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UP: प्राचीन मदन मोहन मंदिर में होगा संरक्षण कार्य...पहली बार केमिकल प्रिजर्वेशन, काली पड़ चुकी हैं दीवारें
संवाद न्यूज एजेंसी, मथुरा
Published by: अरुन पाराशर
Updated Tue, 05 Aug 2025 09:32 PM IST
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सार
मथुरा के वृंदावन में प्राचीन ठाकुर मदन मोहन मंदिर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षण कार्य कराया जाएगा। इस कार्य में लगभग 16 लाख रुपये का खर्चा आएगा।

प्राचीन मंदिर।
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
मथुरा के श्रीधाम वृंदावन के सप्त देवालयों में शामिल प्राचीन ठाकुर मदन मोहन मंदिर के संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल होने जा रही है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रसायन शाखा द्वारा इस मंदिर का पहली बार केमिकल प्रिजर्वेशन किया जाएगा। मंदिर की दीवारों पर जमी कालिख और धूल को वैज्ञानिक विधियों से साफ कर उसका मूल स्वरूप पुनर्स्थापित किया जाएगा।
मंदिर के वर्तमान हालात की बात करें तो इसके ऊपरी हिस्से से लेकर आधार तक लाल बलुआ पत्थर की दीवारें पूरी तरह काली पड़ चुकी हैं। यही कारण है कि पुरातत्व विभाग ने इसे रासायनिक संरक्षण की प्रक्रिया से संवारने का निर्णय लिया है। यह कार्य अक्टूबर माह में प्रारंभ होगा और इसमें लगभग तीन महीने का समय लगेगा।

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मंदिर के वर्तमान हालात की बात करें तो इसके ऊपरी हिस्से से लेकर आधार तक लाल बलुआ पत्थर की दीवारें पूरी तरह काली पड़ चुकी हैं। यही कारण है कि पुरातत्व विभाग ने इसे रासायनिक संरक्षण की प्रक्रिया से संवारने का निर्णय लिया है। यह कार्य अक्टूबर माह में प्रारंभ होगा और इसमें लगभग तीन महीने का समय लगेगा।
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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार, इस प्रोजेक्ट पर करीब 16 लाख रुपये की लागत आएगी। यह पूरा कार्य एएसआई के विशेषज्ञ रसायनविदों की निगरानी में किया जाएगा, ताकि मंदिर की ऐतिहासिक और स्थापत्य विरासत को बिना नुकसान पहुंचाए स्वच्छ किया जा सके।
यह है मंदिर का इतिहास
मदन मोहन मंदिर वृंदावन के सबसे प्राचीन और पूजनीय मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण संवत 1647 में हुआ था और इसका संबंध चैतन्य महाप्रभु की परंपरा से है। कहा जाता है कि उनके शिष्यों द्वारा इस मंदिर में ठाकुर मदन मोहन जी की प्रतिष्ठा की गई थी। यह मंदिर यमुना नदी के तट पर स्थित है और श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
यह है मंदिर का इतिहास
मदन मोहन मंदिर वृंदावन के सबसे प्राचीन और पूजनीय मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण संवत 1647 में हुआ था और इसका संबंध चैतन्य महाप्रभु की परंपरा से है। कहा जाता है कि उनके शिष्यों द्वारा इस मंदिर में ठाकुर मदन मोहन जी की प्रतिष्ठा की गई थी। यह मंदिर यमुना नदी के तट पर स्थित है और श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।