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यमुना एक्सप्रेस-वे हादसा: स्लीपर बसों की सबसे बड़ी खामी, जिसकी वजह से जिंदा जले 19 लोग; बचने का नहीं मिला मौका
संवाद न्यूज एजेंसी, मथुरा
Published by: धीरेन्द्र सिंह
Updated Thu, 18 Dec 2025 09:43 AM IST
सार
यमुना एक्सप्रेस-वे पर मथुरा में हुए भीषण हादसे और अग्रिनाकांड में 19 लोगों की मौत की पुष्टि अब तक हुई है। ये 19 लोग स्लीपर बसों में जिंदा जल गए। आखिर वजह क्या रही कि ये लोग समय रहते खुद को बचा नहीं सके। आइये बताते हैं....
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मथुरा हादसा
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
मथुरा में यमुना एक्सप्रेस-वे पर हुए हादसे में सबसे ज्यादा मौतें निजी डबल डेकर बसों में सफर करने वाले यात्रियों की हुई। जांच कमेटी ने क्षतिग्रस्त बसों का परीक्षण करने के बाद पाया कि सात निजी डबल डेकर बसों में आपातकालीन द्वार नहीं थे, जबकि रोडवेज बस में तीन की मौत हुई। निजी बसों में लोगों के पास बचने के लिए महज खिड़कियां ही सहारा बनीं।
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जांच टीम ने क्षतिग्रस्त डबल डेकर बसों के निरीक्षण में पाया कि बसों में आपातकालीन गेट नहीं होने से लपटों में घिरने के बाद यात्रियों को भागने का मौका नहीं मिल सका। जबकि बच्चों को बसों की खिड़कियों के शीशे तोड़कर बाहर निकाला और युवा सवारियां भी बाहर आ गईं। कई बसों के शीशे आपाधापी में टूट नहीं सके। यही कारण रहा कि ज्यादातर मृतक इन्हीं बसों में सफर करने वाले यात्री रहे। वहीं आंबेडकर नगर डिपो की रोडवेज बस भी इसी दुर्घटना में पूरी तरह जल चुकी है। लेकिन इसमें आपातकालीन गेट था। इसमें सफर करने वाले ज्यादातर यात्रियों की जान बच गई। हादसे में बस के दो चालकों और दिल्ली के एक यात्री की मौत हुई। वहीं अन्य सभी मौतें निजी बसों में सवार यात्रियों की हुई।
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स्लीपर बसों में सीटों के मानक भी समान नहीं
इन बसों में सीट और स्लीपर सीटों में भी मानक समान नहीं होता है। कई बसों में 56 तो कई में 65 सीटें तक होती हैं। दो लेन में स्लीपर होते हैंं। जांच कमेटी अब इस तथ्य पर भी अपनी रिपोर्ट देगी कि निजी बसों में आपातकालीन द्वार की अनिवार्यता होनी चाहिए। वहीं पुलिस ने डबल डेकर बसों में सफर करने वाले प्रत्येक यात्री के परिजन से संपर्क करके ब्योरा लिया जा रहा है कि कहीं कोई यात्री लापता तो नहीं है। एसपीआरए सुरेशचंद्र रावत ने बताया कि यात्रियों के परिजनों के डीएनए सैंपल लिए जा रहे हैं। जो भी पीड़ित पहुंच रहे हैं, उनका ब्योरा लिया जा रहा है।
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इन बसों में सीट और स्लीपर सीटों में भी मानक समान नहीं होता है। कई बसों में 56 तो कई में 65 सीटें तक होती हैं। दो लेन में स्लीपर होते हैंं। जांच कमेटी अब इस तथ्य पर भी अपनी रिपोर्ट देगी कि निजी बसों में आपातकालीन द्वार की अनिवार्यता होनी चाहिए। वहीं पुलिस ने डबल डेकर बसों में सफर करने वाले प्रत्येक यात्री के परिजन से संपर्क करके ब्योरा लिया जा रहा है कि कहीं कोई यात्री लापता तो नहीं है। एसपीआरए सुरेशचंद्र रावत ने बताया कि यात्रियों के परिजनों के डीएनए सैंपल लिए जा रहे हैं। जो भी पीड़ित पहुंच रहे हैं, उनका ब्योरा लिया जा रहा है।
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