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MP Samwad 2025: 'स्त्री के आचरण से परिवार संभलता है', संवाद मंच पर महिला सशक्तिकरण पर बोलीं शिप्रा पाठक

लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिवानी अवस्थी Updated Thu, 26 Jun 2025 02:25 PM IST
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सार

Water Woman Shipra Pathak: अमर उजाला संवाद पहली बार मध्य प्रदेश में आयोजित हुआ है, जिसमें वाटर वुमन के नाम से मशहूर शिप्रा पाठक शामिल हुईं। शिप्रा ने नदियों और पर्यावरण की रक्षा के लिए कई अभियानों का नेतृत्व किया है। 

Amar Ujala Samwad Madhya Pradesh Water Woman Shipra Pathak Talk About Water Conservation Know All About hindi
संवाद के मंच पर वॉटर वुमन शिप्रा पाठक - फोटो : Amarujala.com

विस्तार
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Water Woman Shipra Pathak: अमर उजाला संवाद का कारवां इस बार भारत का हृदय यानी मध्य प्रदेश में पहुंचा है। पहली बार संवाद का मंच भोपाल में सजा है। अमर उजाला संवाद विकास से जुड़ी नीतियों, अर्थव्यवस्था, सिनेमा, खेल और आध्यात्म जैसै विष्यों पर सारगर्भित चर्चा के कारण जाना जाता है। राजधानी के ताज लेकफ्रंट होटल में संवाद कार्यक्रम हो रहा है, जिसका शुरुआत मुख्यमंत्री मोहन यादव के सत्र से हुई। सीएम यादव ने प्रदेश के विकास, सुशासन समेत राज्य की बुनियादी जरूरतों पर अपने विचार रखें।

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वहीं संवाद के मंच पर वॉटर वुमन शिप्रा पाठक ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। उन्होंने जल संवर्धन से जुड़े मामलों पर अपने विचारों से दर्शकों को रूबरू कराया। शिप्रा पाठक ने 'जल है तो कल है' विषय पर चर्चा करते हुए जल संवर्धन पर अपने विचार रखे।
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धरने से नहीं धारणा से भारत बदलेगा

कार्यक्रम में वॉटर वुमन शिप्रा पाठक कहती हैं, 'किसको क्या करना चाहिए अगर इस पर ध्यान दूंगी तो फिर आलोचना और धरणा प्रदर्शन की महिला सशक्तिकरण के नाम पर उसी पंक्ति में बैठ जाऊंगी, जिसमें हमारी आज की बहन-बेटियां बैठतीं हैं। वो ये भूल रही हैं कि धरने से नहीं, बल्कि धारणा से भारत बदलेगा। हम जब कहते हैं कि हमारी आधुनिकता में ये बदलाव हो रहा है, नहीं, हमारी सृष्टि और हमारा भारत सबसे आधुनिक था, लेकिन हमने इसे अमर्यादित कर दिया है। आजकल सिंगल पैरेंटिंग ट्रेंड में है लेकिन आज से हजारों साल पहले माता सीता ने अपने बच्चों को अकेले पाला था, वह भी सिंगल पैरेटिंग का उदाहरण था। लेकिन उन्होंने कभी किसी पंचायत, चौराहे पर या कोर्ट में ससुराल मायके और पति की आलोचना नहीं की। अगर वो करती तो वो सीता रह जातीं, नहीं किया इसीलिए वो सीता मां हैं।'

नदियों और संस्कृति की तुलना महिला के विचारों से करते हुए शिप्रा पाठन ने कहा कि सिर्फ नदियों को संभालने से कुछ नहीं संभलेगा, हमें इस देश की संस्कृति को संभालना पड़ेगा। उसकी संस्कृति को आगे लेकर जाना पड़ेगा। जिस देश की स्त्री संभलती है, वह देश का विकास हो जाता है, क्योंकि एक स्त्री के आचरण से ही परिवार संभल जाता है। एक स्त्री होते हुए मुझे ये कहते हुए दुख  हो रहा है कि इस देश में पिछले कुछ वर्षों में जो विकृति हुई है, वह स्त्री के भटकने से हुई है। अगर हम अहिल्याबाई, सीता जी जैसी महिलाओं को आज की लड़कियों की चेतना में लाएंगे तो देश की संस्कृति और नदियां दोनों बचाई जा सकती हैं।

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शिप्रा पाठख - फोटो : अमर उजाला

कौन हैं शिप्रा पाठक?

शिप्रा उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में स्थित दातागंज की रहने वाली हैं। उनके पिता डॉ. शैलेश पाठक स्थानीय नेता हैं। दादी संतोष कुमारी पाठक विधायक रह चुकी हैं। शिप्रा खुद एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं। उन्होंने इंग्लिश लिट्रेचर से परास्नातक किया है और बाद में सामाजिक सारोकार से जुड़े कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगीं। शिप्रा ने नदियों और पर्यावरण की रक्षा के लिए कई अभियानों का नेतृत्व किया है। इनमें सबसे प्रमुख अयोध्या से रामेश्वरम के लिए 3952 किलोमीटर की पैदल यात्रा- रामजानकी वनगमन यात्रा रही है। उनकी यह यात्रा 108 दिन चली थी और वे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक होकर तमिलनाडु के रामेश्वरम तक पहुंचीं। रास्ते में उन्होंने सरयू, गंगा, यमुना, सरस्वती, मंदाकिनी, तुंगभद्रा, कृष्णा, गोदावरी और वैगई नदियों जल एकत्रित किया और इसी जल से भगवान रामेश्वरम का जलाभिषेक कर पूरे देश को नदियों के संरक्षण का संदेश दिया।

शिप्रा पाठक को क्यों कहा जाता है वाटर वुमेन?

शिप्रा इससे पहले जल संरक्षण की यात्रा कर चुकी हैं, तब उन्हें वाटर वुमेन कहा गया था। शिप्रा मां नर्मदा की 3600 किमी लंबी परिक्रमा कर चुकी हैं। इसके अलावा मानसरोवर परिक्रमा, मां शिप्रा परिक्रमा, सरयू पद यात्रा और ब्रज चौरासी कोसी पद यात्रा कर शिप्रा नदियों के संरक्षण पर जोर देती रही हैं। कुल मिलाकर वे अब तक जल और पर्यावरण संरक्षण के लिए 13 हजार किलोमीटर से ज्यादा की पदयात्राएं कर चुकी हैं। उनकी संस्था पंचतत्व से 15 लाख लोग जुड़े हैं, जिनके सहयोग से नदियों के किनारे 25 लाख पौधे लगाए गए हैं।

जल के प्रति प्रेम, ताकि अगली पीढ़ी को कुछ दे सकें

अमर उजाला के मंच पर शिप्रा पाठक ने कहा, 13-15 देशों में काम करने के बाद, कई विद्यालयों की नींव रखने और मां नर्मदा की 3600 किलोमीटर की परिक्रमा के बाद जल के प्रति मेरा प्रेम बढ़ता रहा है। मेरा मानना है कि हम अगली पीढ़ी को कुछ दे पाएं। यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि शिप्रा पाठक ने प्रण लिया है कि जब तक 5 लाख वृक्ष न लगा लें तब तक रामलला के दर्शन नहीं करेंगी।

 
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