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Holi Celebration: राजसमंद में पेड़ की पत्तियों से बनाया गया हर्बल गुलाल, 10 हजार महिलाओं को मिला रोजगार

न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, राजसमंद Published by: अरविंद कुमार Updated Thu, 13 Mar 2025 04:36 PM IST
सार

Rajsamand News: राजीविका द्वारा जिले में इस बार तीन हजार किलो हर्बल गुलाल तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लेकिन प्रदेश में अत्यधिक मांग के चलते आठ हजार किलो गुलाल अभी तक महिलाएं बना चुकी हैं।

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Holi Celebration Herbal gulal made from tree leaves in Rajsamand 10 thousand women got employment
हर्बल गुलाल बनाती हुई महिलाएं - फोटो : अमर उजाला

राजसमंद जिला खनिज संपदाओं के नाम से पूरे देश में विख्यात है। लेकिन यहां से गुजरने वाली अरावली की पहाड़ियों की प्रकृति की प्राकृतिक चीजों (पेड़ पौधों की पत्तियों) से हर्बल गुलाल बनाई जा रही है। इस कार्य से जिले की करीब 10,000 महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। खमनोर और कुंभलगढ़ में हर्बल गुलाल बनाने का सफर शुरू हुआ, जो अब पूरे जिले में फैल गया है। स्वयं सहायता समूह की महिलाएं हर्बल गुलाल तैयार कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। गुलाल के रंग उनके चेहरे पर मुस्कान लाने का काम कर रहे हैं।



राजीविका द्वारा जिले में इस बार 3000 हजार किलो हर्बल गुलाल तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। लेकिन प्रदेश में अत्यधिक मांग के चलते 8000 किलो गुलाल अभी तक महिलाएं बना चुकी हैं।गुलाल बनाने के लिए जिले की करीब दस हजार महिलाएं काम कर रही हैं। जिले की महिलाओं को होली के अवसर पर रोजगार मिला, जिससे उनके चेहरे खिल उठे। 

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Holi Celebration Herbal gulal made from tree leaves in Rajsamand 10 thousand women got employment
पत्तियों से तैयार होता है हर्बल गुलाल - फोटो : अमर उजाला

ग्रामीण आजीविका विकास परिषद (राजीविका) के माध्यम से राजसमंद जिले की खमनोर और कुंभलगढ़ तहसील एवं जिले की तहसीलों में महिलाओं को हर्बल गुलाल बनाने का प्रशिक्षण दिलाया गया। साल 2022 में 1700 किलो से सफर प्रारंभ हुआ था। इस बार 3000 हजार किलो तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। लेकिन अत्यधिक मांग के चलते करीब 8000 किलो गुलाल ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं अभी तक बना चुकी हैं।



राजीविका ग्रामीण क्षेत्र की गरीब महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के रूप में जोड़कर उन्हें प्रोत्साहित कर रोजगार उपलब्ध कराने का कार्य होता है। इसी के तहत महिलाओं के समूह को हर्बल गुलाल बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। इसके पश्चात्त 2022 में महिला स्वयं सहायता समूह की और हर्बल गुलाल बनाने का कार्य प्रारंभ हुआ। इस वर्ष पहली बार में समूह की ओर से तैयार हर्बल गुलाल इतनी पसंद आई की होली से पहले ही गुलाल खत्म हो गई। इससे महिलाओं रोजगार मिलने और आय होने से स्वयं सहायता समूह की महिलाएं इससे जुड़ती गई। आज स्थिति यह है कि जिले की आठों पंचायत समिति में स्वयं ये लोग हर्बल गुलाल बनाते हैं।

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हर्बल गुलाल बनाती महिलाएं - फोटो : अमर उजाला

ऐसे बनती है हर्बल गुलाल

  • हरा गुलालः सीताफल की पत्तियां, नीम की पत्तियां और अरारोठ से

  • पीला गुलालः हजारा के फूल, पत्तियों और अरारोठ से

  • गुलाबी गुलाल अरारोठ, चेती गुलाब और चुकंदर से

  • अरिंजः पलाश के फूल, संतरा और उसके छिलके से

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गुलाल - फोटो : अमर उजाला

ब्रास से आती खुशबू, पैकिंग में भी सुधार
महिला स्वयं सहायता समूह की ओर से तैयार की जा रही हर्बल गुलाल में समय-समय पर कई बदलाव कर क्वॉलिटी में सुधार किया गया है। पहले खुशबू कम आती थी। ऐसे में इसमें प्राकृति रूप से खुशबू बढ़ाने के लिए ब्रास का उपयोग किया जाता है। इसकी पैकिंग सामान्य होती थी, जिसे भी अब आकर्षक और आधुनिक बनाया गया है। पहले यह सिर्फ हरा, गुलाबी और पीला रंग का गुलाल बनाते थे। अब हल्का पीला गुलाल जिसे मेरी गोल्ड के नाम से जाना जाता है, वह भी बनाने लगे हैं।

इस तरह से तैयार होती गुलाल
समूह को जिस रंग की गुलाल बनानी है, उसके फूल-फल अथवा पत्तियों को पीसकर उसका अर्क निकाला जाता है। इस तरल को उबाला जाता है। अर्क को आरारोट में मिलाकर शेड पर सुखाना होता है। उसके बाद इसकी छनाई कर मौके पर ही उसकी पैकेजिंग की जाती है।

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पेड़ की पत्तियां ले जाती महिला - फोटो : अमर उजाला

स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की ओर से हर्बल गुलाल तैयार की जा रही है। इस बार तीन हजार किलो का लक्ष्य रखा था। लेकिन अत्यधिक मांग के चलते अभी तक 8000 किलो से ज्यादा गुलाल बनाई गई, जिससे करीब 36 लाख रुपये की बिक्री हुई। इससे महिलाओं को रोजगार के साथ आर्थिक संबल भी मिल रहा है। इससे खुशी मिलती है, इन्हें बाजार में उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है।

डॉ. सुमन अजमेरा, डीपीएम ग्रामीण आजीविका विकास परिषद, राजसमंद

अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्म पर एक हजार किलो भाव
समूह की ओर से तैयार की जा रही हर्बल गुलाल पिछले साल 300 रुपये किलो में उपलब्ध थी। जो इस साल 450 रुपये किलो हो गई है। जबकि जानकारों की माने तो अन्य कई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर हर्बल गुलाल की कीमत एक हजार रुपये तक बताई जा रही है। जबकि उसकी कोई गारंटी नहीं होती। जिले के संचालित स्वयं सहायता समूह को बाजार उपलब्ध होने पर अच्छी आय हो सकती है।

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