{"_id":"68f0b1285da60b26100f6889","slug":"gamer-death-syndrome-playing-online-gaming-long-hour-health-risk-and-prevention-2025-10-16","type":"photo-gallery","status":"publish","title_hn":"Gamer Death Syndrome: गेम खेलते-खेलते थम गई धड़कन! क्या है 'गेमर डेथ सिंड्रोम' जिसने ली 13 साल के बच्चे की जान","category":{"title":"Tech Diary","title_hn":"टेक डायरी","slug":"tech-diary"}}
Gamer Death Syndrome: गेम खेलते-खेलते थम गई धड़कन! क्या है 'गेमर डेथ सिंड्रोम' जिसने ली 13 साल के बच्चे की जान
टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नीतीश कुमार
Updated Thu, 16 Oct 2025 02:21 PM IST
सार
Lucknow Child Dies Playing Mobile Game: लखनऊ में मोबाइल गेम खेलते-खेलते 13 साल के बच्चे की मौत ने सबको चौंका दिया है। डॉक्टरों का कहना है कि यह “गेमर डेथ सिंड्रोम” का मामला हो सकता है जिसमें लंबे समय तक गेम खेलने से दिल की धड़कन अचानक थम जाती है।
विज्ञापन

बच्चों में खतरनाक है गेमिंग डेथ सिंड्रोम
- फोटो : AI
आज के डिजिटल युग में मोबाइल और ऑनलाइन गेम्स का क्रेज तेजी से बढ़ा है। खासकर बच्चे और टीनएजर्स घर में कई घंटे मोबाइल या कंप्यूटर पर गेम्स खेलते रहते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी लत की वजह से दुनियाभर में कई लोगों की मौत भी हो चुकी है? हाल ही में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से भी एक ऐसा ही मामला सामने आया है। लखनऊ में एक 13 साल के बच्चे की मौत मोबाइल गेम खेलने के दौरान हो गई। इस खतरनाक स्थिति को “गेमर डेथ सिंड्रोम” कहा जाता है। आइए जानते हैं ऐसी स्थिती क्यों आती है और इससे बचने के लिए क्या किया जा सकता है।
Trending Videos

क्या है गेमर डेथ सिंड्रोम?
- फोटो : AI
क्या है गेमर डेथ सिंड्रोम?
दरअसल, गेमर डेथ सिंड्रोम कोई बीमारी नहीं है, बल्कि इसे गेम खेलते-खेलते होने वाली मौतों को परिभाषित करने के लिए नाम दिया गया है। यह एक ऐसी मेडिकल कंडीशन जिसमें लगातार गेम खेलने से शरीर की थकान, तनाव और रक्त संचार में असंतुलन के कारण व्यक्ति की जान चली जाती है। यूएस की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, गेमर डेथ सिंड्रोम का पहला मामला शिकागो में 1981 में आया था, जिसमें एक 19 साल के व्यक्ति की मौत हो गई थी। ऐसे मामले ज्यादातर 11 से 40 साल के एज ग्रुप वाले व्यक्तियों में पाए जाते हैं। 1982 से 2022 तक दुनियाभर में ऐसे 24 मामले दर्ज किए गए हैं।
दरअसल, गेमर डेथ सिंड्रोम कोई बीमारी नहीं है, बल्कि इसे गेम खेलते-खेलते होने वाली मौतों को परिभाषित करने के लिए नाम दिया गया है। यह एक ऐसी मेडिकल कंडीशन जिसमें लगातार गेम खेलने से शरीर की थकान, तनाव और रक्त संचार में असंतुलन के कारण व्यक्ति की जान चली जाती है। यूएस की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, गेमर डेथ सिंड्रोम का पहला मामला शिकागो में 1981 में आया था, जिसमें एक 19 साल के व्यक्ति की मौत हो गई थी। ऐसे मामले ज्यादातर 11 से 40 साल के एज ग्रुप वाले व्यक्तियों में पाए जाते हैं। 1982 से 2022 तक दुनियाभर में ऐसे 24 मामले दर्ज किए गए हैं।
विज्ञापन
विज्ञापन

इस वजह से होती है मौत
- फोटो : AI
इस वजह से होती है मौत
गेमर डेथ सिंड्रोम को मेडिकल भाषा में “पल्मनरी इम्बोलिज्म” या “डीप वेन थ्रोमबोसिस (DVT)” से जोड़ा जाता है। यह तब होता है जब व्यक्ति लंबे समय तक बिना हिले-डुले एक ही जगह बैठा रहता है। इससे शरीर में रक्त का प्रवाह धीमा हो जाता है और नसों में ब्लड क्लॉट बनने लगता है। जब यह क्लॉट फेफड़ों, दिल या दिमाग तक पहुंच जाता है, तो व्यक्ति को दिल का दौरा या ब्रेन स्ट्रोक पड़ सकता है जिससे उसकी अचानक मौत हो जाती है। 2015 में ताइवान में 32 साल के एक युवक की इसी कारण मौत हो गई थी, जो लगातार तीन दिन तक गेम खेल रहा था। वहीं, दक्षिण कोरिया और चीन में भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां युवा ऑनलाइन गेम खेलते-खेलते गिर पड़े और उनकी जान चली गई।
गेमर डेथ सिंड्रोम को मेडिकल भाषा में “पल्मनरी इम्बोलिज्म” या “डीप वेन थ्रोमबोसिस (DVT)” से जोड़ा जाता है। यह तब होता है जब व्यक्ति लंबे समय तक बिना हिले-डुले एक ही जगह बैठा रहता है। इससे शरीर में रक्त का प्रवाह धीमा हो जाता है और नसों में ब्लड क्लॉट बनने लगता है। जब यह क्लॉट फेफड़ों, दिल या दिमाग तक पहुंच जाता है, तो व्यक्ति को दिल का दौरा या ब्रेन स्ट्रोक पड़ सकता है जिससे उसकी अचानक मौत हो जाती है। 2015 में ताइवान में 32 साल के एक युवक की इसी कारण मौत हो गई थी, जो लगातार तीन दिन तक गेम खेल रहा था। वहीं, दक्षिण कोरिया और चीन में भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां युवा ऑनलाइन गेम खेलते-खेलते गिर पड़े और उनकी जान चली गई।

