सनातन धर्म में कहा गया है कि संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है, जिससे जाने-अनजाने में कोई पाप नहीं हुआ हो। ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता है, यदि विधि-विधान से पापमोचिनी एकादशी का पावन व्रत किया जाए। पापों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करने वाली पापमोचिनी एकादशी का व्रत इस साल 31 मार्च को पड़ रहा है। भगवान विष्णु को समर्पित इस एकादशी का महत्व एवं पौराणिक कथा के बारे में जानने के लिए आगे की स्लाइड क्लिक करें —
Papmochani Ekadashi 2019 : इस व्रत को करने से मिलता है हजार गायों के दान का फल
एकादशी व्रत का महत्व
धर्मशास्त्रों में एकादशी तिथि को विष्णु स्वरुप माना गया है। इस तिथि को पूजित होने पर संसार के स्वामी सर्वेश्वर श्री हरि संतुष्ट होकर अपने भक्तों के समस्त कष्टों का निवारण करते हैं। बड़े-बड़े यज्ञों से भगवान को उतना संतोष नहीं मिलता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है।
पापमोचिनी व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रती को एक बार दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए। मन से भोग-विलास की भावना त्यागकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए। संकल्प के उपरांत षोडषोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। भगवान के समक्ष बैठकर भगवद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए।
पापमोचिनी एकादशी व्रत का फल
पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से सहस्त्र अर्थात् हजार गायों के दान का फल मिलता है। ब्रह्म ह्त्या, सुवर्ण चोरी, सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप भी इस व्रत को करने से दूर हो जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि पापमोचिनी एकादशी का व्रत बहुत ही पुण्य प्रदान करने वाला है। एकादशी तिथि को रात्रि में जागरण करने का बहुत महत्त्व बताया गया है। पदम् पुराण के अनुसार जो मनुष्य पापमोचिनी एकादशी का व्रत करते हैं, उनका सारा पाप नष्ट हो जाता है।
पापमोचिनी एकादशी व्रत की कथा —
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु युधिष्ठिर से कहते है ‘‘राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा कि प्रभु यह बताएं कि मनुष्य जो जाने-अनजाने में पाप कर्म करता है उससे कैसे मुक्त हो सकता है। राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे।
इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गयी और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु यत्न करने लगी। कामदेव भी उसी समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नजर अप्सरा पर गई और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी मदद करने लगे। इस तरह अप्सरा अपने यत्न में सफल हुई और ऋषि कामपीड़ित हो गये।
तब ऋषि ने दिया पिशाचनी होने का श्राप
काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गये और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से वह विरत हो चुके हैं, उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने अप्सरा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया।