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बैरिया थाने में तिरंगा फहराते समय शहीद हुए थे 18 क्रांतिकारी
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बैरिया। जिले के इतिहास में 18 अगस्त 1942 की क्रांति को अगस्त क्रांति के नाम से जाना जाता है। इस दिन थाने पर तिरंगा फहराते समय 18 क्रांतिकारी शहीद हो गए थे। शहीद क्रांतिकारियों की याद में प्रत्येक वर्ष शहीद स्मारक परिसर में मेला लगता है जिसमें लोग शहीदों को नमन करते हैं।
अगस्त क्रांति को लेकर क्रांतिकारियों के हौसले काफी बुलंद थे। क्रांतिकारियों ने रेलवे स्टेशन फूंक दिया था रेल पटरियों को उखाड़ दी थीं। 18 अगस्त 1942 से दो दिन पहले बैरिया में भूपनारायण सिंह, सुदर्शन सिंह के साथ हजारों की भीड़ के आगे थानेदार काजिम ने खुद ही थाने पर तिरंगा फहराया था और थाना खाली करने के लिए क्रांतिकारियों से दो दिन की मोहलत मांगी थी। उसी दिन रात में थानेदार ने जिला मुख्यालय से पांच सशस्त्र पुलिसकर्मियों को बुला लिया था और रात में तिरंगे को उतारकर फेंकवा दिया। इसकी भनक लगते ही क्रांतिकारियों ने थानेदार से बदला लेने के लिए 18 अगस्त तय की थी। दोपहर होते-होते 25 हजार से अधिक लोगों ने थाने को घेर लिया। महिलाओं की अगुवाई धनेश्वरी देवी, तेतरी देवी, राम झरिया देवी कर रही थीं। भूपनारायण सिंह, सुदर्शन सिंह, परशुराम सिंह, बलदेव सिंह, हरदेव सिंह, राजकिशोर सिंह, बैजनाथ साह, राजकुमार मिश्र आदि भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। थाने पर भीड़ को देख थानेदार ने थाने की छत पर सिपाहियों संग पहुंच कर मोर्चा संभाल लिया। इसी बीच कुछ लोग थाने में बगल से घुस गए और थाने के घोड़े को खोलकर अस्तबल ध्वस्त कर दिया। इसके बाद भीड़ थाने में घुस गई। यह देख पुलिस ने गोलिया चलाई तो क्रांतिकारियों ने पथराव कर दिया था। कौशल कुमार छलांग लगाकर थाने की छत पर पहुंच गए और तिरंगा फहरा दिया लेकिन पुलिस की गोली से वह शहीद हो गए। शाम तक चले इस संघर्ष में कुल 18 लोग शहीद हो गए थे।
शहीद होने वालों में गोन्हिया छपरा निवासी निर्भय कुमार सिंह, देवबसन कोइरी, विशुनपुरा निवासी नरसिंह राय, तिवारी के मिल्की निवासी रामजनम गोंड, चांदपुर निवासी रामप्रसाद उपाध्याय, टोलागुदरीराय निवासी मैनेजर सिंह, सोनबरसा निवासी रामदेव कुम्हार, बैरिया निवासी रामबृक्ष राय, रामनगीना सोनार, छठू कमकर, देवकी सोनार, शुभनथही निवासी धर्मदेव मिश्र, मुरारपट्टी निवासी श्रीराम तिवारी, बहुआरा निवासी मुक्तिनाथ तिवारी, श्रीपालपुर निवासी विक्रम सोनार, भगवानपुर निवासी भीम अहीर शामिल थे। जबकि दयाछपरा निवासी गदाधर नाथ पांडेय, मधुबनी निवासी गौरीशंकर राय, गंगापुर निवासी रामरेखा शर्मा सहित तीन लोगों की जेल यातना में मृत्यु हुई। इसके अलावा भी कितने क्रांतिकारियों को जेल की काल कोठरी में डाल दिया गया, जिसका नाम तक प्रकाश में नहीं आ सका।
शहीद दिवस पर बैरिया थाना के पास शहीद स्मारक के सामने लगने वाले मेले और श्रद्धांजलि सभा को लेकर पहले जैसा उत्साह नहीं दिखता। कोटवा के पूर्व प्रधान गौरीशंकर प्रसाद ने कहा कि अब शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए पहले जैसा उमंग नहीं दिखता। पहले युवाओं, समाजसेवियों, जनप्रतिनिधियों में शहीद दिवस मनाने का उमंग हुआ करता था। कस्बा निवासी श्रीनाथ सिंह नेताजी ने कहा कि शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी जब निस्वार्थ भाव से क्षेत्र का विकास किया जाए। केहरपुर के प्रधान विजयकांत पांडेय ने कहा कि श्रद्धांजलि सभा से लोग कतराने लगे हैं। इसका कारण आम लोगों का विश्वास अब अपने नेता और जनप्रतिनिधियों के प्रति नहीं रहना है। टेंगरही प्रधान शुभम सिंह ने कहा कि शहीदों व सेनानियों की कुर्बानियों को भुलाया नहीं जा सकता है।

