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Azamgarh News: सारंगी बजाना छोड़ करने लगे मजदूरी
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10 निजामाबाद तहसील क्षेत्र में सरंगी बजाते जोगी। संवाद
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निजामाबाद। एक तरफ जहां आज लोग आधुनिकता की दौड़ में पुश्तैनी कला को छोड़ते जा रहे हैं। वहीं एक गांव ऐसा भी है जहां गांव के आधे के करीब लोग आज भी अपनी पुश्तैनी कला से जुड़े हुए हैं। हालांकि इस गांव की युवा पीढ़ी इस कला से न जुड़कर महानगरों में नौकरी और मजदूरी कर रही है। निजामाबाद तहसील क्षेत्र के डोडोपुर ग्राम सभा योगियों के गांव में रूप में जानी जाती है। लगभग 50 परिवार की यह मुस्लिम बस्ती है। एक समय था जब इस गांव के हर परिवार के एक व्यक्ति योगी था। यह लोग सुबह ही गेरुआ वस्त्र धारण कर कंधे पर सारंगी टांगे गांव-गांव घूमते थे। सारंगी बजाकर यह लोग निर्गुण का गायन करते हुए लोगों से अन्न, वस्त्र और धन दान में लेते थे।
समय बदला और इस गांव की नई युवा पीढ़ी ने इस कला को अपनाने की बजाए नौकरी और मजदूरी करना उचित समझा। आज गांव का युवा महानगरों में मजदूरी कर रहा है। क्योंकि सारंगी बजाकर लोगों से दान लेना गवारा नहीं है। इसका परिणाम है आज गांव में कुछ ही लोग बचे हैं जो सारंगी बजाकर अपने पुश्तैनी कला से जुड़े हैं। यह लोग आजमगढ़ के साथ ही जौनपुर, वाराणसी, मऊ आदि जनपदों में जाकर लोगों से दान लेते हैं।
हम लोग सैकड़ों वर्ष से इस प्रथा में लगे हुए हैं। सारंगी बजाकर पहले परिवार का भरण पोषण आसानी से आसपास के गांव से हो जाया करता था लेकिन इसके लिए अब हम लोगों को लगभग 15 किमी दूर टेंपो से बैठकर जाना पड़ता है। तब जाकर कहीं कुछ अन्य का दाना हम लोगों को मिलता है। - सज्जाक
इस प्रथा को अब नई पीढ़ी नहीं करने को तैयार है। नई पीढ़ी के बच्चे दिल्ली और मुंबई जाकर अपना कमा रहे हैं। हम लोग किसी तरीके से सरंगी बजाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर ले रहे हैं, लेकिन आगे आने वाली पीढ़ी अब इस कार्य को नहीं करेगी। -कौसर
हम इस प्रथा में पूर्वजों के दिशा निर्देश पर चला रहे हैं। हमारे पिताजी भी इसी तरीके से अपने परिवार का भरण पोषण मांग कर करते चले आए हैं और हम भी सुबह छह बजे घर से निकलते हैं और रात में घर आते हैं। किसी तरीके से परिवार का भरण पोषण मांग कर चलाते हैं। - गुड्डू

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हम लोग सैकड़ों वर्ष से इस प्रथा में लगे हुए हैं। सारंगी बजाकर पहले परिवार का भरण पोषण आसानी से आसपास के गांव से हो जाया करता था लेकिन इसके लिए अब हम लोगों को लगभग 15 किमी दूर टेंपो से बैठकर जाना पड़ता है। तब जाकर कहीं कुछ अन्य का दाना हम लोगों को मिलता है। - सज्जाक
इस प्रथा को अब नई पीढ़ी नहीं करने को तैयार है। नई पीढ़ी के बच्चे दिल्ली और मुंबई जाकर अपना कमा रहे हैं। हम लोग किसी तरीके से सरंगी बजाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर ले रहे हैं, लेकिन आगे आने वाली पीढ़ी अब इस कार्य को नहीं करेगी। -कौसर
हम इस प्रथा में पूर्वजों के दिशा निर्देश पर चला रहे हैं। हमारे पिताजी भी इसी तरीके से अपने परिवार का भरण पोषण मांग कर करते चले आए हैं और हम भी सुबह छह बजे घर से निकलते हैं और रात में घर आते हैं। किसी तरीके से परिवार का भरण पोषण मांग कर चलाते हैं। - गुड्डू