Saphala Ekadashi Vrat Katha: इस कथा के बिना अधूरा है सफला एकादशी व्रत, जानिए क्या है इससे जुड़ी मान्यताएं
Saphala Ekadashi Vrat Katha: शास्त्रों के मुताबिक, एकादशी का यह व्रत न केवल सांसारिक सुख-समृद्धि प्रदान करता है, बल्कि साधक को आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी अग्रसर करता है।
विस्तार
Saphala Ekadashi Vrat Katha in Hindi: सफला एकादशी भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित एक अत्यंत शुभ व्रत है, जिसे पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर रखा जाता है। इस बार 15 दिसंबर को सफला एकादशी मनाई जा रही है। मान्यता है कि, इस दिन व्रत रखने के प्रभाव से साधक के पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है। साथ ही विष्णु जी की कृपा से जीवन के रुके हुए कार्यों में गति आती है। शास्त्रों के मुताबिक, एकादशी का यह व्रत न केवल सांसारिक सुख-समृद्धि प्रदान करता है, बल्कि साधक को आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी अग्रसर करता है। इस तिथि पर सफला एकादशी की कथा का पाठ करने का विशेष महत्व माना गया है। इससे श्रीहरि अति प्रसन्न होते हैं और साधक को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसे में आइए सफला एकादशी व्रत कथा को जानते हैं।
- ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:17 से 06:12 मिनट तक रहेगा।
- अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:56 से लेकर दोपहर 12:37 मिनट तक मान्य है।
- चित्रा नक्षत्र और शोभन योग का संयोग बना रहेगा
सफला एकादशी व्रत कथा
सफला एकादशी की व्रत को लेकर ऐसा कहा जाता है कि, चंपावती नाम का नगर था, जिसमें महिष्मान नाम का राजा रहा करता था। उस राजा के चार बेटे थे। चारों में सबसे बड़े बेटा दुष्ट था। कहा जाता है कि, वह देवी-देवता की निंदा किया करता था। इसी कारण एक दिन की बात है, जब राजा महिष्मान ने अपने बड़े बेटे को नगर से निकाल दिया। नगर से निकाले जाने के बाद बड़ा बेटा जंगल में जीवन व्यतीत करने लगा। वह अपना गुजारा मांस का सेवन करके किया करता है। ऐसे करते हुए के दिन आया जब उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला। भूख के मारे बेहाल राजा का बेटा एक संत के पास जा पहुंचा। यह एकादशी तिथि थी। वहीं राजा का बेटा जब संत से मिला, तो संत ने उसका मान-सम्मान किया। यही नहीं राजा के बड़े बेटे को संत ने भरपेट भोजन भी कराया। खाना ग्रहण करने के बाद संत के इस व्यवहार से राजा का बेटा अधिक प्रसन्न हुआ और फिर वह उनका शिष्य बन गया है। फिर समय के साथ-साथ राजा के बेटे में बदलाव आया। इसी पर संत ने उसे एकादशी व्रत रखने को कहा। संत की बात सुनकर उसने व्रत कर उससे जुड़े सभी नियमों का पालन किया। राजा के बेटे द्वारा रखे गए एकादशी व्रत के प्रभाव से महात्मा उसके सामने प्रकट हुए। इस दौरान महात्मा के स्वरूप में स्वयं राजा महिष्मान खड़े थे। इसके बाद राजा के बेटे ने राजा का कार्यभार संभाला। तभी से ऐसी मान्यता है कि, सफला एकादशी का व्रत रखने पर देवी-देवताओं की कृपी से लेकर कार्यों में सफलता मिलती हैं।
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