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संतान सुख की चाहत रखने वालों के लिए खास है यह व्रत
राकेश्ा झा / टीम डिजिटल, अमर उजाला, दिल्ली।
Updated Thu, 22 Sep 2016 04:27 PM IST
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विष्णु
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हर मां की चाहत होती है उनकी संतान दीर्घायु हो और उनका जीवन सुखमय बीते। इसके लिए माताएं भगवान की पूजा करती हैं और व्रत भी रखती हैं। ऐसा ही एक व्रत है जिसके बारे में कहा जाता है कि जो माताएं यह व्रत रखती हैं उनकी संतान दीर्घायु होती है और उन्हें अल्पायु में संतान की मृत्यु का कष्ट नहीं सहना पड़ता है।
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संतान सुख की चाहत रखने वालों के लिए खास है यह व्रत
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शिव पार्वती
- फोटो : shiv parvati
इस व्रत का नाम है जिवितपुत्रिका व्रत। पितृपक्ष में आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को माताएं यह व्रत रखती हैं। इस व्रत यह व्रत 23 सितंबर को है। इस व्रत के बारे में भविष्य पुराण में एक कथा मिलती है जिसमें भगवान शिव देवी पार्वती को इस व्रत का महत्व बताते हुए कहते हैं।
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himalaya
हे पार्वती आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि के देवता जीमूतवाहन हैं। इन्होंने भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ से वरदान रूप में देवत्व को प्राप्त किया है। देवी पार्वती के अनुरोध पर भगवान शिव देवी पार्वती को जीमूतवाहन के देवता बनने की कथा कहते हैं। एक बार राजा जीमूतवाहन गंधमादन पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे उसी समय उनके कानों में एक वृद्ध स्त्री के रोने की आवाज आई।
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गरुड़
जीमूतवाहन ने महिला के पास जाकर रोने का कारण पूछा तो उसने कहा कि मैं शंखचूड़ नाग की माता हूं। आज भगवान विष्णु का वाहन गरूड़ शंखचूड़ को उठाकर ले जाएगा और खा जाएगा। इसलिए दु:खी होकर रो रही हूं। जिमूतवाहन ने कहा कि मैं आज आपके पुत्र के बदले गरूड़ का आहार बनूंगा और आपके पुत्र की रक्षा करूंगा।
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गरुड़
गरूड़ जब शंखचूड़ को लेने आए तो जिमूतवाहन शंखचूड़ बनकर बैठ गए। गरूड़ जीमूतवाहन को लेकर उड़ चले। लेकिन कुछ दूर जाने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि वह शंखचूड़ की जगह एक मानव को उठा लाए हैं। गरूड़ ने पूछा कि हे मानव तुम कौन हो और मेरा भोजन बनने क्यों चले आए। राजा जीमूतवाहन ने कहा कि वह शंखचूड़ की माता को पु़त्र वियोग से बचाने के लिए उनका आहार बनने चले आए।
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