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UP: देवरिया में कौव्वाल समीम ने कहा- 'मुझसे ना टकराएं... चीन हो या पाकिस्तान, मेरे भारत से टकराना- नहीं आसान

संवाद न्यूज एजेंसी, देवरिया Published by: रोहित सिंह Updated Thu, 08 May 2025 06:01 PM IST
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सार

सेल्हरापुर में प्रसिद्ध सूफी संत सैयद यासीन शाह की दरगाह पर चल रहे तीन दिवसीय 44 वें सालाना उर्स के समापन अवसर पर सरकारी चादर गागर के दौरान दरगाह के आस-पास जायरीन का जत्था हाथ में प्रसाद लिए इकट्ठा होकर मन्नतें पूरी होने पर बाबा का जयकारे लगाए।

Three-day 44th annual Urs at the dargah of Syed Yasin Shah of Selharapur, Deoria
सेल्हरापुर में सैयद यासीन शाह की दरगाह पर चल रहे तीन दिवसीय 44 वें सालाना उर्स का समापन हुआ - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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क्षेत्र के सेल्हरापुर में सैयद यासीन शाह के दरगाह पर चल रहे 44 वें सालाना उर्स का बृहस्पतिवार को समापन हो गया। इस दौरान दरगाह प्रमुख ने दूरदराज से पहुंचे जायरीन की सलामती के लिए बाबा से दुआएं मांगी। बुधवार की पूरी रात बाबा की शान में कौव्वालों ने कौव्वाली प्रस्तुत कर समां बांध दिया।
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इस दौरान अलीगढ़ से पहुंचे कौव्वाल समीम अनवर ने "मुझसे न टकराएं कोई चीन हो या पाकिस्तान.. मेरे भारत से टकराना अब यह खेल नहीं है आसान" प्रस्तुत करते ही तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा महफिल गूंज उठा। उर्स समापन के बाद दूसरे प्रांतों से आए जायरीन अपने गन्तव्य को निकल गए।
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सेल्हरापुर में प्रसिद्ध सूफी संत सैयद यासीन शाह की दरगाह पर चल रहे तीन दिवसीय 44 वें सालाना उर्स के समापन अवसर पर सरकारी चादर गागर के दौरान दरगाह के आस-पास जायरीन का जत्था हाथ में प्रसाद लिए इकट्ठा होकर मन्नतें पूरी होने पर बाबा का जयकारे लगाए।

दरगाह प्रमुख सैयद शकील अहमद शाह, सैयद मेहंदी हसन शाह और सैयद नूर हसन शाह ने बाहर से पहुंचे जायरीन को पुनः उनके गंतव्य तक सही सलामत पहुंचने के लिए बाबा से दरखास्त की।

उधर, सूफी महफिल में जौनपुर निवासी एवं अजमेर शरीफ से सूफी कौव्वाली के बादशाह कहे जाने वाले सुल्तान सादरी ने सैयद यासीन शाह से मांग लो सदका हुसैन..।। अली मौला..मनकुंतों मौला प्रस्तुत कर महफिल में समां बांध दिया। इसके बाद अलीगढ़ से आए समीम अनवर ने "ए साजा का है हिन्दुस्तान, मत टकराएं हमसे चीन और पाकिस्तान मिट्टी में मिल जाएगा जो आंख दिखाएगा सहित अन्य प्रस्तुति देकर महफिल में समां बांध दिया।

कुल दुआ की रस्म के साथ उर्स का हुआ समापन
खुखुंदू। उर्स के आखिरी पड़ाव को कुल दुआ कहते है। इसी रस्म के बाद दरगाह प्रमुख समेत सभी जायरीन ने इकठ्ठा होकर बाबा से सलामती की दुआएं की। इसके साथ ही बाबा से अर्जी लगाई गई कि जिस तरह से हाजिरी लगी है, हमारी अर्जी कबूल करिए और फिर से हमें बुलाइए। हम हंसते हुए यहां आएं। इस दौरान देशी घी से बने लड्डू प्रसाद के रुप में वितरित किया गया। यही प्रसाद जायरीन अपने घरों को लेकर जाते हैं।
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