घंटों गेमिंग के कई दुष्प्रभाव
- फोटो : AI
घंटों गेमिंग के कई दुष्प्रभाव
लगातार घंटों तक गेम खेलने से शरीर पर कई और प्रभाव पड़ते हैं। नींद पूरी न होने से दिमाग पर दबाव बढ़ता है, आंखों की रोशनी कमजोर होती है, और मानसिक थकान इतनी बढ़ जाती है कि व्यक्ति को गुस्सा, अवसाद और बेचैनी जैसी समस्याएं घेर लेती हैं। शरीर की स्थिति बिगड़ने पर दिल की धड़कन असामान्य हो सकती है और यही “कार्डियक अरेस्ट” का कारण बन सकती है।
लगातार घंटों तक गेम खेलने से शरीर पर कई और प्रभाव पड़ते हैं। नींद पूरी न होने से दिमाग पर दबाव बढ़ता है, आंखों की रोशनी कमजोर होती है, और मानसिक थकान इतनी बढ़ जाती है कि व्यक्ति को गुस्सा, अवसाद और बेचैनी जैसी समस्याएं घेर लेती हैं। शरीर की स्थिति बिगड़ने पर दिल की धड़कन असामान्य हो सकती है और यही “कार्डियक अरेस्ट” का कारण बन सकती है।
विज्ञापन

गेम खेलें, लेकिन सावधानी से
- फोटो : AI
हद से ज्यादा न खेलें मोबाइल गेम्स
गेमिंग के खतरनाक लत से बचने के लिए सबसे जरूरी है गेम खेलने के टाइम को सीमित करना। विशेषज्ञों का कहना है कि कई घंटो तक गेम बिल्कुल भी नहीं खेलना चाहिए। गेम खेलते समय हर घंटे में 10 से 15 मिनट का ब्रेक लेना चाहिए। बीच-बीच में स्ट्रेचिंग और थोड़ी वॉक से शरीर में रक्त प्रवाह सामान्य बना रहता है। साथ ही, पर्याप्त नींद लेना, पानी पीते रहना और संतुलित खानपान बनाए रखना बेहद जरूरी है। अगर गेम खेलते समय चक्कर आना, दिल की धड़कन बढ़ना या थकान महसूस हो, तो तुरंत गेम बंद कर देना चाहिए और आराम लेना चाहिए।
गेमिंग एक मजेदार शौक है, लेकिन जब यह जुनून में बदल जाए तो खतरा बढ़ जाता है। गेमर डेथ सिंड्रोम हमें यह याद दिलाता है कि अपने शरीर की सीमाओं को ताक पर रखकर किसी भी तरह का मनोरंजन घातक साबित हो सकता है। शरीर की जरूरतों को समझना और समय पर ब्रेक लेना उससे भी ज्यादा जरूरी है।
गेमिंग के खतरनाक लत से बचने के लिए सबसे जरूरी है गेम खेलने के टाइम को सीमित करना। विशेषज्ञों का कहना है कि कई घंटो तक गेम बिल्कुल भी नहीं खेलना चाहिए। गेम खेलते समय हर घंटे में 10 से 15 मिनट का ब्रेक लेना चाहिए। बीच-बीच में स्ट्रेचिंग और थोड़ी वॉक से शरीर में रक्त प्रवाह सामान्य बना रहता है। साथ ही, पर्याप्त नींद लेना, पानी पीते रहना और संतुलित खानपान बनाए रखना बेहद जरूरी है। अगर गेम खेलते समय चक्कर आना, दिल की धड़कन बढ़ना या थकान महसूस हो, तो तुरंत गेम बंद कर देना चाहिए और आराम लेना चाहिए।
गेमिंग एक मजेदार शौक है, लेकिन जब यह जुनून में बदल जाए तो खतरा बढ़ जाता है। गेमर डेथ सिंड्रोम हमें यह याद दिलाता है कि अपने शरीर की सीमाओं को ताक पर रखकर किसी भी तरह का मनोरंजन घातक साबित हो सकता है। शरीर की जरूरतों को समझना और समय पर ब्रेक लेना उससे भी ज्यादा जरूरी है।