मृति में ही आयोजित करते हैं।
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आदिवासी-भील अंचल के लोग अपने आप को भगवान शिव का वंशज मानते हैं।
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आदिवासियों का जीवन शिव जैसा अक्खड़ और फक्कड़
आदिवासी-भील अंचल के लोग अपने आप को भगवान शिव का वंशज मानते हैं, पार्वती को वह अपनी बिरादरी की बेटी समझते हैं, इसीलिए भी समुदाय का जीवन महादेव जैसा अखड्ड एवं फक्कड़ है। प्राचीन आदिवासी समुदाय के लोगों के फोटो देखें तो वह मात्र एक लंगोटी में ही रहते थे। आगामी दिनों में आदिवासी अंचलों में भगोरिया मेलों की धूम रहेगी। अगले वर्ष यह पर्व और अधिक आकर्षक और पर्यटन की दृष्टि से भव्य स्तर पर आयोजित होने लगेंगे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भगोरिया और अन्य जनजाति उत्सव बड़े स्तर पर मनाए जाने की घोषणा की है। इसके बाद भगोरिया के प्रति लोगों में उत्सुकता और बढ़ गई है।
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प्रसिद्ध इतिहासकार जेम्स टॉड ने देखी खूबसूरती।
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इतिहासकार की किताब में जिक्र
बताया जा रहा है कि प्रसिद्ध इतिहासकार जेम्स टॉड अपने समय में राजस्थान की खूबसूरती देखने आए थे। तब राजा भोज का क्षेत्र बांसवाड़ा तक फैला था। जेम्स टॉड ने आदिवासियों और उनकी परंपरा के बारे में सुना और देखने पहुंचे। तब उन्होंने भगोरिया के बारे में भी जाना और अपनी किताब एनाल्स एंड एंटी क्यूटीज ऑफ राजस्थान में इसका जिक्र किया था।
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