कोडीन सिरप कांड: सिंडिकेट से जुड़े दिवाकर-प्रियांशू के तार, जल्द बेनकाब होंगे गिरोह के पीछे छिपे बड़े चेहरे
रायबरेली के दिवाकर-प्रियांशू के तार भी कोडीन सिरप सिंडिकेट से जुड़े हैं। जांच के दायरे में कई नर्सिग होम संचालक भी हैं। मामले की जांच चल रही है। जल्द ही गिरोह के पीछे छिपे बड़े चेहरे भी बेनकाब होंगे। आगे पढ़ें पूरा मामला...
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नशीले कफ सिरप की बिक्री का जिन्न बाहर आने के बाद रायबरेली में शुरू की गई जांच में अहम खुलासा हुआ है। पता चला है कि जिले के जिन दवा कारोबारी दिवाकर और प्रियांशू के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है, उनके तार भी कफ सिरप सिंडिकेट से जुड़े हैं। यह दोनों सिडिंकेट के अहम सदस्य बर्खास्त सिपाही आलोक प्रताप सिंह के खास बताए जा रहे हैं।
खासकर दिवाकर के नशीली कफ सिरप की आपूर्ति सिर्फ चार जिलों में नहीं, बल्कि देश के अलावा बांग्लादेश तक किए जाने की बात सामने आई है। सूत्रों का दावा है कि पुलिस के साथ ही स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) भी इस प्रकरण की गोपनीय तरीके से जांच कर रही है। ऐसे में प्रियांशू और दिवाकर के जल्द एसटीएफ के गिरफ्त में आने की बात कही जा रही है। दोनों की गिरफ्तारी के बाद इस सिंडीकेट के पीछे छिपे बड़े चेहरे भी बेनकाब होंगे।
नशीले कफ सिरप बिक्री करने का उल्लेख
औषधि निरीक्षक शीवेंद्र प्रताप सिंह की ओर से 18 अक्तूबर 2025 को मिल एरिया थाने में शहर के कल्लू का पुरवा निवासी एवं अजय फार्मा संचालक दिवाकर सिंह के खिलाफ नशीली कप सिरप की बिक्री करने का केस दर्ज कराया गया था। एफआईआर में दिवाकर के अलावा मेडिसन हाउस बकुलिहा सेमरी के संचालक प्रियांशू गौतम के भी नशीले कफ सिरप बिक्री करने का उल्लेख किया गया था।
प्रदेश में यह मामला जब सुर्खियां बना तो दोनों दवा कारोबारी दुकानें बंद करके फरार हो गए। अफसरों ने दुकानों को सील कर दिया। जांच में पता चला कि दिवाकर ने साढ़े पांच लाख और प्रियांशू ने एक लाख सिरप की बिक्री है। खास बात ये है कि कई नर्सिंग होमों में इसकी बिक्री की गई है। दोनों आरोपियों के साथ ही नर्सिंग होम संचालक भी पुलिस और एसटीएफ के रडार पर हैं।
दो साल से चल रहा था बिक्री का खेल, सोता रहा विभाग
रायबरेली से कई जनपदों को नशीले कफ सिरप बिक्री का खेल करीब दो साल से चल रहा था। इसके बावजूद खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) सोता रहा। मामला तूल पकड़ा तो अक्तूबर माह में औषधि निरीक्षक की तरफ से मिल एरिया थाने में एफआईआर दर्ज करा दी गई।
अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इतने साल से लोगों के हाथों में नशीली सिरप थमाई जा रही थी। इसकी भनक अफसरों को क्यों नहीं हुई? क्या इस पूरे खेल में अफसरों की भूमिका थी? हालांकि इसका खुलासा तो दिवाकर, प्रियांशू के हत्थे चढ़ने के बाद होगा, लेकिन छह लाख सिरप आसानी से बिक्री होना बताता है कि लापरवाही किस हद तक हुई है।
150 रुपये की शीशी 300-350 रुपये में बिकती थी
कोडीनयुक्त सिरप नशीली होती है। चूंकि हर दवा कारोबारी के पास यह सिरप उपलब्ध नहीं रहती है। ऐसे में एक शीशी की कीमत करीब 150 रुपये है, लेकिन इसे 300 से 350 रुपये तक बेचा जाता था। आसानी से मिला मोलभाव किए लोग इस सिरप की खरीद करते थे। इससे जाहिर है कि सिरप की बिक्री से दवा कारोबारियों को कितना फायदा हो रहा था। पुलिस की जांच में पाया गया है कि कफ सिरप बिक्री के नाम पर करोड़ों रुपये का वारा न्यारा किया गया है। इस धंधे से जुड़े दिवाकर और प्रिंयाशू मालामाल हो गए थे।