बुंदेलखंड अंचल की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतें अनेक रहस्यों और अद्वितीय स्थापत्य कला को अपने भीतर समेटे हुए हैं। इन्हीं विरासतों में एक विशेष स्थान रखता है सागर जिले में मंडीबामोरा स्थित हजारिया महादेव मंदिर, जहां एक ही शिवलिंग में हजार शिवलिंगों के दर्शन होते हैं। यह मंदिर श्रद्धा, इतिहास और कला का संगम है और श्रावण मास में विशेष रूप से श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर खींचता है।
Sawan: एक लोटा जल से होता है हजार शिवलिंगों का अभिषेक, मंडीबामोरा के इस मंदिर में बिना पुजारी के पूजन; जानें
Hazariya Mahadev Temple: हजारिया महादेव मंदिर का निर्माण 11वीं-12वीं सदी ईस्वी में परमार वंश के शासनकाल के दौरान हुआ माना जाता है। स्थानीय पत्थरों और भूमिज शैली में निर्मित यह मंदिर वास्तुशिल्प की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है।
एक लोटा जल करता है समवेत अभिषेक
भोपाल-बीना रेलखंड पर स्थित मंडीबामोरा रेलवे स्टेशन से मात्र आधा किलोमीटर दूर, पूर्व दिशा में स्थित इस मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता है इसका शिवलिंग, जिसमें एक साथ हजार शिवलिंगों का आकार उकेरा गया है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जब कोई भक्त इस शिवलिंग पर एक लोटा जल चढ़ाता है, तो वह एक साथ हजार शिवलिंगों का अभिषेक कर देता है। यही कारण है कि यह मंदिर ‘हजारिया महादेव’ के नाम से प्रसिद्ध है और श्रावण मास में यहां दर्शन के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
यह भी पढ़ें- Gwalior News: जरूरत पड़ने पर पुलिस को बुलाना है तो अब इस नंबर को करना होगा डायल, बदलेगा डायल-100
इतिहास और पुरातत्व के पन्नों से
इस मंदिर का निर्माण 11वीं-12वीं सदी ईस्वी में परमार वंश के शासनकाल के दौरान हुआ माना जाता है। स्थानीय पत्थरों और भूमिज शैली में निर्मित यह मंदिर वास्तुशिल्प की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। मंदिर के गर्भगृह, अंतराल और मंडप की योजना, साथ ही इसके शिखर तक विस्तारित कलात्मक लताओं की नक्काशी इस बात का प्रमाण है कि यह परमार कालीन स्थापत्य शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
इस क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व और भी गहराता है जब समीपवर्ती एरण जैसे पुरातात्विक स्थलों में गुप्त, कुषाण, हूण और शुंग वंशों के चिन्ह मिलते हैं। वहीं, गांव-गांव में बिखरी पड़ी चंदेल, प्रतिहार और कल्चुरी काल की मूर्तियां इस क्षेत्र की सांस्कृतिक समृद्धि की गवाही देती हैं।
श्रद्धालु स्वयं चढ़ाते हैं बेलपत्र
हजारिया महादेव मंदिर की एक और अनूठी विशेषता है कि यहां कोई स्थायी पुजारी नहीं है। श्रद्धालु स्वयं बेलपत्र, जल और पूजन सामग्री लाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। यह परंपरा मंदिर को जन आस्था का प्रतीक बनाती है, जहां पूजा व्यक्तिगत श्रद्धा पर आधारित होती है।
मंदिर परिसर में निकलती हैं प्राचीन मूर्तियां
आज भी मंदिर के 200 मीटर के दायरे में लगभग 5 फीट की खुदाई पर पुरानी मूर्तियां निकलती हैं, जिन्हें लोग या तो मंदिर परिसर में स्थापित कर देते हैं या अपने घर में पूजास्थल पर रख लेते हैं। जानकार मानते हैं कि इस स्थान पर कभी कोई प्राचीन बस्ती रही होगी, जो अब भूगर्भित हो चुकी है।
यह भी पढ़ें- Indore: इंदौर में ऑनलाइन गेम में 2800 रुपये हारने पर सातवीं कक्षा के छात्र ने लगा ली फांसी
मूर्तिकला का संग्रहालय बना मंदिर परिसर
मंदिर परिसर में ब्राह्मण और जैन धर्म से संबंधित कई मूर्तियां भी स्थापित हैं, जो विभिन्न कालखंडों का प्रतिनिधित्व करती हैं। वेदिबंध, जंघा, कुम्भ भाग, शिखर और आमलक जैसे मंदिर के विभिन्न स्थापत्य तत्व आज भी इस धरोहर की भव्यता को प्रकट करते हैं, हालांकि मंदिर का ऊपरी भाग काल के थपेड़ों से खंडित हो चुका है।
संरक्षण की दरकार, ताकि बनी रहे पहचान
यह मंदिर आज भी सैकड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, लेकिन इसकी वर्तमान स्थिति संरक्षण की मांग करती है। खुले में रखी गई अनेक प्राचीन मूर्तियां मौसम और उपेक्षा के चलते क्षरण का शिकार हो रही हैं। यदि समय रहते इसका संरक्षण नहीं किया गया, तो यह ऐतिहासिक धरोहर अपना अस्तित्व खो सकती है।