Chaitra Navratri 2019 : रोगों से मुक्ति के लिए नवरात्रि के चौथे दिन करें मां कूष्मांडा की पूजा
माता का स्वरूप
मां कूष्माण्डा की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। मां कुष्मांडा को कुम्हड़े की बलि अति प्रिय है और संस्कृत में कुम्हड़े को कूष्माण्ड कहते हैं। इसीलिए मां दुर्गा के इस स्वरुप को कूष्माण्डा कहा जाता है |
मां कूष्माण्डा की महिमा
मां कूष्माण्डा का निवास सूर्यमण्डल के अंदर लोक में है। सूर्य के अंदर निवास करने की क्षमता केवल इन्हीं के अंदर है। मां कूष्माण्डा के तेज से चारों दिशाएं दैदीप्यमान हैं। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। नवरात्रि में मां कूष्माण्डा की साधना-आराधना करने पर माता अपने साधक के असाध्य से असाध्य रोगों से मुक्ति और अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
नवरात्र में चौथे दिन रोज की भांति सर्वप्रथम कलश की पूजा कर माता कूष्मांडा को नमन करें। मां कूष्माण्डा को हरा रंग अति प्रिय है, इसलिए इस दिन पूजा में बैठने के लिए हरे रंग के आसन का प्रयोग करना बेहतर होता है। मां कूष्मांडा को इस निवेदन के साथ जल पुष्प अर्पित कर मां का ध्यान करें कि, उनके आशीर्वाद से आपका और आपके स्वजनों का स्वास्थ्य अच्छा रहे। यदि कोई लम्बे समय से बीमार है तो मां कूष्माण्डा की विधि-विधान से की गयी पूजा उस व्यक्ति को अच्छी सेहत प्रदान करती है। देवी को पूरे मन से फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएं। पूजन के पश्चात् मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं। इसके बाद प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान करें। पूजा के बाद अपने से बड़ों को प्रणाम कर प्रसाद वितरित करें और खुद भी प्रसाद ग्रहण करें।
माता का मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।
मां कूष्माण्डा स्त्रोत पाठ
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्।
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