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High Court : अवैध धर्म परिवर्तन पर थाना प्रभारी को एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Fri, 16 May 2025 02:39 PM IST
सार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अवैध धर्म परिवर्तन पर थाना प्रभारी को एफआईआर दर्ज करने का अधिकार है। धर्म परिवर्तन प्रतिषेध कानून में पीड़ित व्यक्ति का व्यापक अर्थ है।

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High Court: Police station in-charge has the right to register FIR on illegal religious conversion
अदालत - फोटो : ANI
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विस्तार
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अवैध धर्म परिवर्तन पर थाना प्रभारी को एफआईआर दर्ज करने का अधिकार है। धर्म परिवर्तन प्रतिषेध कानून में पीड़ित व्यक्ति का व्यापक अर्थ है। यह पीड़ित व्यक्ति, रिश्तेदार के अलावा राज्य की कानून व्यवस्था को कायम रखने की जिम्मेदारी निभाने वाली पुलिस भी है। कोर्ट ने एसएचओ को पीड़ित व्यक्ति न मानते हुए उसकी ओर से दर्ज एफआईआर व केस कार्यवाही को शून्य करार देते हुए रद्द करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा, एसएचओ भी पीड़ित व्यक्ति में शामिल है। यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने चर्च के पादरी दुर्गा यादव, राकेश, डेविड व दो अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिया है।



जौनपुर की केराकत तहसील के विक्रमपुर गांव स्थित चर्च में लोगों को इकट्ठा कर मंच से धन व इलाज का लालच देकर धर्म बदलने के लिए प्रेरित किया जा रहा था। केराकत पुलिस मौके पर पहुंच कर तीन पुरुष व एक महिला को पकड़ लिया। एसएचओ ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई। मामले में चार्जशीट पर एसीजेएम जौनपुर ने संज्ञान ले लिया है। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर मुकदमे की कार्रवाई को रद्द करने की मांग की गई। याची अधिवक्ता ने दलील दी कि केवल कोई पीड़ित व्यक्ति ही शिकायत कर सकता है। शिकायत एसएचओ ने की है, इसलिए एफआईआर शून्य है।

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सरकार की ओर से कहा गया कि कई पीड़ितों का बयान लिया गया है। भुल्लनडीह का पादरी दुर्गा यादव मुखिया है। उसने अपराध स्वीकार किया है। पीड़ित व्यक्ति की स्पष्ट परिभाषा एक्ट में नहीं है। राज्य का दायित्व लोक व्यवस्था, नैतिकता व स्वास्थ्य का संरक्षण करना है। किसी को जबरन गुमराह कर व अनुचित प्रभाव में लेकर धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार नहीं है। यह राज्य के विरुद्ध अपराध है।


पुलिस पर कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी होने के नाते वह भी पीड़ित व्यक्ति है, ऐसे में उसे एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार है। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए याची को ट्रायल कोर्ट में पक्ष रखने का निर्देश दिया है। यह भी कहा कि याची की गिरफ्तारी नहीं हुई है। इसलिए न्यायिक अभिरक्षा में न लिया जाए। यदि वह सहयोग न करे तो अदालत कानूनी कार्रवाई करे। 

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