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अगस्त क्रांति को लेकर क्रांतिकारियों के हौसले काफी बुलंद थे। क्रांतिकारियों ने रेलवे स्टेशन फूंक दिया था रेल पटरियों को उखाड़ दी थीं। 18 अगस्त 1942 से दो दिन पहले बैरिया में भूपनारायण सिंह, सुदर्शन सिंह के साथ हजारों की भीड़ के आगे थानेदार काजिम ने खुद ही थाने पर तिरंगा फहराया था और थाना खाली करने के लिए क्रांतिकारियों से दो दिन की मोहलत मांगी थी। उसी दिन रात में थानेदार ने जिला मुख्यालय से पांच सशस्त्र पुलिसकर्मियों को बुला लिया था और रात में तिरंगे को उतारकर फेंकवा दिया। इसकी भनक लगते ही क्रांतिकारियों ने थानेदार से बदला लेने के लिए 18 अगस्त तय की थी। दोपहर होते-होते 25 हजार से अधिक लोगों ने थाने को घेर लिया। महिलाओं की अगुवाई धनेश्वरी देवी, तेतरी देवी, राम झरिया देवी कर रही थीं। भूपनारायण सिंह, सुदर्शन सिंह, परशुराम सिंह, बलदेव सिंह, हरदेव सिंह, राजकिशोर सिंह, बैजनाथ साह, राजकुमार मिश्र आदि भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। थाने पर भीड़ को देख थानेदार ने थाने की छत पर सिपाहियों संग पहुंच कर मोर्चा संभाल लिया। इसी बीच कुछ लोग थाने में बगल से घुस गए और थाने के घोड़े को खोलकर अस्तबल ध्वस्त कर दिया। इसके बाद भीड़ थाने में घुस गई। यह देख पुलिस ने गोलिया चलाई तो क्रांतिकारियों ने पथराव कर दिया था। कौशल कुमार छलांग लगाकर थाने की छत पर पहुंच गए और तिरंगा फहरा दिया लेकिन पुलिस की गोली से वह शहीद हो गए। शाम तक चले इस संघर्ष में कुल 18 लोग शहीद हो गए थे।
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शहीद होने वालों में गोन्हिया छपरा निवासी निर्भय कुमार सिंह, देवबसन कोइरी, विशुनपुरा निवासी नरसिंह राय, तिवारी के मिल्की निवासी रामजनम गोंड, चांदपुर निवासी रामप्रसाद उपाध्याय, टोलागुदरीराय निवासी मैनेजर सिंह, सोनबरसा निवासी रामदेव कुम्हार, बैरिया निवासी रामबृक्ष राय, रामनगीना सोनार, छठू कमकर, देवकी सोनार, शुभनथही निवासी धर्मदेव मिश्र, मुरारपट्टी निवासी श्रीराम तिवारी, बहुआरा निवासी मुक्तिनाथ तिवारी, श्रीपालपुर निवासी विक्रम सोनार, भगवानपुर निवासी भीम अहीर शामिल थे। जबकि दयाछपरा निवासी गदाधर नाथ पांडेय, मधुबनी निवासी गौरीशंकर राय, गंगापुर निवासी रामरेखा शर्मा सहित तीन लोगों की जेल यातना में मृत्यु हुई। इसके अलावा भी कितने क्रांतिकारियों को जेल की काल कोठरी में डाल दिया गया, जिसका नाम तक प्रकाश में नहीं आ सका।
शहीद दिवस पर बैरिया थाना के पास शहीद स्मारक के सामने लगने वाले मेले और श्रद्धांजलि सभा को लेकर पहले जैसा उत्साह नहीं दिखता। कोटवा के पूर्व प्रधान गौरीशंकर प्रसाद ने कहा कि अब शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए पहले जैसा उमंग नहीं दिखता। पहले युवाओं, समाजसेवियों, जनप्रतिनिधियों में शहीद दिवस मनाने का उमंग हुआ करता था। कस्बा निवासी श्रीनाथ सिंह नेताजी ने कहा कि शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी जब निस्वार्थ भाव से क्षेत्र का विकास किया जाए। केहरपुर के प्रधान विजयकांत पांडेय ने कहा कि श्रद्धांजलि सभा से लोग कतराने लगे हैं। इसका कारण आम लोगों का विश्वास अब अपने नेता और जनप्रतिनिधियों के प्रति नहीं रहना है। टेंगरही प्रधान शुभम सिंह ने कहा कि शहीदों व सेनानियों की कुर्बानियों को भुलाया नहीं जा सकता है।