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Lok Utsav : रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे...संगम तट पर संगीत की लहरें, लोक उत्सव में पहुंचीं मालिनी अवस्थी

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Mon, 06 Oct 2025 03:20 PM IST
सार

रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे..., जौन टिकसवा से बलम मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें..., पानी बरसे टिकस गल जाए रे..। मालिनी अवस्थी ने जैसे ही इस गीत को सुर दिया संगीत की लहरों ने हिचकोले लेना शुरू कर दिया।

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waves of music on the banks of Sangam Malini Awasthi reached the folk festival
लोक उत्सव में गीत प्रस्तुत करतीं पद्मश्री मालिनी अवस्थी। - फोटो : अमर उजाला।
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रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे..., जौन टिकसवा से बलम मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें..., पानी बरसे टिकस गल जाए रे..। मालिनी अवस्थी ने जैसे ही इस गीत को सुर दिया संगीत की लहरों ने हिचकोले लेना शुरू कर दिया। मौका था सिविल लाइंस स्थित प्रयाग संगीत समिति के मेहता सभागार में तीन दिवसीय लोक संस्कृति उत्सव का।


रविवार शाम ‘लोक रंग, माटी के संग’ की भावना के साथ व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी की तरफ से तीन दिवसीय उत्सव का शुभारंभ हुआ। जिस लोकगीत से पद्मश्री मालिनी अवस्थी संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करती हैं, उन्होंने वही राग छेड़ा। हर ओर से वाह-वाह की आवाज शानदार प्रस्तुति न्योछावर रहीं। उन्होंने बुंदेलखंडी कोल्हाई, राय, बलमा, फाग, लमतेरा और ब्रज से जुड़े चरकुला, रस, फागुन की होली गाकर सुरों की बाढ़ ला दी, जिसमें श्रोता डूबते-उतराते रहे।
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कार्यक्रम का संयोजन सोसायटी की अध्यक्ष मधु शुक्ला व राजेश तिवारी ने किया। इस मौके पर प्रो. साहित्य कुमार नाहर, प्रो. स्वतंत्र शर्मा, डॉ. राम बहादुर मिश्रा, गोपाल भाई, अतुल द्विवेदी, डॉ. रमाशंकर, उदय चंद्र परदेसी, महापौर गणेश केसरवानी, अनिल शुक्ला, शांभवी शुक्ला, श्रेयस शुक्ला, डॉ. धनंजय चोपड़ा, मृत्युंजय परमार, डॉ. रंजना त्रिपाठी, डॉ. अर्पित मिश्र, प्रद्युम्न पांडेय आदि मौजूद रहे।
 

नवाचार से बचेगी लोक संस्कृति

मालिनी ने कहा कि नवाचार से ही हमारी लोक संस्कृति बचेेगी। प्रयाग संगीत समिति में विदेशों से बच्चे और युवा गीत व नृत्य सीखने आते हैं। संगमनगरी के लोगों के लिए भी सुनहरा अवसर है कि वे यहां से कुछ सीखें। साथ ही गीतों के प्रस्तुतिकरण को बदलें।

पीढ़ियों को सौंपने का करें प्रयास

मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति सुधीर नारायण ने कहा कि हमारी परंपराओं में लोकाचार निहित है। हम अपने पीछे आ रही पीढ़ियों को बेहतर ढंग से सौंपने का प्रयास करें। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहीं पद्मश्री डॉ. विद्या बिंदु सिंह ने लोकगीतों को सामाजिक समरसता के लिए आवश्यक बताया। संगोष्ठी में वृंदावन से पधारे श्रीयुत वत्स गोस्वामी, खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. लवली शर्मा और इलाहाबाद संग्रहालय के डॉ. राजेश मिश्रा ने भी विचार व्यक्त किए।

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