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Samwad 2025: जहां विरासत बनी ताकत! हरियाणा की मुक्केबाज जेस्मिन लंबोरिया के विश्व चैंपियन बनने का सफर; पढ़ें

स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: स्वप्निल शशांक Updated Tue, 16 Dec 2025 09:25 AM IST
सार

गुरुग्राम में होने वाले अमर उजाला संवाद 2025 में मुक्केबाज जेस्मिन लंबोरिया भी शिरकत करेंगी। उनकी कहानी संघर्ष, विरासत और आत्मविश्वास की मिसाल है। हवा सिंह की विरासत को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने भारतीय महिला मुक्केबाजी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

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Amar Ujala Samwad 2025: From Legacy to World Gold: The Inspiring Journey of Boxer Jaismine Lamboria
जेस्मिन लंबोरिया - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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‘अमर उजाला संवाद’ इस बार हरियाणा पहुंचा है। गुरुग्राम में 17 दिसंबर यानी बुधवार को होने वाले इस खास आयोजन में मनोरंजन, खेल और राजनीति सहित अलग-अलग क्षेत्रों की तमाम दिग्गज हस्तियां हिस्सा लेंगी। इसी कड़ी में भारत की स्टार मुक्केबाज जेस्मिन लंबोरिया भी इस खास कार्यक्रम में शामिल होंगी। वैसे तो हरियाणा की धरती ने भारतीय खेल जगत को कई दिग्गज दिए हैं और इसी परंपरा की नई कड़ी हैं जेस्मिन लंबोरिया।

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30 अगस्त 2001 को जन्मी जैस्मिन ने पेरिस 2024 ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर देश का नाम रोशन किया। इसके बाद उन्होंने विश्व मुक्केबाजी मंच पर इतिहास रचते हुए खेल की नई वैश्विक संस्था के तहत आयोजित पहले वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर खुद को विश्व चैंपियन साबित किया।

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परिवार, विरासत और प्रेरणा
जेस्मिन का मुक्केबाजी से रिश्ता केवल शौक का नहीं, बल्कि विरासत का है। उनके परदादा महान मुक्केबाज हवा सिंह थे, जिन्होंने 1960 और 70 के दशक में भारतीय हेवीवेट बॉक्सिंग पर राज किया। हवा सिंह ने 1966 और 1970 एशियन गेम्स में लगातार दो स्वर्ण पदक जीते और उन्हें अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे प्रसिद्ध भिवानी बॉक्सिंग क्लब के सह-संस्थापकों में भी शामिल थे, जिसने ओलंपिक पदक विजेता विजेंदर सिंह जैसे दिग्गज तैयार किए। जेस्मिन के चाचा संदीप सिंह और परविंदर सिंह भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुके हैं। इन्हीं को देखकर जेस्मिन ने कम उम्र में दस्ताने थामे और रिंग में उतरने का सपना देखा।

सीमित संसाधन, असीम हौसला
जेस्मिन का परिवार साधारण था। पिता होमगार्ड में कार्यरत थे और मां गृहिणी। संसाधनों की कमी के बावजूद सपनों की उड़ान नहीं रुकी। शुरुआती दिनों में ट्रेनिंग के दौरान संघर्ष भी रहे, लेकिन चाचाओं ने कोच और मार्गदर्शक बनकर उनका साथ दिया। पढ़ाई और अभ्यास के बीच संतुलन बनाते हुए जेस्मिन ने खुद को निखारा।

यूथ से सीनियर तक सफलता की सीढ़ियां
युवा स्तर पर जेस्मिन ने लगातार पदक जीते। 2019 में आयरलैंड के डबलिन में आयोजित यूथ एस्कार ऑल फीमेल बॉक्स कप और उत्तराखंड में हुई यूथ विमेंस नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक अपने नाम किए। 2021 में बॉक्साम इंटरनेशनल टूर्नामेंट से सीनियर डेब्यू करते हुए उन्होंने रजत पदक जीता और उसी साल 57 किग्रा वर्ग में एशियन चैंपियनशिप का कांस्य पदक हासिल किया।

बड़ी प्रतिद्वंद्विता और अंतरराष्ट्रीय पहचान
2021 नेशनल्स में जेस्मिन ने टोक्यो ओलंपियन और वर्ल्ड चैंपियनशिप कांस्य पदक विजेता सिमरनजीत कौर को हराया। इसके बाद 2022 वर्ल्ड चैंपियनशिप ट्रायल्स में भी उन्होंने सिमरनजीत को मात दी। तुर्किये में आयोजित वर्ल्ड्स में क्वार्टरफाइनल तक पहुंचकर उन्होंने अपनी बढ़ती हुई हैसियत साबित की। 2022 बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में 60 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक जीतना उनके करियर का बड़ा मोड़ रहा।

उतार-चढ़ाव और ओलंपिक का सफर
2023 में नई दिल्ली वर्ल्ड चैंपियनशिप और हांगझोउ एशियन गेम्स में जेस्मिन टॉप-8 तक पहुंचीं, लेकिन पदक से चूक गईं। साल के अंत में उन्होंने 60 किग्रा वर्ग में राष्ट्रीय चैंपियन बनकर वापसी का संकेत दिया।
पेरिस 2024 ओलंपिक से पहले इटली में हुए पहले क्वालिफायर में 60 किग्रा का कोटा नहीं मिल सका। हालांकि, परिस्थितियों ने दूसरा मौका दिया। 57 किग्रा वर्ग में भारत को मिला कोटा वापस होने के बाद, बैंकॉक क्वालिफायर में जेस्मिन ने लगातार तीन मुकाबले जीतकर भारत के लिए ओलंपिक टिकट हासिल किया।

ओलंपिक अनुभव और नई उड़ान
पेरिस ओलंपिक में जेस्मिन का सफर पहले दौर में फिलीपींस की नेस्थी पेटेसियो के खिलाफ हार के साथ खत्म हुआ। लेकिन यह अंत नहीं था। 2025 में अस्ताना में आयोजित वर्ल्ड बॉक्सिंग कप में स्वर्ण पदक जीतकर जेस्मिन ने जोरदार वापसी की। इसके कुछ महीनों बाद लिवरपूल में खेल की नई वैश्विक संस्था के तहत आयोजित पहली वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में उन्होंने पोलैंड की पेरिस 2024 रजत पदक विजेता जूलिया स्ज़रमेटा को 4-1 से हराकर इतिहास रच दिया।

विरासत से इतिहास तक
जेस्मिन लंबोरिया की कहानी संघर्ष, विरासत और आत्मविश्वास की मिसाल है। हवा सिंह की विरासत को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने भारतीय महिला मुक्केबाजी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। विश्व चैंपियन बनकर जेस्मिन ने यह साबित कर दिया कि सपने बड़े हों और हौसला मजबूत, तो कोई भी रिंग छोटी नहीं होती।
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