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UP: सियासी फेर में फंसीं आला हजरत और पंडित राधेश्याम शोध पीठ, सपा सरकार ने रुहेलखंड विवि में की थी स्थापना

अमित सक्सेना, अमर उजाला ब्यूरो, बरेली Published by: मुकेश कुमार Updated Thu, 21 Aug 2025 04:57 PM IST
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सार

साल 2016 में सपा सरकार के दौरान रुहेलखंड विश्वविद्यालय में आला हजरत और पंडित राधेश्याम शोध पीठ की स्थापना हुई थी, लेकिन शोध पीठ को बजट नहीं मिल सका और न ही विश्वविद्यालय ने इस ओर कोई ध्यान दिया। 

Ala Hazrat and Pandit Radheshyam Research Centre stuck in political trouble
रुहेलखंड विश्वविद्यालय - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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बरेली में आला हजरत के उर्स में देश-दुनिया से लाखों जायरीन आए, पर उनके बारे शोध के लिए रुहेलखंड विश्वविद्यालय में शुरू की गई पीठ सिमटने के कगार पर है। सपा शासनकाल में आला हजरत और राधेश्याम रामायण केरचयिता पंडित राधेश्याम कथावाचक के नाम पर शोध पीठ खोली गई थीं। सूबे का निजाम बदलने के बाद बजट व प्रोत्साहन न मिलने से अब इनके बोर्ड तक गायब हो चुके हैं।

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वर्ष 2016 में प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शहर आने से पहले रुहेलखंड विश्वविद्यालय में पंडित राधेश्याम और आला हजरत के नाम पर शोध पीठ की स्थापना की गई थी। विश्वविद्यालय के सूत्र बताते हैं कि आला हजरत शोध पीठ की स्थापना का उद्देश्य इमाम अहमद रजा खां फाजिले बरेलवी के इल्मी योगदान को नई पीढ़ी के सामने लाना था। 
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उनकी लिखी एक हजार से अधिक किताबों का संकलन करना था। इसी तरह पंडित राधेश्याम शोध पीठ की स्थापना के पीछे तर्क दिया गया था कि शोधार्थी यहां नाट्य साहित्य का अध्ययन कर सकेंगे। रामकथा मंचन से जुड़ी नवीनतम चीजें शोध में सामने आ सकेंगी।

यह भी पढ़ें- UP News: सूफी सुन्नी विचारधारा से आएगी विश्व में शांति, उर्स-ए-रजवी में उलमा ने दिया दुनिया को पैगाम
 

सफाई के दौरान उखाड़ दिए बोर्ड
आला हजरत पीठ के लिए अर्थशास्त्र विभाग के शिक्षक डॉ. इसरार अहमद और पंडित राधेश्याम कथावाचक पीठ के लिए इतिहास विभाग के प्रोफेसर एके सिन्हा को समन्वयक बनाया था। दोनों पीठ को शुरुआत में एक-एक कर्मचारी भी दिए गए थे। बताते हैं कि इन पीठ के संबंध में न तो शासन से आज तक कोई बजट मिला और न ही विवि ने कोई धन खर्च किया। 

लाइब्रेरी में इन विद्वानों की कुछ पुस्तकें जरूर बढ़ा दी गईं। दोनों शोध पीठ के नाम लिखे बोर्ड कुछ समय तक विवि में लगे रहे, अब वे भी गायब हो चुके हैं। बताया जाता है कि विवि में नैक टीम के दौरे को लेकर सफाई हुई तो दोनों पीठ के बोर्ड हटाकर रख दिए गए। 

आला हजरत ने बताया था काबा शरीफ की दिशा निकालने का तरीका
आला हज़रत का जन्म 14 जून 1856 को शहर के मोहल्ला जसोली में हुआ था। उनका जन्म का नाम मुहम्मद था। आला हजरत ने अंग्रेजी शासन में भारत के मुसलमानों में बौद्धिक और नैतिक गिरावट देखी तो आंदोलन शुरू किया। बाद में यह दुनियाभर में फैल गया। 

मुफ्ती सलीम बताते हैं कि उस दौर में दिशा ज्ञान के लिए इंटरनेट नहीं था। तब आला हजरत की 280 पन्नों की किताब ने दिशा ज्ञान दिया। किताब में काबा शरीफ की दिशा (किबला) निकालने का ऐसा तरीका दर्ज है, जिसका उपयोग कर किसी भी देश का व्यक्ति काबा का रुख कर सकता है।

एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी अमित कुमार सिंह ने बताया कि आला हजरत व पंडित राधेश्याम कथावाचक के नाम से वर्ष 2016 में विवि में शोध पीठ की स्थापना की गई थी। इनके लिए शासन से आज तक कोई बजट स्वीकृत नहीं हो सका। विवि किसी दूसरे मद के बजट को शोध पीठ में व्यय नहीं कर सकता। इसलिए दोनों ही पीठ में कोई गतिविधियां नहीं हो सकी हैं। 25 साल से विश्वविद्यालय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ सफलतापूर्वक संचालित है। डॉ. आंबेडकर शोध पीठ के लिए प्रस्ताव गया हुआ है। 

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