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Kajari Teej Vrat Katha: आज है कजरी तीज, इस व्रत कथा को सुनकर मिलेगा अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: आशिकी पटेल Updated Sun, 14 Aug 2022 09:20 AM IST
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Kajari Teej 2022 Vrat Katha in hindi
कजरी तीज व्रत कथा - फोटो : istock

Kajari Teej 2022 Vrat Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, कजरी तीज हर साल भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस साल कजरी तीज 14 अगस्त को है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। कजरी तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस दिन माता पार्वती और शिव जी की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है। साथ ही सुख समृद्धि की प्राप्ति के साथ सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। मान्यता है कि इस दिन पूजा के दौरान कजरी तीज की व्रत कथा का श्रवण या पाठन जरूर करना चाहिए। आइए जानते हैं कजरी तीज की व्रत कथा... 

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कजरी तीज व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था जो बहुत गरीब था। उसके साथ उसकी पत्नी ब्राह्मणी भी रहती थी। इस दौरान भाद्रपद महीने की कजली तीज आई। ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत किया। उसने अपने पति यानी ब्राह्मण से कहा कि उसने तीज माता का व्रत रखा है। उसे चने का सतु चाहिए। कहीं से ले आओ। ब्राह्मण ने ब्राह्मणी को बोला कि वो सतु कहां से लाएगा। सातु कहां से लाऊं। इस पर ब्राह्मणी ने कहा कि उसे सतु चाहिए फिर चाहे वो चोरी करे या डाका डालें। लेकिन उसके लिए सातु लेकर आए। 

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रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकलकर साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने साहूकार की दुकान से चने की दाल, घी, शक्कर लिया और सवा किलो तोल लिया। फिर इन सब से सतु बना लिया। जैसे ही वो जाने लगा वैसे ही आवाज सुनकर दुकान के सभी नौकर जाग गए। सभी जोर-जोर से चोर-चोर चिल्लाने लगे। 

इतने में ही साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया। ब्राह्मण ने कहा कि वो चोर नहीं है। वो एक एक गरीब ब्राह्मण है। उसकी पत्नी ने तीज माता का व्रत किया है इसलिए सिर्फ यह सवा किलो का सातु बनाकर ले जाने आया था। जब साहूकार ने ब्राह्मण की तलाशी ली तो उसके पास से सतु के अलावा और कुछ नहीं मिला।

उधर चांद निकल गया था और ब्राह्मणी सतु का इंतजार कर रही थी। साहूकार ने ब्राह्मण से कहा कि आज से वो उसकी पत्नी को अपनी धर्म बहन मानेगा। उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर दुकान से विदा कर दिया। फिर सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह से ब्राह्मण के दिन सुखमय हो गए ठीक वैसे ही कजली माता की कृपा सब पर बनी रहे।  

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