आष्टा तहसील में स्थित भंवरा गांव का माता मंदिर श्रद्धा और आस्था का अद्भुत केंद्र है। सैकड़ों वर्ष पुराने इस मंदिर में करीब दो दशक पूर्व गर्भगृह से तीन पिंडीनुमा प्रतिमाएं मिली थीं, जिन्हें लोग माता वैष्णो देवी का स्वरूप मानकर पूजते हैं। इसी कारण इसे वैष्णवी धाम भी कहा जाने लगा। किंवदंती है कि मुगल शासक औरंगजेब इस मंदिर को तोड़ने आया था, लेकिन जैसे ही वह माता के दरबार के करीब पहुंचा उसकी आंखों की रोशनी धुंधली हो गई। घबराकर उसने माता को दंडवत प्रणाम किया और उन्हें 'इलाई माता' कहकर उल्टे पांव लौट गया। यह घटना मंदिर की दिव्यता का प्रतीक बन गई।
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Navratri 2025: पहली बार औरंगजेब ने पुकारा 'इलाई माता', मंदिर तोड़ने आया था पर शीश नवा कर चला गया, जानें कहानी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सीहोर
Published by: अर्पित याज्ञनिक
Updated Fri, 26 Sep 2025 10:22 AM IST
सार
मंदिर की विशेषता यहां सदियों से प्रज्ज्वलित दो अखंड ज्योतियां, प्राचीन शिवलिंग, विशाल बावड़ी और पाली भाषा के शिलालेख हैं। नवरात्रि के दौरान यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन और पूजा के लिए पहुंचते हैं।
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आष्टा का वैष्णवी मंदिर।
- फोटो : अमर उजाला
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आष्टा का वैष्णवी मंदिर।
- फोटो : अमर उजाला
अखंड ज्योतियों का अद्भुत चमत्कार
ग्राम पंचायत भंवरा के सरपंच हरिओम परमार का कहना है कि मंदिर में प्राचीन समय से करंज तेल से जलती दो अखंड ज्योतियां आज भी प्रज्ज्वलित हैं। देशभर में इस तरह की ज्योतियों का दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। ग्रामीण सामूहिक रूप से चंदा और सेवा देकर इन दीपों को सदियों से जलाये रखे हैं। यह श्रद्धा और सामूहिक आस्था का अनोखा प्रतीक है।
यह भी पढ़ें- इंदौर के शक्ति स्थल: 244 साल पुराना है राजबाड़ा के समीप बना दुर्गा देवी मंदिर, महाराजा भी आते थे शीश नवाने
ग्राम पंचायत भंवरा के सरपंच हरिओम परमार का कहना है कि मंदिर में प्राचीन समय से करंज तेल से जलती दो अखंड ज्योतियां आज भी प्रज्ज्वलित हैं। देशभर में इस तरह की ज्योतियों का दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। ग्रामीण सामूहिक रूप से चंदा और सेवा देकर इन दीपों को सदियों से जलाये रखे हैं। यह श्रद्धा और सामूहिक आस्था का अनोखा प्रतीक है।
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आष्टा का वैष्णवी मंदिर।
- फोटो : अमर उजाला
पाली भाषा में है शिलालेख
मंदिर के जीर्णोद्धार के समय मिले शिलालेख पाली भाषा में लिखे गए हैं। ये प्रमाण बताते हैं कि मंदिर का इतिहास 2500 वर्षों से भी पुराना है। यह शिलालेख आज सीहोर जिला संग्रहालय में सुरक्षित हैं और मंदिर की प्राचीनता को और मजबूत करता है।
मंदिर के जीर्णोद्धार के समय मिले शिलालेख पाली भाषा में लिखे गए हैं। ये प्रमाण बताते हैं कि मंदिर का इतिहास 2500 वर्षों से भी पुराना है। यह शिलालेख आज सीहोर जिला संग्रहालय में सुरक्षित हैं और मंदिर की प्राचीनता को और मजबूत करता है।
आष्टा का वैष्णवी मंदिर।
- फोटो : अमर उजाला
शिव और शक्ति का संगम
जहां शक्ति है वहां शिव का होना अनिवार्य है। यही कारण है कि 'इलाई माता' के मंदिर से करीब 20 फीट की दूरी पर विशाल शिवलिंग स्थापित है। यह शिवालय भी उतना ही प्राचीन माना जाता है और मंदिर परिसर को शिव-शक्ति के अद्वितीय संगम के रूप में प्रतिष्ठित करता है।
जहां शक्ति है वहां शिव का होना अनिवार्य है। यही कारण है कि 'इलाई माता' के मंदिर से करीब 20 फीट की दूरी पर विशाल शिवलिंग स्थापित है। यह शिवालय भी उतना ही प्राचीन माना जाता है और मंदिर परिसर को शिव-शक्ति के अद्वितीय संगम के रूप में प्रतिष्ठित करता है।
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आष्टा का वैष्णवी मंदिर।
- फोटो : अमर उजाला
विशाल बावड़ी कभी नहीं सूखती
मंदिर के सामने बनी विशाल बावड़ी भी चमत्कारी मानी जाती है। 120 फीट लंबी और 50 फीट गहरी इस बावड़ी का जल कभी सूखता नहीं, जबकि आसपास के कई जलाशय बार-बार सूख जाते हैं। श्रद्धालु इसे माता की कृपा का प्रमाण मानते हैं और इस जल को पवित्र मानकर ग्रहण करते हैं।
नवरात्रि में उमड़ता है भक्तों का सैलाब
नवरात्रि पर मंदिर का माहौल अद्भुत हो उठता है। यहां सुबह पांच और रात 8 बजे यहां पर महाआरती होती है, आरती में उपस्थित होकर भक्त अपने को धन्य और माता रानी का आशीर्वाद मानते हैं। हजारों की संख्या में यहां पर दर्शन करने प्रतिदिन पहुंचते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ, अखंड हवन और भव्य आरती भक्तों को आत्मिक शांति प्रदान करते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दराज से यहां पहुंचकर माता के चरणों में मत्था टेकते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की मन्नत मांगते हैं।
मंदिर के सामने बनी विशाल बावड़ी भी चमत्कारी मानी जाती है। 120 फीट लंबी और 50 फीट गहरी इस बावड़ी का जल कभी सूखता नहीं, जबकि आसपास के कई जलाशय बार-बार सूख जाते हैं। श्रद्धालु इसे माता की कृपा का प्रमाण मानते हैं और इस जल को पवित्र मानकर ग्रहण करते हैं।
नवरात्रि में उमड़ता है भक्तों का सैलाब
नवरात्रि पर मंदिर का माहौल अद्भुत हो उठता है। यहां सुबह पांच और रात 8 बजे यहां पर महाआरती होती है, आरती में उपस्थित होकर भक्त अपने को धन्य और माता रानी का आशीर्वाद मानते हैं। हजारों की संख्या में यहां पर दर्शन करने प्रतिदिन पहुंचते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ, अखंड हवन और भव्य आरती भक्तों को आत्मिक शांति प्रदान करते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दराज से यहां पहुंचकर माता के चरणों में मत्था टेकते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की मन्नत मांगते हैं।